Thursday 31 March 2011

बंटवारे के बाद इस मुल्क में मुसलमान


See full size imageबंटवारे के बाद इस मुल्क में मुसलमान ही है जो सबसे ज़्यादा टोटे और ख़सारे में रहा। इस क़ौम का सभी सियासी जमातों ने ख़ून चूसा और मौजूदा दौर में भी चूसा जा रहा है। मगर ये क़ौम है जिसे अपने छले जाने तक का अहसास नहीं। इस की बदक़िस्मती ये है कि इस के साथ हमदर्दी तो बहुतेरे सियासी रहनुमाओं ने दिखाई मगर किसी न किसी गर्ज़ से। तारीख़ की ख़ाक बाद में छानेंगे फ़िलहाल तो मौजूदा दौर पर बात करते हैं। देशभर में आज हर क़ौम के नेताओं की भरमार है। दलित हो, पिछड़ा हो, पंडित, बनिया, पंजाबी, आदिवासी और न जाने कितनी क़ौमें, गिनना भी आसान नहीं। नेता सबके हैं। मगर नेताविहीन अगर कोई क़ौम है तो सिर्फ मुसलमान। देश की तमाम सियासी जमातों ने इस क़ौम को पिछलग्गू बना लिया पर साझेदार नहीं। इनके वोट का इस्तेमाल तो सब ने किया मगर समसस्याओं को समाधान नहीं। मुसलमानों के बूते पर कांग्रेस ने पचास साल से भी ज़्यादा राज किया। लालू प्रसाद यादव बीस साल तक मुसलमानों के दम पर सत्ता का सुख भोगते रहे। रामविलास   पासवान, मायावती समेत कई नेता इसी वोट बैंक के आधार पर सत्ता की मलाई मारते रहे। लेकिन मैं एक सवाल करता हूं। भले ही टके का हो, देश के किसी भी बड़े सियासी दल का मुखिया कोई मुसलमान क्यों नहीं है? मंसूबे साफ़ ज़ाहिर हैं। समझने वाले समझ भी रहे होंगे। कोई हिंदू नेता हिंदू कट्टरवादी नेता या संगठन को गाली दे दे तो वो मुसलमानों का मसीहा बन जाता है। चाहे वो फिर मुलायम सिंह यादव या फिर कोई और ही क्यों न हो। जो खुद को मुल्ला मुलायम सिंह तक कहलवा रहे हैं। पर भोला मुसलमान इस सियासत को नहीं समझ पाता। ये सब वोट बटोरने की ज़ुबान है। इसके अलावा कुछ भी नहीं। मुलायम सिंह मुलायम सिंह ही रहेंगे। वो मुल्ला या मौलाना कभी नहीं बन सकते। मुलायम सिंह अगर आपके इतने ही हमदर्द हैं तो उन्होंने सपा में अपने कद का नेता किसी मुसलमान को क्यों नहीं बनने दिया। उनके सूबे में जिस मुसलमान का क़द बढने लगा उसी के पर कतर डाले। अमर सिंह, आज़म ख़ान जैसे लोग नंबर दो, तीन की पोजीशन पर रहे। जबकि मुसलमानों के वोटों पर ही उन्होंने सत्ता का सुख भोगा है। ऐसा ही हाल दूसरे नेताओं का भी है। मुसलमान को भीख का टुकड़ा तो हर दर से मिला मगर भागीदारी कहीं से नहीं। ग़ौर करने वाली बात है कि हिंदुस्तान की किसी पार्टी में कोई मुसलमान नेता इस क़द और क़ुव्वत का है जो सीना चौड़ा कर मुसलमानों का हक़ मांगने की जुर्रत रखता हो। या फिर अपनी संख्या के आधार पर लोकसभा और राज्य सभा में भागीदारी मांग सके। सच्चाई ये है कि वो अपनी आबादी के आधार पर अपनी पार्टी से मुसलमानों को टिकट तक नहीं दिलवा सकता। सब पिछलग्गू हैं। सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने भले के लिए चाटूगीरी करते नज़र आते हैं। ये सफ़ेदपोश नेता जिनके दिल अंदर से काले हैं अपने स्वार्थ के लिए मुसलमानों को क़दम क़दम पर बेचने का काम कर रहे हैं।
 इस मुल्क में हुए दंगों ने न जाने कितने मज़लूम, बेबस, बेगुनाह और लाचार मुसलमानों की जान ले ली। न जाने कितने आयोग बैठे। लेकिन कोई आयोग किसी दोषी को सज़ा की दहलीज़ तक नहीं पहुंचा पाया। क़ातिल भी वही मुंसिफ भी वही। भला इंसाफ मिलता भी तो कैसे। अब ज़रा तारीख़ के दरीचे को और खोलते हैं। ग़ौर कीजिए हिंदुस्तान के जिस-जिस शहर में मुसलमानों की माली हालत सुधरने का सिलसिला शुरू हुआ वहां-वहां दंगाइयों ने न सिर्फ़ मुलमानों का क़त्लेआम किया, बल्कि उनकी माली हालत से भी कमर तोड़ डाली। अलीगढ़, मेरठ, मुरादाबाद, भागलपुर, मलियाना, अहमदाबाद, सूरत जैसे दर्जनों शहर तो महज़ एक मिसाल भर हैं। ख़ासतौर से कांग्रेस की मुखिया रही इंदिरा गांधी की ये पोलिसी रही कि मुसलमानों को भय यानी ख़ौफ और दहशत में रखा जाए। उनको जनसंघ जैसे हिंदू कट्टरवादी संगठनों का ख़ौफ दिखाकर, कांग्रेस की ओर आकर्षित करने का काम किया गया। इसी साज़िश के तहत पहले मुसलमानों को पिटवाया और फिर पुचकारा। यही वजह रही कि मुसलमान कांग्रेस का वोट बैंक बना रहा। अपने बीच मौजूद बुज़ुर्गों से ज़रा पूछिए। मेरे लिखे की तस्दीक़ और आपकी तसल्ली दोनों हो जाएंगी। एक लंबा समय ऐसा ग़ुजरा है जब मुसलमान ने सरकार से न रोटी मांगी न रोज़गार। मांगी  तो सिर्फ अपने जान माल की हिफाज़त। जो लोग इन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं शायद उनमें से कुछ ने दंगे का ख़ौफ देखा हो, या फिर महसूस किया हो। लेकिन मैंने बहुत सारे दंगों का हाल अपनी आंखों से देखा है। जंगलों, तालाबों, नदियों और नालों में लावारिस मुलमानों की लाशों में कीड़े पड़ते देखे हैं। मुसलमानों की जलती लाशें देखी हैं। उनके मकानों में भड़कती आग का धुआं देखा है। बर्बादी के बाद उजड़े मकानों की वीरानगी देखी है। उजड़ी जिंगदियों से भी रूबरू हुआ हूं। यतीमों और विधवाओं से लिपटकर रोया भी हूं। लेकिन इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि ये सब कुछ सिर्फ मज़हब की नफ़रत नहीं बल्कि सोची समझी राजनीत का हिस्सा थी। मुनव्वर राना का शेर याद आ रहा है। क्या ख़ूब कहा है।
जख़्म तो हमेशा भर ही जाते हैं। मगर जख़्मों के निशान नहीं मिटते। मगर हमारी  आदत बन गई है कि हम सबकुछ भूल जाते हैं। इस मुल्क में नसबंदी के नाम पर जो कुछ मुसलमानों के साथ हुआ मैंने तो देखा नहीं। लेकिन पुराने अखबारों में पढ़ा ज़रूर है। सिर्फ मुसलमान ही नहीं दूसरी कौमें भी इस ज़ुल्म का शिकार हुई थीं। मगर कोई भूला या न भूला मुसलमान वो सब कुछ भूल गया। दंगे एक नहीं हज़ारों हुए। वो सब कुछ भूल गया। बाबरी मस्जिद से भला कौन मुसलमान बेख़बर है। जो कुछ हुआ मैं बताने की ज़रूरत नहीं समझता। लेकिन एक मुसलमान है सब कुछ भुलाकर फिर कांग्रेस का पिछलग्गू बन गया। कांग्रेस अपने आपको धर्मनिरपेक्ष पार्टी बताती है। मुझे तो हंसी आती है उसकी धर्मनिरपेक्षता पर। हां इतना ज़रूर है कि इस पार्टी ने धर्मरपेक्षता का मुखौटा ज़रूर पहन रखा है। इस मुल्क में मुसलमानों की मुसीबतों और उनके पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कांग्रेस ने ढिंढोरा तो ख़ूब पीटा। मगर क्या उसे दूर करने के लिए कोई अमली जामा पहनाया? सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने सही मायने में कांग्रेस की बईमान नीयत की ही पोल खोली है। ये सवाल मैं आम मुसलमान से पूछ रहा हूं। क्या ऐसा हुआ है? नई सरकारें आती हैं, नए नए आयोग बनते हैं। और नए नए वायदों के काग़जी मसौदे तैयार होते हैं। लेकिन वो हमेशा दफ्तरों की फाईलों में धूल चाटते चाटते दम तोड़ देते हैं। ईमानदारी बरती गई होती तो 62 साल की आज़ादी में  मुसलमानों का यही हाल हुआ होता जो आज है? आंकड़े गवाह हैं कि सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की तादाद कितनी है। यही आंकड़े नेताओं की बेईमान नीयत की पोल खोलते हैं। यदि आप मेहनत के बूते पर किसी ओहदे पर हैं भी तो आपको आपकी औक़ात की जगह पर रखा जाता है। एक बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने बयान में ख़ुद ये क़बूला कि मुसलमान अफसरों की अनदेखी की जा रही है। उन्होंने मुस्लिम अफसरों को ठीकठाक जगहों पर तैनात किए जाने की सिफारिश भी की थी। लेकिन इस पर भी अमल नहीं हुआ। कुछ मुसलमान अफसर दिखावेभर के लिए ज़रूर हैं। जिनको ठीकठाक जगहों पर तैनात किया गया है। मगर ऐसे अफसरों को महज़ उंगलियों पर गिना जा सकता है। या फिर कुछ मुसलमान चापलूसी कर किसी मुक़ाम पर पहुंच गए हैं। सरकार के इस बारीक खेल को मैं नज़दीक से जानता हूं। बहुत सारे मुसलमान अफसरों का दुखड़ा सुन चुका हूं। जिनको नौकरी करना भी भारी पड़ रहा है। वो अपने आपको 32 दांतों के बीच अकेली ज़ुबान महसूस करते हैं।
1984 में दिल्ली ही नहीं देशभर में सिखों का क़त्लेआम हुआ। मुक़दमे चले, आयोग बने। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर आरोपी सज़ा के अंजाम तक पहुंचे। अब दूसरी और 1992 में सीलमपुर में दंगा हुआ। सरेआम मुसलमानों का क़त्ल हुआ। लुटे-पिटे और हवालात की हवा खाई। मगर किसी दोषी को आज तक कोई सज़ा नहीं मिली। जिन मुसलमानों पर मुक़दमे लगे उन्होंने बरसों अदालत की दहलीज़ पर अपनी जूतियां रगड़ीं। आख़िरकार वो अदालत से बरी तो हो गए। लेकिन सही माएने में एक सज़ा भुगतने के बाद। हैरत की बात तो यह है कि जिन मुसलमानों पर दंगा करने के मुक़दमे बने उनमें दर्जनों कांग्रेसी कार्यकर्ता भी थे। और वो लोग आज भी कांग्रेस के साथ जुड़े हुए हैं। मैं एक-एक का नाम जानता हूं। मिसाल के तौर पर मक़सूद जमाल नाम के एक शख़्स हैं। जो दंगे के दौरान पुलिस की लाठियों का शिकार बनें। बुरी तरह ज़ख़्मी हुए। पहले अस्पताल गए। फिर जेल की हवा खाई। मुक़दमा चला। बरसों अदालत के चक्कर काटे। बाद में बरी हो गए। लेकिन वो आज तक कांग्रेस की ग़ुलामी से बाहर नहीं आ सके। ये तो सिर्फ एक मिसालभर है। सब कुछ सहने के बाद भी मुसलमान कुछ नहीं समझता। दरअसल कांग्रेस के साथ जुड़े रहने के पीछे कोई मजबूरी नहीं बल्कि स्वार्थ छिपे हैं। आम मुसलमान समझे या न समझे मगर मैं ज़रूर समझता हूं। हज़ारों मुसलमानों के क़त्ल का यही हाल हुआ है। एक और दंगे का मैं चश्मदीद हूं। उत्तर प्रदेश के खुर्जा क़स्बे में क़रीब तीन सौ मुसलमान मारे गए। एक लड़का शाकिर जिसकी उम्र उस वक्त करीब 15 साल थी। उसके परिवार और रिश्तेदार मिलाकर कुल 27 लोग एक ही वक्त में आग के हवाले कर दिए गए। शाकिर अभी ज़िंदा है। दोषियों को सज़ा तो बहुत दूर की बात पुलिस उनका पता तक नहीं लगा पाई। लेकिन मुसलमान  सारे जख़्म भूल गया। दिल्ली के मुसलमानों ने तो बहुत जल्द ही सब कुछ भुलाकर कांग्रेस का दामन थाम लिया। अब बारी उत्तर प्रदेश की है। जहां मुसलमानों ने कांग्रेस को गले लगाने की क़वायद शुरू कर दी है। काश मुसलमानों ने सिखों से भी कोई सबक़ सीखा होता।
हिंदुस्तान के इतिहास के पन्नों को ज़रा पलटये। इस मुल्क में अगर सबसे ज़्यादा शोषण किसी का हुआ है तो वो दलित बिरादरी। ये तबक़ा सदियों से दबा कुचला था। दाद देनी पड़ेगी डाक्टर भीमराव अम्बेडकर को। जिस शख़्स ने अपनी क़ौम के दर्द का अहसास किया। और दलितों को एक दिशा दिखाने का काम किया। क़ाबिले तारीफ काशीराम भी हैं। जिन्होंने दलितों के विकास का जो बीज बोया उसका पौधा अब फल देने लगा है। दलितों की हालत आज मुसलमानों से कहीं बेहतर है। आज वो भीख के टुकडों पर नहीं पलते। अपने वोट के दम पर सत्ता के भागीदार बनते हैं। आज उनकी भागीदारी हर जगह नज़र आती है। प्रशासन, न्याय पालिका या फिर कार्य पालिका। मगर मुसलमान हर जगह से नदारद है। उसकी हिस्सेदारी कहीं नज़र नहीं आती। ये हालात अचानक नहीं बदले। इसके लिए दलितों ने अपनी बिरादरी के लोगों को वोट की ताक़त का एहसास कराया। और जब वोट की ताक़त उनकी समझ में आई तो सत्ता का सुख मिलने में कोई देर नहीं लगी। एक अनपढ़ क़ौम जागरूक हो गई। आज हालात ये हैं कि पूरे देश में दलितों का वोट उनके नेताओं के आदेशानुसार ही पड़ता है। आज वो संगठित हैं। बिना शर्त वो किसी को समर्थन नहीं देते। पहले अपने मतलब की बात करते हैं बाद में समर्थन की। लेकिन एक मुसलमान है। जो जज़्बात में आकर बिना किसी शर्त, बिना सोचे समझे किसी को भी अपना वोट दे देता है। ज़रा कोई उसकी शान में चार शब्द कह दे, बस उसी पर अपना सबकुछ न्यौछावर कर देता है। एक दलित को वोट की ताकत का अहसास हो गया लेकिन मुसलमान को कब होगा ये तो ख़ुदा ही जाने। इसके लिए हम मुसलमानों के नेता भी ज़िम्मेदार है किसी ने हमारी रहनुमाई नहीं की अगर करने की कोशिश की तो उसकी आवाज़ दबा दी गई और हम बैठे देखते रहे बतला हाउस इसका एक नमूना है अज उलेमा काउन्सिल उठी है अल्लाह से दुआ करता हु की आगे बढे मगर अगर हम साथ देगे तब ना हम तो बैठ कर तली बजने का ही काम करते है और मेरे ये नहीं समझ में आता है की कब तक हम तली बजेगे कभी हमारे लिए तली भी बजेगी या ऐसे ही हम रहेगे किसी नेता को पकड़ा तो उसी मुल्ला समझ बैठे अपना मसीहा बना बैठे क्या आज तक उस पार्टी को एक मुसलमान मुख्यमंत्री नहीं मिल सका है हमेशा मुलायम ही रहेगे .......................
ए मुसलमानों अपने आपको संगठित कर सत्ता में भागीदारी हासिल करो। सत्ता में भागेदारी मिली तो मसाइल सारे अपने आप हल हो जाएंगे। अपना हक़ हासिल करो। भीख के लिए दामन फैलाना छोड़ दो। खद्दरधारियों की कैद से खुद को आज़ाद करो। अपने वोट की ताक़त को पहचानो। संगठित होना सीखो। किसी भी एक पार्टी की ताबेदारी से बाहर आओ। जो सत्ता में भागेदारी दे। उससे अपने वोट का सौदा तय करो। एक बात और बता दूं। इसके लिए संगठन बनाने की सख़्त ज़रूरत है। संगठन बनाना ही नहीं उसे मज़बूत भी करना है। इसके लिए अभियान भी चलाना पड़ेगा। ज़मीन तैयार किए बिना कुछ नहीं होगा। एक संगठन है आरएसएस। वो चुनाव नहीं लड़ता मगर भाजपा पार्टी के सारे फैसले उसी के दरबार में होते हैं। जिक्र आरएसएस का आया है तो थोड़ा उसके बारे में भी बता दूं। 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले आरएसएस को इस बात का पूरा एअहसास हो गया था कि बिना मुसलमानों के आडवाणी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। इसके लिए आरएसएस ने बाक़ायदा एक मुस्लिम राष्ट्रीय मंच बनाकर मुसलमानों को गले लगाने की क़वायद शुरू कर दी थी। मरहूम जमील इल्यासी जो अपने आपको इमामों की तंज़ीम का सदर कहते थे वो और उनके बेटे उमैर इल्यासी एक बार नहीं कई बार लाल कृष्ण आडवानी से मिले। इनकी मुलाक़ात आरएसएस के बड़े नेता इंद्रेश कुमार से भी हुई। इसके अलावा कुछ उलेमा और भाजपा नेता शहनवाज़ हुसैन की अनेक बार श्री आडवाणी के साथ लंबी-लंबी मुलाक़ातें हुईं।मगर नतीजा क्या है आप देखो भाजपा में बड़े ओहदे पर हैं शहनवाज़ हुसैन। सरकार में मंत्री भी रहे हैं। पार्टी के टिकट पर दूसरी बार लोकसभा में भी पहुंच गए। पार्टी में  उनकी औक़ात क्या है। जान लीजिए। दिल्ली में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान टिकटों का बटवारा हो रहा था। एक तरफ लोकसभा चुनावों के मद्देनजर मुसलमानों को गले लगाने की क़वायद का सिलसिला जारी था। तो दूसरी तरफ मुसलमानों की औक़ात बताई जा रही थी।टिकट सीताराम गुप्ता नाम के एक आदमी को मिला। शाहनवाज़ की लाख कोशिशों के बावजूद उनके किसी आदमी को टिकट नहीं मिला। भाजपा ने मात्र एक टिकट मुसलमान को दिया। यानि उंगली कटा कर नाम शहीदों में शामिल कर दिया।
हमें अपनी कुछ और खामियों पर भी नज़र डालनी होगी। हमने अपनी बुनियादी मुश्किलात को दरकिनार कर दिया है। और वक्त गुजर रहा है बेवजह की बातों में। मिसाल के तौर पर मस्जिद और मदरसों में सियासत देखने को मिल जाएगी। हमने इमामों और उलेमाओं की क़दर करना छोड़ दिया है। हालात तो यहां तक पहुंच गए हैं जिन लोगों के घर में बच्चे और बीवी नहीं सुनते वो इमाम, मुअज़्ज़न और उलेमाओं  पर हुक्म चलाते नजर आते हैं। अकसर मस्जिद और मदरसों में गुटबाज़ी दिखना आम बात हो गई है। अरे भाई ये लोग मज़हब का काम कर रहे हैं। इन्हें करने दो। जिसको क़ुरान और हदीस की सही जानकारी न हो उसे मज़हब के काम में दखल नहीं देना चाहिए। लेकिन मज़हब से दूर भी नहीं रहना चाहिए। सही मायने में हम लोगों ने दीन का दामन नहीं थामा है। भाई लोगो उलेमा हमारे रहनुमा हैं। उनकी इज़्ज़त करना हमारा फर्ज़ है। इसलिए बेवजह की बातों से दिमाग हटाकर सही दिशा में ध्यान लगाओ। हमें जरूरत है सियासी तंजीम पर काम करने की। हमें ज़रूरत है एक इंक़लाब की। हमको भागीदारी के लिए देश में एक आंदोलन खड़ा करना होगा। उसके लिए तहरीक चलाएं, मुसलमानों को जगाने का काम करें। इस पर हमारा वक्त खर्च होगा तो हो सकता है कि भागीदारी के पेड़ की जड़े मज़बूत होने लगें। ये भी मुमकिन है कि  पेड़, फल फूल गया तो फल हम खाएंगे। और तैयार होने में देर लगी तो हमारी नस्लों को फल ज़रूर मिल जाएगा। पहला काम है ज़मीन में पौधा लगाने का। बाद में उसे खाद और पानी देने का। इसके लिए हर गांव, मोहल्ले, क़स्बे, और शहरों में तंज़ीम कायम करनी होगी। जिसका मक़सद सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को संगठित करना हो। साथ हे एक बात और ध्यान से सुनो मेरे भैया एक बात का ख़ुलासा करना ज़रूरी समझता हूं। हम लोगों को फ़िरक़ा परस्ती से बहुत दूर रहना होगा। अगर कुछ लांछन लगते भी हैं तो उनको सीना चौड़ाकर धोना भी पड़ेगा। चूंकि इस मुल्क की यह भी एक सच्चाई है कि यहां का बहुसंख्यक हिंदू फ़िरक़ा परस्त नहीं है। ये बात अलग है कि चंद लोग बुरे हो सकते हैं। चंद लोग तो मुसलमानों में भी बुरे हैं। जिनके कारनामों की वजह से पूरे मुसलमानों को गाली सुननी पड़ती हैं। इस मुल्क में दंगे ख़ुद कभी नहीं हुए। हमेशा उसके पीछे कोई न कोई सियासी खेल छिपा था। मैं चंद मिसालें पेश करता हूं जिनसे ये साबित होता है कि हिंदू फ़िरक़ापरस्त नहीं है।भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरपरस्त आरएसएस 18 फ़ीसदी मुसलमानों की मुख़ालफत करके आज तक अकेले दम पर इस मुल्क में सत्ता हासिल नहीं कर सकी। चूंकि इस देश में रहने वाले बाक़ी हिंदुओं को 18 फ़ीसदी मुसलमानों की मुख़ालफत नागवार गुज़रती है। ये बात अलग है कि अब आरएसएस और भाजपा की भी ये समझ में आ गया है कि हम लोग बिना मुसलमानों के सत्ता की सीढियां पार नहीं कर सकते। जब 82 फीसदी लोगों में फ़िरक़ा परस्ती का फर्मूला फ़ेल हो गया तो हम 18 फीसदी लोग फ़िरक़ा परस्ती का लिबादा ओढ़कर कैसे कामयाब हो सकते हैं। मेरा मानना है धर्मनिरपेक्ष लोगों को हमारी भागीदारी की मुहिम से कोई गुरेज नहीं होगा। एक बात और बता दूं। मुल्क के बटवारे का बीज जिसने भी बोया उसने मुसलमानों के हक़ में ऐसे कांटें बिखेरे हैं जिनको समेटना अब नामुमकिन है। न पाकिस्तान का मुसलमान सुकून से है और न बांगलादेश का। काश बटवारा न हुआ होता तो सत्ता में हमारी भागीदारी पूरी होती। हमारा मुल्क दुनिया में शिखर पर होता। हम दुनिया के तमाम मुल्कों की फ़ेहरिस्त में सफे अव्वल पर होते। लेकिन नफ़रत की बुनियाद पर बना  पाकिस्तान आज पूरी दुनिया में मुसलमानों के नाम पर कलंक साबित हो रहा है। ज़रा मज़हब-ए-इस्लाम को पढ़ कर तो देखो। कौन सी हदीस या क़ुरान में लिखा है कि डंडे के बल पर इसलामी झंडा बुलंद करो। अरे क़ुरान की साफ़ आयत है। लकुमदीनुक वलयेदीन। तुम्हारा दीन तुम्हें मुबारक और मेरा दीन मुझे मुबारक। इस्लाम तो अपने अख़लाक के दम पर फैला है। खानक़हों से फैला है। हज़रत मोहम्मद सल्ल. की ज़िंदगी और सहाबा हज़रात की जिंदगी उठाकर देखो। साबित होता है कि इस्लाम तलवार के बूते पर नहीं फैला। हिंदुस्तान में आज भी एक तंज़ीम है।  हज़ूरे अकरम सल्ल. ने जब दुनिया से पर्दा किया तो सहाबा इकराम को वो कौन सा डंडा थमा कर गए थे कि आप इसके दम पर इस्लाम फैलाना। वो अपनी ज़िंदगी और क़ुरान छोड़ कर गए हैं। ज़रूरत है उनकी ग़ुजरी हुई जिंदगी और कुरान पर अमल करने की। इसलिए मैं मुलमानों से गुजारिश करता हूं कि वो ज्यादा से ज्यादा हदीसें और तर्जुमे के साथ क़ुरान को पढ़ें। क़ुरान को समझ कर पढ़ना बेहद जरूरी है। ख़ुद पढ़ना न आता हो तो उलेमाओं की सोहबत में रहकर इल्म हासिल करें। एक बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इस्लाम के क़ायदे क़ानून मानने वाले के अख़लाक़, ख़राब हो ही नहीं सकते। ये अख़लाक़ की ही वजह है कि आज दुनिया में सबसे तेजी से फैलने वाला अगर कोई मज़हब है तो वो सिर्फ और सिर्फ इस्लाम। लिहाज़ा हिंदुस्तान में रह रहे लोगों को मेरा मशविरा है कि वो अपने अख़लाक़ बेहतर बनाएं। और अख़लाक़ को ही अपना हथियार बनाकर सत्ता में भागीदारी की लड़ाई लड़ें। मैं मज़हब की किताबों के हवाले से दावा करता हूं कि जो आदमी बेहतर इंसान नहीं वो मुसलमान हो ही नहीं सकता।
अंजाम और कहानिया देख लो याद है ना बटला हाउस ऐंनकाउंटर की जिस पर जम कर  राजनीति की रोटियां सेंकी गई। सियासत सब ने की। कांग्रेस हो, भाजपा, सपा, बसपा, आरजेडी समेत और कई दलों ने इसी मुद्दे पर अपनी-अपनी दुकानदारी काफी दिनों तक चलाई। दुकान नेताओं की ही नहीं चली बल्कि मीडिया वालों को भी अपनी दुकान चलाने का मौक़ा मिला। मीडिया ने अगर जिम्मेदारी बरती होती तो ये कोई मुद्दा ही नहीं था। दरअसल 2009 का लोकसभा चुनाव नज़दीक था। सियासत लाज़मी थी। कांग्रेस ने मुस्लिम वोट हासिल करने की गर्ज से इस मामले को कुछ ज्यादा ही तूल दिया। जैसा वो हमेशा से करती आई है वही हुआ। चुनाव ख़त्म। मुद्दा ख़त्म। लोगों के सामने सच्चाई आज तक नहीं आई। और न आएगी। सरकार तब भी कांग्रेस की थी और आज भी। ज़रा उस दौरान के तमाम न्यूज़ चैनलों की क्लिपिंग उठाकर देख लीजिए। हर कोई मीडिया वाला ख़ुद ही जांच ऐजंसी और ख़ुद ही जज बनकर फैसला सुना रहा था। सबकी कहानी जुदा थी। न्यूज़ चैनलों का किसी एक बात पर इत्तिफाक़ नहीं था। अब मर्ज़ी है आपकी साड़ी ज़िन्दगी की गुलामी या फिर हमेशा की आज़ादी

हिंदुस्तान मे मुसलमान

फिरंगियों ने हिंदुस्तान पर क़ब्ज़ा हम मुस्लिमो से लिया इसलिए हम उनके सबसे बड़े दुश्मन थे और फिरंगियों को डर था की कही मुस्लिम हमे अपने देश से बहार ना करदे इसलिए उन्होंने मुसलमानों का दमन किया और देश में मज़हबी नफरत के बीज बो दिए और देश की एकता को तोड़ने के लिए उन्होंने हिन्दू मुस्लिमो को बाट दिया ताकि ये दोनों एक होकर उन्हें देश से बहार न कर सके और आ...पस में ही लड़ते रहे इस काम के लिए उन्होंने बकिम चाँद चटर्जी जेसे कुछ हिन्दुओ को ख़रीदा और मुसलमानों के See full size imageखिलाफ कुछ हिन्दुओ को गुमराह करवा दिया फिर फिरंगियों ने बाबरी मस्जिद मुद्दे को जन्म दिलवा दिया और कुछ हिन्दुओ को वो बात बता दी जो थी ही नही अगर होती तो तुलसीदास जी को पहले पता होता और उनसे पहले लोगो को भी पता होता और वो लिखते भी और इसके बाद फिरंगियों ने सत्ता के लिए देश में नफरत के बीज बो दिए ....
उसके बाद नेहरु जिन्ना और पटेल ने सत्ता के लिए देश को मज़हबी हिंसा में झोक दिया और देश का बटवारा कर लिया जिसका सबसे जादा नुकसान मुसलमानों को हुआ उस वक़्त अराजकता का माहोल बना कर देश को नफरत के चूल्हे में झोक दिया गया क्योकि अगर मुसलमानों को बटते न तो उनका राजनितिक शोषण नही किया जा सकता था क्योकि वो मुस्लिम लीग के साथ भी जा सकते थे और फिर ना तो मुसलमानों कि अवाज़ को दबाया जा सकता था और ना मुसलमानों को सियासी मोहरा बनाया जा सकता था क्योकि मुसलमानों के पास उनकी रहनुमाई करने के लिए एक सियासी पार्टी मोजूद होती लेकिन कांग्रेस की चाले जिन्ना को भड़काने में कामयाब हुयी और जिन्ना ने अपने हट के आगे बेहिसाब लोगो को कटवा दिया लेकिन हिन्दुस्तान को अपनी माँ मानने वाले मुसलमानों ने जिन्ना का साथ ना दिया और कांग्रेस के साथ चले गये इस मिटटी में हमारा खून शामिल था हमने आजादी के लिए अपने खून को पानी की तरह बहाया था और इस तरह देश के टुकड़े ही मुसलमानों को कमज़ोर करने के लिए करवाए गए थे और फिर अपने मकसद में कामयाब होते हुए हिनुस्तान में मुसलमनो के रहनुमा कांग्रेस बन गयी और कांग्रेस ने हिंदुस्तान पर अपना परचम फेहरा दिया और लगभग ४ दशको तक कांग्रेस के शासन का दबदबा रहा..
फिर कांग्रेस की तानाशाही से परेशां मुसलमानों ने दूसरी पार्टियों की तरफ भी रुख किया लेकिन मुसलमानों की सियासी हेसियत इतनी कमज़ोर हो चुकी थी की वो एक फूटबाल की तरह हो गयी एक पार्टी से लात खाकर दुसरे के पास जाना मुसलमानों की मज़बूरी बन गयी और सभी पार्टियों मुसलमानों को अपने फायेदे के लिए अपने पैरो से घुमाती रही..

इसके बाद अडवानी ने रथ यात्रा निकाल कर पहले से ही टूट चुके और घुटनों के बल
hath जोड़ कर बेठे मुसलमानों को दुश्मन करार देते हुए मुसलमानों के खिलाफ एकजुटता का आवाहन करते हुए सत्ता तक पहुचने के लिए शोर्टकट हासिल कर लिया कांगेरसी शासन के वक़्त में मुसलमानों का आर्थिक और सामाजिक दमन किया जा चूका था और सियासी पार्टियों के मोहताज मुस्लमान बाबरी मस्जिद की शहादत तक सब समझ गये लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और मुसलामन हिंदुत्वा नाम के आतंक से बचने के लिए सियासी पार्टियों के पीछे दुबकने लगे और वोट बैंक बनते रहे जिसका दिल चाह कुछ मुसलमानों को ख़रीदा और मुसलमानों का रहनुमा साबित कर दिया फिर सभी लोग मलाई खाते रहे और जिस बीजेपी को मुस्लिम हारे हुआ देखना चाहते थे ये लोग उसी बीजेपी से हाथ मिलाते रहे...
मुस्लमान कटोरा लेकर सभी सियासी पार्टियों से अपने वजूद के लिए भीख मांगता रहा किसी ने इतना भी ना दिया जो कोम फिर कड़ी हो पाती गरीबी से बुख्मारी तक पहुची मुस्लिम कोम अपने बच्चो का पेट भरने के लिए रिक्शा चलाने, चाय बेचने, झुतन साफ़ करने लगी या फिर तलवे चाटने वाला गुलाम बन गयी..

ये वही मुसलमान था जो कभी हिन्दुस्तान का बादशाह था


और २००२ में गुजरात में जो कुछ मुसलमानों के साथ हुआ सारे देश ने देखा लेकिन मुसलमानों की हिफाज़त करने के लिए कोई नही आया मुसलमानों की लडकियों को नंगा करके नचाया गया सब देखते रहे नुसलमन लडकियों को हवस का शिकार उनके बाप और भाई की आँखों के सामने बनाया गया और जब लड़की मर गयी तो इन दरिंदो में से कुछ ने नंगे बदन पर चादर दाल दी और मुसलमानों का रहनुमा बन गया हमारा घर जलाया गया
, हमे लूटा गया, बेआबरू हम हुए, बेघर हम हुए, यतीम हम बने, और इसके बाद क्या क्या हुआ सब जानते हैं लेकिन आँखे बंद किये हुए है..

1-जो कांग्रेस अपने सांसद अहसान जाफरी को ना बचा सकी वो तुम्हारी हिफाज़त क्या करेगी..??

2-वो मायावती जो दंगो के बाद मोदी का साथ देने गयी थी क्या वो तुम्हारी हो सकती हे..??

3-वो मुलायम सिंह जो चंद वोटो की खातिर बाबरी मस्जिद के गुनाहगार को अपने साथ ले आया क्या वो तुम्हारा रहनुमा हे..??

4-जवाब दो क्यों देश में गुलामो से बुरि ज़िन्दगी जी रहे हो..??

5-कब तक उस कांग्रेस को अपना रहनुमा समझोगे जो बीजेपी की तरह ही तुम्हारी दुशमन हे..??

6-कब तक अपनी इज्ज़त को बेचते रहोगे खुदा को क्या जवाब दोगे मैदाने हश्र में..????

7-2% की गिनती रखने वाले सीखो का पिरधानमंत्री हे आज और तुम लगभग १८% हो तुम क्यों नही बना सकते अपना पिरधानमंत्री..??

8-कांग्रेस का युवराज राहुल गांधी मंच पर खड़े होकर कहता हे की जब मुसलमानों में कोई इस काबिल हुआ तो वो भी पिरधानमंत्री बन जायेगा मैं पूछता सभी मुसलमानों से क्या २० करोर में कोई खुद को इस काबिल नही मानता जो देश चला सके..??

9-तुम जितने भी मुस्लमान मेरी बात सुन रहे हो सब खुद को इस काबिल मानते हो तो बोलते क्यों नही..??

10-अपना हक मांगते क्यों नही..??

11-एकजुट होकर आते क्यों नही..??

कब तक ऐसे शर्मसार होते रहोगे तुम लोग अब उठो और एक दुसरे का हाथ पकड़ कर इतनी बुलंद आवाज़ ने नारा दो ताकि अब तक मुसलमानों को मोहरा बनाने वालो के क़दमो की ज़मीन हिल जाये
..........

हिन्दुस्तान के बादशाह हम थे हमने अपना खून देकर देश की हिफाज़त की हे छोटे छोटे टुकडो में बटे देश को हमने अखंड भारत बनाया था लेकिन आज हमे विदेशी कहा जाता हे देशद्रोही माना जाता हे और वो लोग जो आजादी की लडाई में फिरंगियों के साथी थे आज सबसे बड़े देशभक्त कहलाते हे हमारी क़ुरबानी को इतिहास से हटा कर कूड़े के ढेर पर फेक दिया हे हमारी देश के लिए दी गयी कुर्बानी को ऐसे ही जला दिया गया हे जेसे दंगो में हमे जिंदा जलाया जाता हे और अगर तुम अब भी न जागे तो तुम्हारे बच्चो को अमन का हिन्दुस्तान न मिल सकेग............

Friday 25 March 2011

लखनऊ विश्वविश्यालय- सब कुछ लुटा कर होश में आये तो क्या किया

लखनऊ विश्वविद्यालय हमेशा चर्चा का विषय रहा है आज फिर एक बार चर्चा का विषय बना है कारण कोई फख्र करने वाला See full size imageविषय नहीं है कारण कुछ इस प्रकार है की विश्वविद्यालय जद्दोजहद कर रहा है सरकार से अनुदान पाने के लिए क्यों की लखनऊ विश्वविद्यालय इस समय ४२ करोड़ के घाटे में चल रही है अब विश्वविद्यालय प्रशासन परेशां है की किस प्रकार एस घाटे से उबरा जाए और इस मंथन में है की कैसे खर्चा कम किया जाए और आय का साधन बढाया जाए सभी कुलपति जी के साथ सभी बुद्धिजीवी लगे हुवे है मंथन में इस मंथन का एक हल इस "तुच्छ प्राणी" के पास भी है अगर कुलपति जी गौर फरमाए तो कुछ ऐसा है
१.शुरू करते है विश्वविद्यालय के निर्माण विभाग से! हर तरह से सक्षम यह विभाग २०० कर्मचारियों से सुसज्जित है जिसको आप कुर्सी पर बैठ कर वेतन देने की सुविधा प्रदान किये है क्यों की इनका कार्य आप बाहरी agency से करवाते है अगर बाहरी को बाहर तक रहने दे और जिनको एन कार्यो का वेतन आप दे रहे है वह सारा काम आप उनसे करवाई तो लगभग १०-१२ करोड़ तो बच ही जायेगा अन्यथा २०० लोगो का वेतन बचा ले वैसे २०० के पेट पर लात मरने से बेहतर है की २-४ लोगो का Undertable भत्ता कट जाए 
२.आपको याद होगा की पिछले साल सफाई कर्मियों की पड़ताल हुए थी जिसमे आपको पता चला था की २०% कर्मी मर चुके है और २०% बिस्तर से उठ नहीं सकते है यही अकड़ा उद्यान विभाग का भी आया था तो आप ये पता लगा ले की जो मर चुके है उनका वेतन कौन भूत खा रहा है और जब पता लग जय तो उन भूतो से कहिये की भूत जी अब आप अपनी सेवा समाप्त करिए ( यदि आपको ना पता हो तो वरना मैंने तो सुना है की बॉस को सब पता रहता है) बिस्तर वालो का वेतन भी बच जायेगा अगर बचाना चाहे तो 
३. अंक पत्र छपने का कार्य आप बाहरी ठेके पर करवा रहे है और वो भी करोडो में अगर वाहे कार्य अगर कंप्यूटर विभाग से करवाई जय तो करोडो बच जायेगा 
४. थोडा सुरक्षा ठेक कर दे क्योंकी मछली द्वार पर रक्खा ३० लाख का लोहा और अन्य सामान चोरी हो सकता है तो कही किसी रोज़ विश्वविध्यालय ही गायब न हो जाए समझ रहे है न मै क्या कहना चाहता हु .............     समझदार है कुलपति जी............ आपके साथ साथ जनता भी.........
भाई लोग समझा करो आपलोग मत समझो केवल कुलपति जी को समझने दो.......... देखो........नहीं......नहीं.............,,,,,,,,,,,,,अब क्या करे कुलपति जी जनता भी समझदार है समझ जाती है जैसे आप विभागों के सामन बदलवाते है कभी खबर नहीं रखते है की बदला हुवा सामान कहा गया जनता समझती है कहा गया क्यों की इसको मार्केट में बेचा भी जा सकता है ना और इसकी अच्छी कीमत मिलती है खैर कोई बात नहीं
पता करियेगा कही गायब तो नहीं हो गया है क्यों की अपना विश्वविध्यालय तो निपूर्ण है गायब करने में जब तेच्निकल औडिट सेल से निर्माण कार्यो के लिए दिए गई धन की औडिट करवाने की चिट्ठी गायब हो सकती है तो ये तो सामान है 
५.आपने ४-४ लाख रुपैया पक्टोरियल बोर्ड और छात्र कल्याण विभाग को निधि में बढ़ा दिया अब उनको खर्चा कर नहीं पते है तो पहले उनको खर्चा करना सिखाइए या फिर बढ़ोतरी वापस ले लीजिये
६. ऐसे मैंने सुना है कही की यदि आदमी इमानदारी से काम करे तो काम समय से पूरा हो जाता है मगर आप तो दरियादिल है आप overtime करवाते है और उसका भुगतान करते है और दरियादिली का हाल ये है की आप भुगतान भी चेक से नहीं DD से करते है अगर चेक से करेगे तो DD का खर्चा कैसे आयेगा और बैंक की कमाई कैसे बढ़ेगी आप तो दरियादिली में सबसे ऊपर है तभी तो अध्यापको को परीक्षा के उन कार्यो में भी लगते है जिनके लिए अन्य कर्मचारियों को वेतन देते है अगर उनसे लेगे तो शिक्षक कैसे कमैगे 
आदरणीय कुलपति जी आपके ज्ञान हेतु बता दू के आपके विश्वविद्यालय को मिलने वाला अनुदान आम जनता की गाढ़ी कमाई है और ये जनता है सब जानती है लीजिये कागज़ पर कम्वादिया आपका घटा ४२ करोड़ का अब आप इसको गल्ले तक कैसे लाते है देख लीजिये इससे पहले की जनता जागे और जनता की शक्ति कितने होती है ये आप मिश्र का उदहारण देख सकते है अब मर्ज़ी है आपकी मगर ये याद रखियेगा पैसा है हमारा
धन्यवाद

आखिर क्या है जिसकी की पर्दादारी है

UP Board की परीक्षाये 
UP बोर्ड की परिक्षये शुरू हो चुकी है बोर्ड और शिक्षा विभाग के निर्णय के तहत मीडिया को अन्दर जाने की अनुमति नहीं है जानकर आश्चर्य हुवा की आखिर ऐसा क्या है जो इतनी पर्दादारी है इस विचार में बड़ा मंथन किया परन्तु निष्कर्ष न निकल पाया मेरे एक मित्र है वाराणसी के अमित पाण्डेय जी ऐसे ही उनसे चर्चा कर बैठा , हसमुख मिजाज़ के अमित जी उर्फ़ रामू पाण्डेय ने अपना विचार रक्खा तो हंसी आगई उन्हों ने कहा "गुरु समझा करो अन्दर अगर नक़ल हो रही होगी तो मीडिया छाप देगी सर्कार को एक्शन लेना पड़ेगा अब न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी" इसको सुनकर हंसी आये पर सरकारी तंत्र पर और उसकी सोच का क्या है इसका निर्णय करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है 
खैर ! कई तरह की समस्याओ और आलोचनाओ के बाद साथ परीक्षा का खेल शुरू हो गया परीक्षा केंद्र की व्यवस्था और उसकी स्थिति क्या होगी इसका अंदाजा इस से लगाया जा सकता है की १७ मार्च से शुरू होनी थी और किसी भी प्रधानाचार्य को इसकी जानकारी नहीं थी की उनके केंद्र पर कितने परीक्षार्थी परीक्षा देने आरहे है उन्हें जानकारी मिली १० मार्च को अब एक हफ्ते का समय और तय्यरिया पूरी करना है.के पास तो एक चिराग का जिन था मगर इन अलादिनो के पास कोई जिनी नहीं था फर्नीचर नहीं है तो टेंट हाउस की कुर्सी अगेर लगन के कारन वह भी उपलभध नहीं है
तो दरी से काम चला लो और वो भी नहीं है तो "धरती माता की जय................." ज़मीन तो है ही ना कुछ विद्यालय ऐसे भी है जिनके पास अभी तक इंतज़ाम नहीं हो पाया है परन्तु शिक्षा विभाग को क्या है परीक्षा करवानी है तो करवानी है. वैसे भी ये बोर्ड "शोध" का साधन रहा है जैसे एस बोर्ड पर सबसे बड़ा शोध हुवा आदरणीय कल्याण सिंह जी के शासनकाल में जहा नक़ल अध्यादेश लागु हुवा जिसमे नक़ल करते परीक्षार्थी को केवल निष्कासित ही नहीं किया जाता था परन्तु उसके ऊपर FIR तक होती थी और उसको जेल जाना पड़ता था ! अब ये कल्याण जी और बीजेपी के अपनी सोच का हिस्सा था वैसे भी इनको ज़मीनी हकीकत कभी पता तो थी नहीं कही इस अध्यादेश का सदुपयोग हुवा कही स....स.......स.......स.......स.....सदुपयोग हुवा परिणाम परीक्षाफल १३% कारण छात्रो के अन्दर बैठा डरर्र्रर्र्र ...............
इसका अहसास मुझे है क्यों की उन १३% सौभाग्यशाली में एक मै भी था क्या हालत होती थी मै समझ सकता हूँ 
खैर एक और शोध है देखते है कितना सफल होता है

Thursday 24 March 2011

INDIA IS STILL GOLDEN BIRD

See full size image"Indians are poor but India is not a poor country"
says one of the Swess Bank Directors.
He says that "28 Lacs carore"of indian money is deposited in Swess Banks which can be used for "Taxless" budget for the 30 years.cangive 60 caror jobs to all Indian
from any villege to delhi 4 lane Roads
forever free power supply to more than 500 social projects.
Every citizen can get monthly 2000/= for 60 years
No need for World bank or IMF Loan
Think how our money is blocked by rich and corrept politician
THINK FOR THIS.................................., FIGHT FOR THIS ...........................

Wednesday 23 March 2011

अवध विश्वविद्यालय का कमाल परिक्षये रद्द कारण............??????

देश में अब तक कई परीक्षा रद्द हुए है मगर आज जिस कारण से अवध विश्वविद्यालय ने अपनी तमाम परीक्षा रद्द की है उसका कोई मिसाल नहीं होगी
विश्वविद्यालय ने अपने परीक्षा इस कारण से रद्द की है की उसके पास छात्रो को परीक्षा लेने ke liye कॉपिया ही नहीं है  जानकार आश्चर्य हुवा या नहीं
एक विश्वविद्यालय अगर ऐसा कारण बता कर परीक्षा रद्द करता है तो कितने अफ़सोस की बात है अगर तैयारिया पूरी नहीं थी तो फिर आननफानन में परीक्षा क्यों चालू करवाई गई और अगर यह किसी त्रुटी का हिस्सा है तो ज़िम्मेदारी किसकी बनी इसका जवाबदेही किसकी होगी

शिक्षा मंत्री जी छात्र हित है या किसी का और हित

साभार दैनिक जागरण दिनांक २३.०३.२०११
देश का सबसे बड़ा शिक्षा बोर्ड उत्तर प्रदेश यानि up बोर्ड की 
परीक्षा १७-०३-२०११ से शुरू हो गई है परीक्षा के ठीक २ दिनों पहले यानी १५ मार्च को शिक्षा मंत्री जी के विशेष कृपा से २३ विधायालायो को और परीक्षा केन्द्रों की अनुमति दे गई है
अचरज हुवा न जान कर दरअसल किस्सा यह है की १५ मार्च को शासनदेश समष्ट जिलो को मिला जो दिनांक ११ मार्च का पारित था की "माध्यमिक शिक्षा अधिनियम की धरा ९(४) का प्रयोग होते हुवे २३ और विद्यालयों को परीक्षा केंद्र बनाया गया है अब ये ९(४) अधिनियम क्या है ये बताता चालू आपको ये वह अधिनियम है जो सरकार को विधमान सारे नियमो को शिथिल करते हुवे सरकार को किसी निर्णय का अधिकार देता है.अब प्रश्न उठता है की इस धरा का उपयोग करने की सरकार को आखिर आवश्यकता क्या पड़ गई आखिर उन विद्यालयों में ऐसा क्या है जो छात्र हित में आवश्यक था और अगर ऐसा कुछ है तो निर्धारित प्रक्रिया में शिथिलता क्यों थी उनको पहले ही क्यों नहीं केंद्र बनाया गया और उन परीक्षा केन्द्रों में जिनको बदल कर ये परीक्षा केंद्र बने है उनमे जब खराबी थी तो बोर्ड को पहले क्यों नहीं दिखाई दी और यदि ऐसा है तो उनको परीक्षा केंद्र गलत बनाने का दाइत्वा का निर्धारण क्यों नहीं हुवा ?
और सबसे हैरानी की बात यह है की २३ नई केन्द्रों में सबसे जादा आजमगढ़ के है फिर बाकी मिर्ज़ापुर,हाथरस,अम्बेडकरनगर की विद्यालय है अगर पूर्व शिक्षा मंत्री की डाक्टर मसूद अहमद की बात करे तो उनके कथन है की ये निर्धारण करोडो का खेल होता है अब प्रश्न यह आता है की उनके शासनकाल में भी ऐसा ही खेल होता होगा 
अब ये क्यों हुवा इसका सही जवाब तो वर्तमान शिक्षा मंत्री जी ही दे सकते है की ये छात्र हित है या किसी का और हित है  

Monday 21 March 2011

संघ को अगले प्रतिबंध का डर या इंतज़ार



हिंदू आतंकवाद के मुद्दे पर संघ पर आरोप लगने के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत चिंतित हैं। उन्होंने संघ प्रचारकों की मेजर सर्जरी करने की योजना बनाई है। संघ प्रमुख को विश्वास है कि संघ इस मुद्दे पर फिर पाक-साफ साबित होगा। राजस्थान और महाराष्ट्र एटीएस की धरपकड़ की कार्रवाइयों और मीडिया के स्टिंग ऑपरेशनों से परेशान संघ के सामने जैसी विकट परिस्थिति है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। संघ के समक्ष तीन बार चुनौतियां आई और तीनों बार वह कुंदन की तरह दमक कर निकला, लेकिन ताजा मामलों ने संघ को हिला दिया है। संघ को पहली चुनौती जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटे ने दी थी, जब मामला गांधी हत्या के षड्यंत्र के आरोप में संघ को 1948 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। बाद में अदालती आदेशों और सरदार पटेल के ही प्रयासों से प्रतिबंध हटा दिया गया था। दूसरी चुनौती 1975 में आपातकाल के दौरान आई, तब इंदिरा गांधी ने संघ की गतिविधियों को अवांछित घोषित कर न केवल प्रतिबंध लगा दिया था, बल्कि उसके हजारों कार्यकर्ताओं को जेलों में ठंूस दिया था। 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद यह प्रतिबंध हटा था। तीसरी चुनौती 1992 में तब आई जब बाबरी मस्जिद ध्वंस का जिम्मेदार ठहराकर पीवी नरसिंहराव ने संघ को प्रतिबंधित कर दिया था। अदालती आदेश के बाद यह प्रतिबंध एक वर्ष में ही समाप्त हो गया था। बहरहाल आपातकाल के बाद मूर्धन्य पत्रकार और प्रचारक मामा माणिकचंद्र वाजपेयी ने पुस्तक लिखी थी, जिसका शीर्षक था एक और अग्निपरीक्षा। यह पुस्तक काफी सराही और पढ़ी गई थी। राजस्थान और महाराष्ट्र एटीएस की कार्रवाइयों और मीडिया के स्टिंग ऑपरेशन के कारण संघ इस बार सबसे कठिन अग्निपरीक्षा से गुजर रहा है। मालेगांव, अजमेर, हैदराबाद और समझौता एक्सप्रेस के बम कांडों में उसके स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी और वरिष्ठ प्रचारकों के नाम आने से संघ के कर्णधार अंदर तक हिल गए हैं। संघ की प्रतिष्ठा को ऐसा आघात पहले कभी नहीं लगा। इस अभूतपूर्व संकट से निपटने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत और सरकार्यवाह भैयाजी जोशी प्रचारकों की मेजर सर्जरी करने वाले हैं। सर्जरी से कई वरिष्ठ प्रचारक प्रभावित हो सकते हैं। मोहन भागवत कतिपय प्रचारकों के विजयादशमी से पूर्व मंथन बैठक करने की तैयारी में हैं। इस मंथन बैठक में परिवर्तन के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाएंगे।
 
केएस सुदर्शन के कारण बढ़ा कट्टरपंथ
संघ के पूर्व सरसंघचालक कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन को हार्डलाइनर माना जाता है। विवादास्पद सभी प्रचारक उनसे प्रभावित रहे हैं। श्री सुदर्शन 1977 से 1990 तक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख रहे हैं। इस दौरान प्राथमिक शिक्षावर्गों, ओटीसी कैंपों और अन्य बैठकों में श्री सुदर्शन लगातार यह कहते रहे हैं कि 2011 के बाद हिंदुओं को हिंदू विरोधियों अर्थात मुस्लिमों और ईसाइयों से मैदानी संघर्ष करना पड़ेगा। श्री सुदर्शन के कारण ही संघ परिवार में अतिरिक्त कट्टरवाद बढ़ा, क्योंकि वे सदैव संघर्ष की ही भाषा बोलते थे। उन्हीं के कारण बजरंग दल को महत्व और मजबूती मिली। संघ का वर्तमान नेतृत्व स्थिति बिगडऩे से बचाने के लिए ही अपने कैडर को सेवा और समरसता की ओर मोडऩे का प्रयत्न कर रहा है।
कई प्रचारकों को पहले ही हटाया
संघ को विवादास्पद कार्रवाइयों की भनक पहले से ही थी। इसलिए तीन वर्ष पूर्व कतिपय कट्टरपंथी प्रचारकों को दायित्व मुक्त कर दिया गया था। इसमें मध्यभारत प्रांत सर्वाधिक प्रभावित हुआ था। संघ ने प्रांत बौद्धिक प्रमुख अभय जैन, विभाग प्रचारक अनिल डागा, मिलिंद कोपरगांवकर, सहविभाग प्रचारक मनीष काले, महेश शर्मा, जिला प्रचारक संदीप डांगे, नवलकिशोर शर्मा, सुनील गोरे को पहले ही हटा दिया था। उत्तर प्रदेश के क्षेत्र प्रचारक अशोक देरी और कानपुर के प्रांत प्रचारक अशोक वैष्णव को हाल ही में दायित्व मुक्त किया गया। अभी और प्रचारकों पर गाज गिरने की संभावना है।

Saturday 19 March 2011

इस्लाम में महिलाओ का अधिकार اسلام مے مسلمان اورتو کے حق


मेरे प्यारे दोस्तों लेख से पहले मै लेखक के बारे में बतादू
लेखक डाक्टर ममता सिंह संत तुलसी दास PG College में प्रवक्ता हिंदी पद पर कार्यरत है

जैसा की आप सभी जानते है कि इस्लाम एक धर्म है मगर मेरी समझ में और मेरी सोच में इस्लाम कोई मज़हब नहीं है बल्कि तरीकत-ए-ज़िन्दगी यानी जीवन जीने का एक तरीका है जिसका धार्मिक ग्रन्थ कुरान है,वैसे मै जहा तक समझती हूँ कि इस्लाम एक धर्म ही नहीं है एक तरीका है "मुकम्मल जीवन को जीने का तरीका". वैसे अगर शब्द के अर्थ को देखे तो इस्लाम एक तहजीब है और मुसलमान वह है "जो मुक्कम्मल ईमान वाला हो"
हम तो यही मानते है कि मुस्लमान का यही अर्थ सही भी है वैसे तो हम सभी अपने को इंसान मानते है पर असलियत तो इसकी उलटी ही है हम जीवन जीते है, इंसानों वाले  तौरतरीके से पर हमारी सोच तो गैर इंसानों वाली ही है हम स्वयं के सच को ही सही मानते है और दुसरे के सही और सच्ची बातो को भी शक कि निगाह से देखते है हमारी सोच रुढिवादिता के चंगुल में ऐसी फसी है कि सही और गलत का अंतर हमे दिखाई ही नहीं देता है,बात करते है पाक धर्म ग्रन्थ कुरान कि जो उस अल्लाह के शब्द है और सचे दूत के माध्यम से अल्लाह ने तुम तक भेजा है जो स्वयं में अपने हर "आयातों" में सच और इन्सानिय का ज़िक्र करता है अगर बात शरियत कि हो, पाक कुरान शरीफ कि शरियत का जो व्यक्ति अनुपालन करता है वह मुसलमान होता है इसके विपरीत कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए इस "शरियत"का इस्तेमाल करने लगे है यही वह लोग है जो आज इस धर्म की गलत तस्वीर पेश करते है.जो एक रुढ़िवादी सोच का नतीजा है
हम जानते भी है और देखते भी है हमारे हिन्दुस्तान मै हर कमज़ोर वर्ग कि महिलाओ कि स्थिति अत्यंत दयनीय है वजह उनकी शिक्षा सही ढंग से नहीं होती है बात यहाँ मुस्लिम महिलाओ कि करू तो शरियत के बारे में उनकी जानकारी और उनकी शिक्षा कम या ना के बराबर होने से अधिअधुरी ही रहती है जबकी सच यह है कि "मुहम्मद"साहेब ने चौथी शताब्दी में दुनिया भर मै हो रहे अत्याचार अन्याय के कारण समाज कि हालात को देखकर कहा कि "लड़कियों से मुहब्बत करो वो जन्नत का दरवाज़ा होती है"समाज मै यह स्थिति थी कि लोग लड़कियों को जिंदा ही दफ़न कर देते थे उन्हे पैदा होते ही मार डाला जाता था,शायद यही हालात थे जो पैगम्बर ने लोगो से कहा "बेटिया मेरा सलाम है हर मोमिन के लिए"मोमिन शब्द कुछ तंग नज़र के लोग सिर्फ मुसलमान मानते है मगर मोमिन का मतलब इंसान "जिसमे मानवता और मुक्कमल ईमान हो" होता है जब इतनी बड़ी हस्ती जिसकी मिसाल ना दुनिया में थी ना है और ना होगी इस तरह के अधिकार का वर्णन है सच कहू तो महिलाओ का यह हक तो इस्लाम में है यहाँ एक बात पर और गौर करने लायक है कि "मुहम्मद साहेब " को भी सिर्फ एक बेटी थी "fatima" यह कितनी बड़ी बात है कही और अगर ऐसे मिसाल हो तो बताइयेगा ज़रूर मुझे
महिलाओ कि दशा के लिए जब इतनी बड़ी बात इस्लाम मै है तो फिर उनके अधिकारों का वर्णन ना हो ये संभव कैसे होगा. है अधिकारों का वर्णन है परन्तु एक तो कम जानकारी और दूसरी ओरभारतीय संविधान पाक कुरान शरीफ कि शरियत के अधिकारों के तहत मुस्लिम महिलाओ को हकुए देने का कानून नहीं बनाया गया है मुस्लिम महिलाओ को दिए गई कुछ अधिकारों का संक्षिप्त वर्णन यहाँ किया गया है 
१ मुसलमान के घर में बच्ची को अपने पिता कि चल अचल संपत्ति में हिस्सेदारी का हक दिया गया है 
२ मुस्लिम लडकियों को शिक्षा प्राप्त करने का पूरा अधिकार दिया गया है
३ मुस्लिम महिलाये अपनी योग्यता अनुसार कुरान शरीफ कि शरियत का पालन करते हुए प्रत्येक क्षेत्र में अपना योगदान कर सकते है इस्लाम धर्म का सही अर्थ और दीनी ज्ञान देने का भी मुस्लिम महिलाओ को शरियत में अधिकार है
४. निकाह करते समय शरियत में मेहर का भुगतान तुरंत ज़रूरी है, निकाह के समय शौहर का कर्तव्य है कि पहले वह मेहर अदा करे क्योकि मेहर पत्नी का वाजिब हक है मेहर शौहर कि आर्थिक स्थिति के आधार पर तय किया जाता है
५. कोई मुसलमान व्यक्ति यदि अपनी पत्नी को तलक देना चाहता है तो उसी अपनी पत्नी को इमानदार व परहेजगार हकम गवाहों के सामने तलक देने का कारण बताना ज़रूरी है
६. खुला एक ऐसा अधिकार है जिसमे पत्नी अपने पति से यदि अत्याचार से तंग आगई तो उससे आज़ादी पा सकती है
ये सारे अधिकार ऐसे अधिकार है जिसका कुरान शरीफ में वर्णन है इसके अतिरिक्त और कोई धर्म ऐसा नहीं है जिसमे धार्मिक लेख में ऐसा वर्णन हो
  एक ऐसा और भी विसंगति फैलाई जाती है इस धर्म के बारे में कि ये बहु विवाह करते है तो अन्य धर्मो में भी लोगो ने बहुविवाह किया है और इसका कोई कानून नहीं है परन्तु मेरे जानकारी में सिर्फ एक इस्लाम ऐसा धर्म है जिसमे बहुविवाह का नियम है कि "अगर अदल(इन्साफ) न कर सको तो बस एक पर बस करो..... मतलब अगर पहली पत्नी को उसका पूरा हक न दे सको तो दूसरा विवाह ना करो
यह लेख मैंने कुरान शरीफ कि सूरेह निकाह,सूरेह अन्निसः,सूरेह तलाक,सूरेह उन्फाल,सूरेह बकर सूरेह अन्निसः से प्रेरित होकर लिखा है सधन्यवाद इर्फनुल कुरआन के
  
लेखक का पता निम्नवत है यदि किसी भी तरह का पत्राचार करना हो तो एस पते पर कर सकते है
डाक्टर ममता सिंह
हिंदी विभाग
संत तुलसीदास PG कॉलेज
कादीपुर,सुल्तानपुर

आखिर सच की जीता

मेरे प्यारे दोस्तों
मैंने आज तक समाज सेवा के नाम पर काफी कुछ किया है अपने छोटे से जीवन में मगर आज जो ख़ुशी का आभास मुझे हो रहा है आज तक कभी नहीं हुवा मै शिक्षको के लिए लड़ रहा था मेरा साथ दिया अली सोहराब और शीबा फहीम ने जो वाकई काबिल-ए-तारीफ था आज शिक्षको की जीत हुई है और सरकार ने उनकी मांगे मान ली है धरना स्थल से चले शिक्षको के हाथो में ये पत्र था जिसको देखकर गर्व से सीना चौड़ा हो गया 
मै कृतज्ञ हो गया हु अली सोहराब और शीबा फहीम का
सच बताता हु मै आज ख़ुशी से फूला नहीं समां रहा हूँ

Thursday 17 March 2011

ये कहा आगये हम


प्यारे दोस्तों मैंने कभी कही एक कहानी पढ़ी थी आज आपको सुनाता हु.एक सफ़ेद गुलाब था बगिया का सबसे सुन्दर गुलाब और सबसे नाज़ुक उसे अपनी सुन्दरता का बहुत घमंड था / एक भौरे का दिल उसपर आगया तो गुलाब ने उसका मजाक बनाते हुवे कहा की जब में लाल हो जाऊंगा तो तुमको चाहने लागुगा
इतना सुनना था के भौरा गुलाब के आसपास लगे हुवे काँटों पर लोटने लगा उसके शारीर से खून निकलने लगा और वो खून के वजह से गुलाब लाल हो गया तब गुलाब को उसपर दया आ गई उसने भौरे को गले लगाने के लिए उठाया तो देखा के भौरा मर चूका था /
आप सोच रहे होंगे की बाबा रामदेव को छोड़ कर शिक्षको को छोड़ कर आज ये बन्दा कहानिया सुना रहा है
दरअसल ये कहानी हमारे नेताओ ने देश में धर्म के नाम पर लडवा कर बात कुछ यो है की पिछले कुछ दिनों से में फसबूक पर inactive था में शांति से सिर्फ लोगो के विचार देख रहा था और शांत था किसी ने मुझे पत्र लिखा और मेरे अस्तित्व तक को कह डाला फिर भी मे चुपचाप देखता रहा लोगो को लडते देख रहा था लोग लड़ रहे थे जब देखा नहीं गया तो मैंने भी जवाब दिया किसी को कोई बात नहीं समझ आई और मुझे एक ग्रुप से निकाला फिर किसी सज्जन ने उत्तर प्रदेश के गोंडा से मेरे फसबूक की ID हैक करने का प्रयास किया.
ये सारा कुछ देखकर ऐसा लगरह था की हमारे देश का बटवारा १९४७ में हुवा था मगर यहाँ हो हर पल मुल्क ही नहीं सोच तक बट रही थी हर पल हर लम्हा .........,
मुझे लगा के यहाँ तथाकथित बुद्धिजीवियों का जमावड़ा काफी है मैंने तथाकथित बुद्धिजीवी एस लिए कहा के ये बुद्धिजीवियों से थोडा ऊपर होते है ये अपना विचार देने से पहले देखते है की कहने वाला किस धर्म का है किस जाती का है किस सम्प्रदाय का है फिर पढ़ा लेख का शीर्षक और दे डाला अपना विचार मई किसी का नाम नहीं लूँगा और आप खुद देख लीजिये 
लेख यदि किसी मुस्लिम ने लिखा है और गलती से कहे वो बाबा रामदेव पर है तो पूछिये नहीं पूरा facebook सर पर उठा लिया और ज्ञान देना चालू प्रदर्शन करने वाले होते तो एक या दो लोग ही है मगर २-४ फेक id बनाकर प्रदर्शन को भिषद कर लिया लोग ये भूल जाते है की भाषा और मेनेजर IP से पता चल जाता है की एक ही इंसान है 
लोग इतना अजब गज़ब का सोचते है की हंसी आती है खैर ये तो अलग सी बात है की लोग मुझे किसी धर्म विशेष का समझते है मगर सच एकदम अलग है मेरे मरहूम माँ ने मुझसे कहा था बचपन में आज तक याद है की बेटा मुस्लमान बनना तो बहुत बड़ी बात है पहले इंसान बन जाओ 
मतलब हम ऐसे हो चुके है की कभी आइना देखते है तो उसको भी झूठा ठहरा देते है अपना बचपन याद है की हम कुछ नहीं थे न हिन्दू न मुस्लमान बस एक इंसान थे मगर आज ५ साल के बच्चे को भी पता है के वो क्या है हिन्दू या मुसलमान .............. यारो हम १९४७ में एक बार बटकर आज तक कोसते है और भ्रस्त नेताओ ने हमको हर पल बाटा है अज मंदिर मई एक मारा तो हिन्दू मारा मस्जिद में मुसलमान मारा गिरजा में इसाई और गुरुद्वारा में सिख मरता है कोई माँ का लाल ये नहीं कहता के ४ hindustani मरे 
आखिर कहा ले आई है हमारे देश की गन्दी राजनीती हम लोगो को ज़मीनी बटवारे के बाद अब क्या इंसानियत को भी बाट रहे है हम  

Wednesday 16 March 2011

इसको मत पढ़ना इसमे बाबा रामदेव की बुराई लिखी है

मेरे प्यारे मित्रो 
  आप सभी के लिए एक घटना से अवगत करना चाहता हूँ यह घंटा जिसके है गाजीपुर के बरही के रहने वाले श्री अवधेश भारती के श्री अवधेश भारती ने तमाम तरह के परेशानियों का सामना बहादुरी से करते हुवे समाजशास्त्र से phd किया तमाम जद्दोजेहद के बाद अवधेश भारती जो अनुसूचितजाती से सम्बन्ध रखते है वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्व विध्यालय जौनपुर से संबध पचोटर महाविद्यालय में अनुमोदन के आधार पर इनकी नियुक्ति प्रवक्ता पद पर ०३.०२.२००५ को गयी जीवन रास्ते पर अगया था  मगर तभी थोडा सा जीवन में उथल पुथल आया १३.०४.२०१० को लगभग ३ बजे का समय डॉक्टर अवधेश कभी जीवन में नहीं भूल पायेगे घटना ही कुछ इसतरह हुए अवधेश जी भी अपने कर्त्तव्य का निर्वाह कर रहे थे तभी महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉक्टर अशोक कुमार सिंह आये और कहा की परिच्छार्थियो से ५०० हर छात्र से लो और अध तुम रक्खो आधा मुझे पंहुचा दो इसपर डॉक्टर अवधेश ने माना कर दिया तभी उदाकदल के लोग पहुचे और प्रधानाचार्य से कानो मई बात कर पुरे क्लास को हे निलंबित करने को कहने लगे अपने छात्रो का भविष्य अन्धकार में जाता देख कर अवधेश जी ने आपत्ति की फिर क्या था डॉक्टर अशोक कुमार सिंह का पारा सातवे आसमान पर पहुच गया और उन्होंने तुरंत कहा के "तुम साले चमडिया तेरे हिम्मत कैसे हुए और डॉक्टर अवधेश के शुरू हो गई पिटाई ये देखकर दो अन्य प्रवक्ता और छात्रो के विरोध पर अशोक सिंह को हटना पड़ा
लोगो के साथ डॉक्टर अवधेश थाने पहुचे मगर थानाध्यक्ष श्री राम सिंह ने कहा के वो मेरा भाई बंधू है उसी माफ़ कर दो और रिपोर्ट न करो जब लोग नहीं माने तो दिखाया पूलिस ने बल और खदेड़ लिया
तब से लगातार अवधेश जी कॉलेज में अपमान झेलते रहे २ दिनों के बाद उनको कॉलेज से धक्का मार कर भगा दिया गया और नौकरी पर आने से रोक दिया डॉक्टर अवधेश लगातार दौड़ते रहे हद तो तब हो गई के डॉक्टर अवधेश सिंह से उनका अपमान करने वाले डॉक्टर अशोक सिंह ने कहा के तुम मेरा जूता अपनी ज़बान से साफ़ करदो में तुम्हे माफ़ कर दूंगा डॉक्टर अवधेश ने पूछा के आप माफ़ कर दोगे...? तो डॉक्टर अशोक ने कहा के तुमने हम ठाकुरों से ज़बान लड़ाया उसके लिए
एस अपमान को देखकर डॉक्टर अवधेश पहुच गए अनुसूचित जनजाति आयोग सारा केस जान कर आयोग ने थानेदार को आदेशित किया ०७.०७.२०१० को FIR लिखने को ...................
अब थानेदार साहेब की मजबूरी आगई फिर भी उन्होंने अपना कमाल दिखाया और मुकदमा संख्या ९६६/२०१० में ३२३/५०४/५०६ व ३(१) scst लगा कर चालान कचहरी भिजवा दिया और डॉक्टर अशोक सिंह को VVIP के तरह सड़क पर खुला छोड़ दिया जिसमे उनकी आज तक गिरफ़्तारी नहीं हुए है और कभी भी कत्चाहरी नहीं गए है और तो और आज तक पुलिस उनके दरवाज़े नहीं जाती है . ये हुवा २२/०७/२०१० को और फिर शुरू हुवा है उत्पीडन का दौर यानी मारना धमकाना लालच देना परन्तु कॉलेज में जाने ना देना
आज भी उस मुक़दमे में कोई ख़ास प्रगति नहीं है
ये हमारे उत्तर प्रदेश का हाल है जहा सरकार है दलितों की मसीहा मायावती जी के एक दलित का ऐसा उत्पीडन हो रहा है क्या एस्सपर कोई विरोध का स्वर उठेगा
ये एक अवधेश है जो जानकारी में आगई ना जाने कितने अवधेश अभी भी दम तोड़ रहे होगे उत्पीडन झेल झेल कर
यदि किसी को इस घटना पर किसी भी तरह का शक या शुबहा हो तो डॉक्टर अवधेश के मोबाइल नंबर ९४५३५९२५८ पर संपर्क कर सकते है अगर हम कुछ नहीं कर सकते है तो उनसे फ़ोन पर दो शब्दों का तस्सल्ली भरा शब्द कह सकते है
मैंने ऐसा शीर्षक एस लिए दिया है की वैसे तो कोई पढता नाहे है इसको अब शायद कोई पढ़ ले

Saturday 12 March 2011

एक पत्र मेरे लिए किसी देशभक्त का है आप देखिये और खुद निर्णय कीजिये की कितना गिरा हुवा हूँ

श्री तारिक जी अगर आप शिक्षको और बाबा रामदेव को छोड़ कर के अली शहीद और अफज़ल के बारे मई लिखेगे तो कुछ सच बोल देंगे थोड़े से पैसे के लिए आप इतना प्लिंदा क्यों बांध रहे है सरे अध्यापक खुश है थोड़े से लोग नेतागिरी के चक्कर में सारा बवाल कर रहे है और आप थोड़े से पैसो के लिए आप ऐसे लोगो का साथ दे रहे है और लिख रहे है अगेर सच लिखेगे तो पैसा नहीं मिलेगा मगर सत्य का एक अलग अनुभव होता है कांग्रेस और अध्यापक आपको कितना देते है बताइयेगा जरूर
मेरे दोस्तों अपने बारे में बताता चालू की एक नौकरी करने वाला इंसान हु सुबह ८:३० पर ऑफिस आता हु रात को घर जाने का कोई समय निर्धारित नहीं है वेतन से आपलोगों की प्रार्थनाओ से मुझे इतना मिल जाता है की दाल रोटी नहीं बिरयानी खाकर गुज़ारा होता है यदि विश्वास हो तो ये समझिये आज तक किसी से एक पैसा भी नहीं लिए
बाबा के सम्बन्ध में मेरे अपने विचार है और सबूतों के आधार पर लिखा है शिक्षको से मानवता के माध्यम से जुड़ा हूँ अगर चाहे तो उनके नंबर देता हूँ पूछा जा सकता है
नंबर है डाक्टर अनुराग मिश्र ९४५१०५०७४२ 
डाक्टर धर्मेन्द्र ९४५१९०८७५५
डाक्टर के० एस० पाठक ९७९२७१९६७२ 
दूसरी बात हम किसी पार्टी से नहीं है और ना ही किसी भी पार्टी का समर्थन करते है मेरा समर्थन सिर्फ सच के साथ है
      भाइयो किसी पर ऐसा घिनौना आरोप.............  

Wednesday 9 March 2011

रामदेव के खिलाफ संत समाज मुखर


संत समाज के प्रमुख एवं राजग सरकार में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री रहे स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने बाबा रामदेव को ग़रीब विरोधी बताकर उनकी परेशानी बढ़ा दी है. चिन्मयानंद कहते हैं कि रामदेव ने बीते आठ वर्षों में ग़रीबों के कल्याण के नाम पर करोड़ों रुपये इकट्ठा किए, लेकिन ग़रीबों का कोई कल्याण नहीं किया. वह अपने सभी उत्पादों पर करोड़ों रुपये की कर चोरी करते हैं. अगर रामदेव जन कल्याण के नाम पर लाभ रहित उत्पाद बनाते हैं तो उनके उत्पाद इतने महंगे क्यों हैं? इतने कम समय में उन्होंने हरिद्वार से स्काटलैंड तक साम्राज्य कैसे खड़ा किया, इसकी सीबीआई द्वारा जांच की जानी चाहिए.

ॠषिकेश से टिहरी तक बाबा को मुखर विरोध झेलना पड़ रहा है. टिहरी के सांसद विजय बहुगुणा ने बाबा की संपत्ति की सीबीआई जांच कराने की मांग की है. लोगों ने योग गुरु का पुतला फूंककर भी अपनी भड़ास निकाली. जवाब में ॠषिकेश के दून चौराहे पर हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का पुतला फूंका. ॠषिकेश के वेदास्थानम्‌ के महंत विनय सारस्वत ने सुझाव दिया है कि रामदेव को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर लेनी चाहिए, उनका छद्म रूप जनता को बरगलाने में सफल नहीं होगा, उनके आचरण से भगवा वेश कलंकित हो रहा है.

चिन्मयानंद ने कहा कि रामदेव योग को बेचते हैं. उन्होंने सरकार से मांग की कि अगर शो करने पर देश के सिने कलाकारों को करोड़ों रुपये टैक्स देना पड़ता है तो बाबा के योग शो को सरकार ने इस दायरे से बाहर कैसे रखा है? उन्हें भी टैक्स के दायरे में लाया जाना चाहिए. बाबा ने जन कल्याण के नाम पर जनता से छल करके करोड़ों रुपये की काली कमाई की है. आयुर्वेदिक दवाएं तो डाबर एवं झंडू फार्मा सहित अनेक कंपनियां बनाती हैं, जो सभी तरह के टैक्स अदा करती हैं. इसके बावजूद उनके उत्पाद दिव्य योग पीठ फार्मेसी की दवाओं से कम दामों पर बिकतें हैं. चिन्मयानंद ने कहा कि अगर रामदेव सच्चे राष्ट्रभक्त हैं तो उन्हें वे सभी टैक्स ईमानदारी से जमा कर देने चाहिए, जिनकी उन्होंने अब तक चोरी की है. उन्होंने रामदेव से सवाल किया कि वह स्पष्ट करें कि दवाओं एवं योग की आमदनी का कितना प्रतिशत धन ग़रीबों के कल्याण पर अब तक ख़र्च किया गया. बाबा पचास करोड़ रुपये की मोटी रकम ग़रीबों के कल्याण के लिए अनुदान के रूप में भारत सरकार से स्वीकृत करा चुके हैं, जिसमें से वह तीस करोड़ रुपये का आहरण कर चुके हैं, बीस करोड़ रुपये निकालने की फिराक में है, जिसे सरकार को जारी करने से रोक देना चाहिए. स्वामी चिन्मयानंद ने बाबा का कच्चा चिट्ठा खेालते हुए कहा कि उनका काला धन उनकी बुद्धि को भ्रष्ट कर रहा है, जिसके चलते वह बहकी-बहकी बातें करने लगे हैं. एकाध बुद्धि शुद्धी यज्ञ बाबा को अपने लिए भी करा लेना चाहिए.
योग गुरु रामदेव के ख़िला़फ एक दर्जन से अधिक संत-महात्मा धर्म नगरी हरिद्वार में मुखर हैं और उन्हें अधर्मी एवं वेश विरोधी बताते हुए आईना दिखाने का काम कर रहे हैं. प्रख्यात संत हठयोगी जी ने कहा कि रामदेव ने संत वेश का फायदा लेकर, बाबाओं से झूठ बोलकर भगवा वेश को कलंकित किया है. वह साधु नहीं, व्यापारी हैं. साधु तो वे हैं, जो त्यागपूर्ण जीवन जी कर धर्म का प्रचार कर रहे हैं. हठयोगी जी कहते हैं कि अगर रामदेव में सच्चाई है तो वह अपने गुरु को क्यों नहीं खोजकर समाज के सामने प्रस्तुत करते. अपने गुरु को ठिकाने लगाने में उन्हीं की भूमिका रही है, पूरा समाज इस सच को जान चुका है कि जो अपने गुरु का नहीं हुआ, वह देश-समाज का क्या होगा? झूठ और काले धन पर निर्मित रामदेव का साम्राज्य बालू की भीत की तरह है, जो उनके बड़बोलेपन के चलते ध्वस्त हो जाएगा. राजीव दीक्षित की मौत को संदेह के घेरे में खड़ा करते हुए हठयोगी जी ने कहा कि रामदेव तो योग से ब्लॉकेज हटाने का लंबा-चौड़ा व्याख्यान करते हैं तो दीक्षित की मौत हार्ट अटैक से कैसे हुई?
हरिद्वार के प्रख्यात संत ॠषिश्वरानंद जी को रामदेव द्वारा काले धन पर निशाना साधने को लेकर दाल में कुछ काला नज़र आ रहा है. उनका मानना है कि रामदेव एक राजनीतिक दल के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं, इसीलिए राजीव एवं इंदिरा गांधी की शहादत को भुलाकर वह उन पर कीचड़ उछाल रहे हैं. विहिप के लोगों ने राम मंदिर के नाम पर जनता से अरबों रुपये की उगाही की, लेकिन रामदेव को राम के नाम पर धोखा देने वाले लोग इसलिए नहीं दिख रहे हैं, क्योंकि वे उन्हीं की जमात के हैं. रामदेव का आचरण किसी भी तरह से संत का आचरण नहीं दिखता. इसलिए उन्हें अपने नाम के पहले बाबा शब्द को हटा देना चाहिए. उन्होंने काले धन की बात करके जनता को भ्रमित करने का ठेका ले रखा है. जिस तरह रावण ने माता सीता का हरण करने के लिए भगवा वेश धारण किया था, उसी तरह रामदेव रावण के आचरण को अपनाते हुए जनता रूपी सीता का हरण करने के लिए भगवा वेश का दुरुपयोग कर रहे हैं, जिसे देश की जनता ही बेनकाब करेगी.
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का रामदेव के पाले में खुल कर खड़ा होना, हरिद्वार के संतों का मुखर विरोध इस बात को दर्शाता है कि राजनीति में कूदने को आतुर बाबा का बड़बोलापन उनके ही गले की हड्डी बनता जा रहा है. बाबा अपने समर्थकों से चाहे जितनी भी अपनी पीठ थपथपा लें, हरिद्वार का संत समाज मुखर विरोध के साथ उनसे किनारा कर रहा है. इंदिरा-नेहरू परिवार पर हाथ डालने वाले बाबा को जिस तरह फज़ीहत झेलनी पड़ रही है, उससे एक ही बात स्पष्ट हो रही है कि उनके बलिदान के आगे बाबा की बाबागिरी टिकने वाली नहीं है. कनखल के दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट से शुरू हुए रामदेव का साम्राज्य आज स्काटलैंड तक फैला हुआ है. वर्ष 2003 में रामदेव एवं आचार्य बालकृष्ण इसी ट्रस्ट के तीन कमरों में मरीजों का उपचार किया करते थे. महज़ आठ साल में विदेशों तक साम्राज्य खड़ा करना देवभूमि के लोगों को खलने लगा है.
हाल में नितिन गडकरी के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने भी बाबा की सराहना करके अपनी रीति-नीति स्पष्ट कर दी है. ॠषिकेश से टिहरी तक बाबा को मुखर विरोध झेलना पड़ रहा है. टिहरी के सांसद विजय बहुगुणा ने बाबा की संपत्ति की सीबीआई जांच कराने की मांग की है. लोगों ने योग गुरु का पुतला फूंककर भी अपनी भड़ास निकाली. जवाब में ॠषिकेश के दून चौराहे पर हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का पुतला फूंका. ॠषिकेश के वेदास्थानम्‌ के महंत विनय सारस्वत ने सुझाव दिया है कि रामदेव को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर लेनी चाहिए, उनका छद्म रूप जनता को बरगलाने में सफल नहीं होगा, उनके आचरण से भगवा वेश कलंकित हो रहा है.

बाबा रामदेव का विश्वासघात


बाबा रामदेव पर 'विश्‍वासघात' का आरोप, नार्को टेस्‍ट की चुनौती दी


(9 Mar) नई दिल्‍ली. बाबा रामदेव की ओर से भाजपा को बतौर चंदा 11 लाख रुपये दिए जाने की खबर सामने आने के बाद कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है। पार्टी का कहना है कि योग गुरू ने लोगों के दान के पैसे को किसी राजनीतिक दल को देकर जनता के साथ विश्‍वासघात किया है। कांग्रेस प्रवक्‍ता मोहन प्रकाश ने दैनिक भास्‍कर डॉट कॉम से बातचीत में कहा, 'लोग बाबा रामदेव को दान में पैसे देते हैं ताकि योग का विकास हो न कि किसी राजनीतिक दल का। यदि योग गुरू लोगों के दान का पैसा बीजेपी को देते हैं तो ऐसा कर वह दानदाताओं के साथ विश्‍वासघात कर रहे हैं। ढोंग और यथार्थ में हमेशा ही बहुत बड़ा अंतर होता है।' स्वामी रामदेव की संस्था पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में से एक भारतीय जनता पार्टी को 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले दान में धन दिया। यह जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अफरोज आलम साहिल को सूचना का अधिकार के तहत प्राप्त हुई। सूचना का अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक रामदेव की संस्था पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने भारतीय जनता पार्टी को चेक के जरिये 11 लाख रुपए दान दिए। पंजाब नेशनल बैंक का यह चेक (चेक नंबर-859783) 8 मार्च 2009 को काटा गया था। हालांकि पतंजलि योग ट्रस्ट से जुड़े आचार्य बालकृष्‍ण ने स्पष्टीकरण देते हुए यह स्वीकार किया कि पतंजलि आयुर्वेद कंपनी के खाते से 11 लाख रुपए का चेक भारतीय जनता पार्टी को दान के रूप में दिया गया। लेकिन उन्होने यह भी कहा कि इसके बारे में बाबा रामदेव जी या उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। बीजेपी के एजेंट कांग्रेस नेता सज्‍जन कुमार ने बाबा रामदेव को भाजपा का 'एजेंट' करार दिया है। उन्‍होंने कहा, ' योग गुरू के तौर पर कांग्रेस सहित पूरा देश बाबा रामदेव का सम्‍मान करता है लेकिन जिस तरीके से वह बयानबाजी कर रहे हैं और राजनीति में आने का ख्‍वाब रखते हैं तो उन्‍हें देश की जनता इसका जवाब देगी।' रामदेव की संस्‍था की ओर से बीजेपी को चंदा दिये जाने के बारे में कांग्रेसी नेता ने कहा, 'यह संभव नहीं है कि रामदेव की जानकारी के बिना ट्रस्‍ट की ओर से कोई दान किसी को दिया जाए।' नार्को टेस्‍ट की चुनौती इधर, काला धन के मुद्दे पर रामदेव और कांग्रेस के बीच तल्खी बढ़ती ही जा रही है। नेताओं को काले धन के मुद्दे पर नार्को टेस्ट कराने की बाबा की चुनौती को कांग्रेस सांसद प्रवीण ऐरन ने स्वीकार कर उलटे बाबा रामदेव को ही नार्को टेस्ट की चुनौती दी है। बरेली से सांसद ऐरन ने एक बयान जारी कर बाबा रामदेव पर नेताओं की छवि खराब करने और गैरजिम्मेदाराना आरोप लगाने की बात की। उन्होंने कहा कि रामदेव और कुछ तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए पूरी राजनीतिक व्यवस्था का अपमान कर रहे हैं। ऐरन ने कहा कि वह खुद व उनकी मेयर पत्नी नार्को टेस्ट कराने के लिए तैयार हैं कि उन्होंने काले धन का या रिश्वत का चुनाव में कभी उपयोग नहीं किया। उन्होंने कहा कि बाबा और उनके संस्थान चलाने वाले तमाम लोग नार्को टेस्ट कराएं और इन सवालों का जवाब दें कि जमीन या हेलीकॉप्टर खरीदने में काले धन का उपयोग नहीं हुआ। साथ ही वो आमदनी के स्रोतों के बारे में भी खुलासा करें।कांग्रेस के अन्‍य सांसद भी ऐरन के साथ आ गए हैं। कांग्रेसी सांसद प्रदीप टमटा और विनय पांडेय ने भी बाबा की नार्को टेस्ट कराने की चुनौती स्वीकार की है। कोट राजनीतिक पार्टियों को फंड कहां से मिलता है? मैं संसद में चार साल तक रहा हूं। यह चेक से नहीं मिलता है। यह पैसा काला धन होता है। काला धन आसमान से नहीं आता है।

साभार
Glorieux Mishra and
Dainik Bhaskar
(9 Mar)

Sindhu

सिन्धु  नदी  हमेशा  से  सिन्धु  नदी  कही  जाती  है , सभ्यताओ  के  समस्त  परिवर्तन  और  भाषाओं  के  तमाम  उलटफेर  के  बावजूद  सिन्धु  नदी  का  नाम  आज  भी  सिन्धु  नदी  ही  है  , सिन्धु  नदी  को  हिन्दू  नदी  नहीं  कहा  जाता , तो   सनातन -आर्यों को हिन्दू  और  सनातन -आर्य   सभ्यता  को हिन्दू सभ्यता  कैसे  कहा  जाने  लगा 
याद  रखो  इस  वतन  का  न...ाम  हिदुस्तान  मुसलमानों  दुवारा रखा  गया  तो  हिन्दू  सनातन -आर्य  कैसे  कहला  सकते  है ??????????????
याद  करो  मुगलों  के  वे  अल्फाज़  जब  वे  अपने  भाइयो  को  खबर  देने  को  कहते  तो  बोलते  """"बिरादर -ऐ-हिंद  को  खबर  दो """"  तब  वे  "बिरादर -ऐ -हिंद " या  हिन्दू  किसी  सनातन -आर्य  को  नहीं  बल्कि  खुदको  कहते  थे ,,,,,,,,,
ये  बात  हकीकत  है  की  स्वार्थी  भगवा  राजनितिज्ञो  दुवारा  मुग़ल  काल  या  उसके  बाद  सनातन -आर्य   धर्मियों  को  हिन्दू  की  संज्ञा  दी  जाने  लगी , और  फिर  सब  नासमझ  लोग  सनातन -अ/र्यो  को  हिन्दू  कहने  लगे ... इस  चाल  में  इन लोगो  का  बहुत  बड़ा  स्वार्थ  छुपा  था  और  इस  स्वार्थ  को  कुछ  इस  तरह  समझा  जा  सकता  है ....
ये  चाल  इन्होने  इसलिए चली.....
जिससे ये  लोग  खुलकर इस  वतन   पर  अपना और  सिर्फ  अपना  हक  जाता  सके ,
जिससे  ये  लोग   इस  वतन  को  अपनी  और  सिर्फ  अपनी  जागीर  बता  सके ,
जिससे  ये  इस  वतन  को  अपना  और  सिर्फ  अपना  कह  सके ,
जिससे  ये  मुसलमानों  और  बाकी  जातियों  का  हक  चीन  सके ........
और  इस  वतन  को  अपनी  विदेशी  सभ्यता  और  संस्कृति में  ढाल  सके  और  ये  सब  इस  नाम  परिवर्तन  किये  बिना  मुमकिन  नहीं  था ,,,,,
मै अपनी  इस  बात  को  एक  ताज़ा  मिसाल  से  साबित  भी  कर  सकता  हु , सभी  जानते  है  की  इंदिरा  गाँधी  की  शादी  एक  मुसलमान  से  हुई  जिसका  नाम  था  फ़िरोज़  खान  लेकिन  ठीक  उसी  निति  के  तहत  फिरोज  खान  का  नाम  बदल  कर  फिरोज  गाँधी कर  दिया  गया , ये  नाम  परिवर्तन  भी  इसी  लिए  किया  गया  जिससे  ये  फिरोज  खान  को  अपनी  सभ्यता  अपनी  संस्कृति  और  अपनी  विचार -धरा  का  बना  सके  या  दिखा  सके , ये  फिरोज  खान  को  अपनी  सभ्यता  अपनी  संस्कृति और  अपनी  विचार -धारा  का  बना  तो  नहीं  सके  लेकिन  दिखाने  में  कामयाब  हो  गये , हलाकि  फिरोज  खान  मरते  दम  तक  मुसलमान  रहे  लेकिन  इनका  मकसद  सिर्फ  सच्चाई  को  छुपाये  रखना  है , लेकिन  कबतक  छुपायेगे  रात  चाहे  कितनी  भी  लम्बी  हो  हर  रात  की  सुबह  मुक़र्रर  है.........
बस  इतनी  सी  दास्ताँ  है  इनकी 
ये  हिन्दू  नाम  का  छाता  जो  हम  मुसलमानों  की  तामीर  है , इससे  ये  लोग  कब  तक  अपने  आप  को  छुपायेगे , एक  न  एक  दिन  ये  छाता सर  से  उतरेगा  फिर  देखना  हकीकत  का  सूरज  सरपर  होगा  और  ये  लोग  उस  वक़्त  पसीना -पसीना  होगे........
साभार नसीम निगार हिंद

दो सवाल का जवाब दे बाबा जी (आदरणीय रामदेव )

sabhar ali sohrab aur google images
 एक तथ्य:-
 सूचना का अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक रामदेव की संस्था पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने भारतीय जनता पार्टी को चेक के जरिये 11 लाख रुपए दान दिए। पंजाब नेशनल बैंक का यह चैक (चैक नंबर (859783)8 मार्च 2009 को काटा गया था।
ये जानकारी सूचना क अधिकार क तहत प्राप्त है मुद्दा ये है की जो लोग यह कहते है की बाबा रामदेव का किसी राजनितिक पार्टी के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है तोह क्या बाबा ये जानकारी दे सकते है की ये पैसा पार्टी को किस रिश्तेदारी की लिए दिया गया था ज़ाहिर है पार्टी को प्राप्त धन बाबा की अपनी खुद की हल चला कर आयी कोई कमाई का हिस्सा नहीं रहा होगा ये वह पैसा होगा जो बाबा की संस्था ने "अन्य" साधनों से कमाया होगा ११ लाख में ११ परिवार अपनी गरीबी सदा क लिए दूर कर सकता है क्या बाबा की संस्था जो भ्रष्टाचार के लिए संघर्स करने का दिखावा कर रहे है वो गरीबी दूर नहीं दूर करना चाहती है
मेरे सोच मई यदि गरीबी दूर हो जाती है तो भ्रष्टाचार खुद बा खुद नियंत्रण मे होगा
दूसरा तथ्य :-
अगर शो करने पर देश के सिने कलाकारों को करोड़ों रुपये टैक्स देना पड़ता है तो बाबा के योग शो को सरकार ने इस दायरे से बाहर कैसे रखा है? उन्हें भी टैक्स के दायरे में लाया जाना चाहिए. बाबा ने जन कल्याण के नाम पर जनता से छल करके करोड़ों रुपये की काली कमाई की है. आयुर्वेदिक दवाएं तो डाबर एवं झंडू फार्मा सहित अनेक कंपनियां बनाती हैं, जो सभी तरह के टैक्स अदा करती हैं. इसके बावजूद उनके उत्पाद दिव्य योग पीठ फार्मेसी की दवाओं से कम दामों पर बिकतें हैं
दूसरा तथ्य यह है की जब देश के हर नागरिक के लिए एक कानून है तोह बाबा की संस्था क लिए और बाबा के लिए अलग कानून क्यों है आखिर बाबा को टैक्स अदा क्यों नाहे करना पड़ता है बाबा का अपना खर्च और आमदनी क्या है और इसका विवरण बाबा इन्काम टैक्स को क्यों नाहे देते है मीडिया को क्यों देते है कही ये बाबा की सस्ती पुब्लिसिटी पाने का कोई तरीका तोह नाहे है के आने वाले चुनाव में बाबा किसी पार्टी क ब्रांड अम्बेसडर बनकर तो काम नहीं करना चाहते है
क्या बाबा के पास इन सवालो का जवाब है अथवा उनका कोई शुभचिंतक अथवा भक्त कोई जवाब रखता है

Monday 7 March 2011

बाबा रामदेव के लिए आम बुद्धिजीवियों की राय



आज निकाला कैमर और निकल पडा आम बुद्धिजिवियो के विचार जन्नेय के लिये
सबसे असान तरीका लगा किसी पढे लिखे कि राय जानना
ढुढा एक पढा लिखा, पुछा तो विचार ऐसा आया,परन्तु वहा भी एक अकल मन्द मिल गये
उन्होने भी अपने विचार रख दिया


देखिये आम विचार को और फ़ैसला किजिये

Sunday 6 March 2011

बाबा रामदेव अब सिर्फ रामदेव

साभार श्री  
Glorieux Mishra

राजनीति काजल की काली कोठरी है. ऐसे बहुत ही कम लोग होते हैं, जो इस काली कोठरी में घुस जाएं और बेदाग़ निकल जाएं. बाबा रामदेव राजनीति की इस काली कोठरी में घुसे नहीं कि उनके दामन पर दाग़ लगने लगे हैं. पहले कांग्रेस पार्टी के दिग्विजय सिंह ने बाबा को मिलने वाले काले धन की जांच की मांग की. अब बाबा रामदेव संत समाज के निशाने पर आ गए हैं. हिंदुस्तान का इतिहास गवाह है कि जब-जब राजनीति का सामना संतों से हुआ, राजनीति हारी है, संत हमेशा जीते हैं. दिग्विजय सिंह के बयान के बाद बाबा रामदेव ने हुंकार भरी और यह बोल गए कि वह आज हज़ारों करोड़ के ब्रांड बन चुके हैं. क्या संत ब्रांड बन सकते हैं? क्या धर्म का धंधा किया जा सकता है? क्या योग की मार्केटिंग हिंदू धर्म की परंपरा के मुताबिक़ है? देश और धर्म से जुड़े इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए हमने अखिल भारतीय संत समिति के उत्तर भारत के अध्यक्ष एवं श्री कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम से बात की. बातचीत के दौरान आचार्य प्रमोद कृष्णम ने बाबा रामदेव के बारे में कई ऐसी बातें बताईं, जिन पर भरोसा करने में डर लगता है.

पहले कांग्रेस पार्टी के दिग्विजय सिंह ने बाबा को मिलने वाले काले धन की जांच की मांग की. अब बाबा रामदेव संत समाज के निशाने पर आ गए हैं. हिंदुस्तान का इतिहास गवाह है कि जब-जब राजनीति का सामना संतों से हुआ, राजनीति हारी है, संत हमेशा जीते हैं. दिग्विजय सिंह के बयान के बाद बाबा रामदेव ने हुंकार भरी और यह बोल गए कि वह आज हज़ारों करोड़ के ब्रांड बन चुके हैं. क्या संत ब्रांड बन सकते हैं? क्या धर्म का धंधा किया जा सकता है? क्या योग की मार्केटिंग हिंदू धर्म की परंपरा के मुताबिक़ है?

बाबा रामदेव ने हरिद्वार के एक आश्रम में योग की शिक्षा ली. यह आश्रम गुरु शंकरदेव का था. कहा जाता है कि बाबा रामदेव और गुरु शंकरदेव एक ही कमरे में रहते थे. वह जाने-माने संत थे. भारत के शीर्षस्थ संतों के संपर्क में थे. अच्छे साधक थे. एक दिन वह अचानक ग़ायब हो गए. गुरु शंकरदेव कहां गए, यह किसी को पता नहीं है. न तो उनकी लाश मिली और न ही यह पता चल पाया है कि उनके साथ आ़खिर क्या हुआ. बाबा रामदेव ने गुरु शंकरदेव को खोजने का कोई प्रयत्न नहीं किया. आचार्य प्रमोद कृष्णम ने सीधा-सीधा आरोप लगाया है कि पूरे देश का संत समाज यह मानता है कि शंकरदेव की हत्या बाबा रामदेव ने की, ताकि वह ज़मीन उन्हें मिल जाए और जो उन्हें मिली. एक उच्चस्तरीय जांच का गठन होना चाहिए. इतने बड़े ॠषि शंकरदेव ग़ायब हो गए, लेकिन उनके साथ रहने वाले बाबा रामदेव से किसी ने पूछताछ नहीं की. आचार्य का कहना है कि यह बाबा रामदेव का प्रभाव है कि आज तक इस मामले में कोई तहक़ीक़ात नहीं हुई. अब सवाल यह है कि शंकरदेव कहां गए, उनकी लाश कहां है, उनकी मौत कैसे हुई? अगर वह ज़िंदा हैं तो उनको सामने क्यों नहीं लाया जाता. उनका अचानक ग़ायब हो जाना एक गंभीर विषय है. अखिल भारतीय संत समिति इसकी उच्चस्तरीय जांच की मांग करती है. आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि उन्हें यह आशंका है कि गुरु शंकरदेव कहीं किसी साज़िश का शिकार तो नहीं हो गए.

बाबा रामदेव के इतिहास को जानने लिए हमने वैष्णव संप्रदाय के सर्वोच्च जगतगुरु से बात की. जगतगुरु ने खुलकर सारी बातें बताईं, लेकिन अपना नाम सार्वजनिक करने से मना कर दिया. जगतगुरु के कहने पर हम उनका नाम नहीं लिख रहे हैं. इस बातचीत से यह पता चला कि बाबा रामदेव से संत समाज न स़िर्फ निराश है, बल्कि डरता भी है. कई संत ऐसे हैं, जो बाबा रामदेव के क्रियाकलापों को धर्म के विरुद्ध बताते हैं, लेकिन देश के सामने आकर बाबा के खिला़फ बोलने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता है. वैष्णव संप्रदाय के सर्वोच्च जगतगुरु की शंकरदेव से भी निकटता थी. जगतगुरु ने फोन पर बताया कि बाबा रामदेव 1994 में मेरे आश्रम में बैठा रहता था, एक्यूप्रेशर वगैरह करता था. टूटे से स्कूटर से आता था, तबसे मैं उसे जानता हूं. साधु भी बनने को मैंने ही उसे कहा था. गुरुकुल कांगड़ी में छटे हुए लड़कों में गिना जाता था. एक प्रॉपर्टी है दिव्य योग मंदिर. उसे धोखे से लिखवाया गया था स्वामी शंकरदेव जी से, जिनका आज कोई अता-पता नहीं है. हत्या भी कराई होगी तो उसी ने कराई होगी न. वह तो बहुत दुखी थे. इसने लिखवा लिया तो बहुत रोते थे हमारे पास आकर. हमें पता तब लगा था, जब इसने लिखवा लिया. हम पूछना चाहते हैं कि वसीयत है तो दिखाए हमें. उसने बहुत बड़ा झूठ बोला कि आश्रम की ज़मीन कब वह उसके नाम कर गए, पता ही नहीं. लेकिन वह तो डिग्री है, कोर्ट से सूचना के अधिकार से तो मिल सकती है. कोई भी आदमी ग़ायब हो जाए तो खबर तो करता है, मर गया तो श्राद्ध तो करता है. यह आदमी तो पैदा ही बेईमान हुआ था. मैंने इसे एक दिन उठाया और दो-चार थप्पड़ लगाए, फिर पूछा कि यह बता भाई, महात्मा से तूने जो लिखापढ़ी कराई, कैसे कराई. फिर वह मेरे पैर पकड़ कर बैठ गया. स्वामी अमलानंद जी के आश्रम में. कहने लगा कि मुझे क्षमा कर दो, अब मैं आपके ही अनुसार चलूंगा, सारा जीवन अब मैं अच्छे काम करूंगा. शंकरदेव के मामले में बिल्कुल सीबीआई जांच होनी चाहिए. एक आदमी लापता है तो खोजो और मर गया तो सरकार इसकी घोषणा करे. कुछ तो करे. इस आदमी ने सरकार को भी नहीं लिखा कि उनकी खोज हो. जगतगुरु ने दु:ख के साथ कहा कि इसने न जाने कितने लोगों को मरवा दिया. यह लोगों को मरवा देता है. मैंने तो देखा है न, इसकी भाषा को. अगर कोई भी विरोधी है तो कहता है कि खत्म कर दो काम.
उत्तर भारत के संतों, आश्रमों और मठों में खलबली मची है. हर कोई बाबा रामदेव के बारे में बात कर रहा है. मीडिया में छाए रहने और प्रसिद्धि की दृष्टि से तो यह अच्छा माना जा सकता है, लेकिन बाबा रामदेव के लिए यह परीक्षा की घड़ी है. विडंबना यह है कि पितातुल्य संत, धर्माचार्य, गुरु एवं साथी, जिनके साथ बाबा रामदेव ने बचपन बिताया, जिनकी छड़ी खाकर और डांट सुनकर बड़े हुए, वही लोग आज बाबा रामदेव के खिला़फ खड़े हैं. बाबा रामदेव पर हत्या जैसा एक और आरोप है. अखिल भारतीय संत समिति के अध्यक्ष का मानना है कि अपने योग की साख बचाने के लिए रामदेव ने देश के एक होनहार विद्वान राजीव दीक्षित की बलि चढ़ा दी. राजीव दीक्षित जब जीवित थे तो वह हमेशा बाबा रामदेव के साथ नज़र आते थे. उनके शिविरों में वह भाषण देते थे. बाबा रामदेव के योग से हर तरह के रोग के इलाज के दावों का तर्क देते थे. उनकी उम्र चालीस साल की थी. माना जाता है कि राजीव दीक्षित की मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई. बाबा रामदेव पूरी दुनिया के हृदय रोगियों का इलाज करते हैं तो क्या बाबा रामदेव को यह पता नहीं था कि उनके साथी को ही हार्ट की बीमारी है. अगर पता था तो उनका इलाज क्यों नहीं किया गया और अगर रामदेव अपने साथी का ही इलाज नहीं कर सकते तो दुनिया के सामने यह कैसे दावा करते हैं कि उनके योग से हार्ट की बीमारी ठीक हो जाती है.
आचार्य ने कहा कि सूत्र बताते हैं कि राजीव दीक्षित और उनके रिश्तेदार मेडिकल ट्रीटमेंट चाहते थे, लेकिन बाबा रामदेव ने परिवारवालों को फोन करके या बात करके यह कहा कि तुम अगर अंग्रेजी दवाइयों का सेवन करोगे तो इस देश में खराब मैसेज जाएगा. आचार्य का कहना है कि बाबा रामदेव के लिए मैसेज देने का मामला था, लेकिन राजीव दीक्षित की जान चली गई. सोचने वाली बात यह है कि राजीव दीक्षित का अंतिम संस्कार जल्दबाजी में क्यों किया गया. उनका पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया. आचार्य बताते हैं कि जिन लोगों ने राजीव दीक्षित की शवयात्रा में हिस्सा लिया, वे कहते हैं कि उनके होंठ नीले पड़ चुके थे. अब संत यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या हार्ट अटैक से मरने वाले व्यक्ति की होंठ नीले पड़ते हैं? यह इतना ज्वलंत प्रश्न है, जिससे यह शंका पैदा होती है कि राजीव दीक्षित और शंकरदेव को रास्ते से हटाने वाले बाबा रामदेव और उनके इर्द-गिर्द वे लोग हैं, जिनकी जांच होना बहुत आवश्यक है.
एक कंपनी थी आस्था ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड, जो अब वैदिक ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड बन चुकी है. यह कंपनी आस्था नामक धार्मिक टेलीविजन चैनल चलाती थी. इस चैनल पर बाबा रामदेव के योग कार्यक्रमों का प्रसारण होता था. आस्था ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड के हेड किरीट सी मेहता हुआ करते थे. रामदेव तीन साल से इस चैनल पर कार्यक्रम कर रहे थे, जिसका पैसा आस्था चैनल को दिया जाना था. जब यह राशि बढ़कर बहुत ज़्यादा हो गई तो रामदेव और उनके लोगों ने किरीट सी मेहता का अपहरण किया और बंधक बना लिया. आचार्य प्रमोद कृष्णम का आरोप है कि किरीट सी मेहता को बंधक बनाने वालों में एक नाम है तीजारेवाला, दूसरे खुद स्वामी रामदेव हैं और तीसरे एक उद्योगपति हैं, जिनका उन्होंने नाम नहीं बताया. किरीट सी मेहता को बंधक बनाकर उनसे एक एग्रीमेंट साइन कराया गया. इसी के ज़रिए आस्था ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड को वैदिक ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड में बदल दिया गया. किरीट सी मेहता से एक सादे काग़ज़ पर हस्ताक्षर कराकर उन्हें छोड़ दिया गया. आचार्य प्रमोद ने खुलासा किया कि इसके बाद किरीट सी मेहता और उनके परिवार को यह धमकी दी गई कि अगर वे हिंदुस्तान में रहे तो उनकी हत्या करा दी जाएगी. आचार्य प्रमोद कृष्णम का दावा है कि ये बातें खुद किरीट सी मेहता ने उनसे कही हैं. वह बताते हैं कि गणेश चतुर्थी के दौरान दिशा नामक एक धार्मिक चैनल पर वह लाइव कार्यक्रम में शामिल थे. आचार्य प्रमोद इस चैनल के स्टूडियो में थे. देश भर से लोग आचार्य से सवाल पूछ रहे थे. उसी कार्यक्रम में किरीट सी मेहता ने लंदन से फोन किया और बताया कि वह सारी दुनिया को एक संत के कारनामों के बारे में बताना चाहते हैं. आचार्य कहते हैं कि इस कार्यक्रम का लाइव प्रसारण चल रहा था, जिसे पूरी दुनिया ने सुना. इस कार्यक्रम के एंकर थे माधवकांत मिश्र, जो इस वक्त दिशा टीवी चैनल के हेड हैं. आचार्य कहते हैं कि बाबा रामदेव की धमकी से डरकर किरीट सी मेहता आज तक भारत वापस नहीं लौटे. कभी दुबई तो कभी लंदन में छुपते फिर रहे हैं. मुंबई में उनके घर पर ताला लगा हुआ है. आचार्य प्रमोद कृष्णम बताते हैं कि उस लाइव कार्यक्रम में उन्होंने जब भारत वापस आने को कहा तो किरीट सी मेहता ने कहा कि उन्हें इस बात का डर है कि अगर वह भारत लौटे तो उनकी हत्या कर दी जाएगी. बाबा रामदेव पर यह आरोप हैरान करने वाला है. आस्था चैनल ने बाबा रामदेव को ख्याति दिलाने में, पूरे देश में पापुलर करने में बड़ा योगदान किया है. मीडिया के कुछ लोग बताते हैं कि किरीट सी मेहता की वजह से ही रामदेव आज योग गुरु बाबा रामदेव बने हैं. अ़फसोस इस बात का है कि जिस शख्स ने बाबा की इतनी मदद की, वह आज दर-दर की ठोकरें खा रहा है. आचार्य से जब हमने इन आरोपों का सबूत मांगा तो उन्होंने दिशा चैनल के एंकर माधवकांत मिश्र को फोन किया और फोन के स्पीकर से हमें पूरी बातचीत सुनाई. फोन पर हुई बातचीत के दौरान माधवकांत मिश्र ने इस पूरी घटना की पुष्टि की और कहा कि वे सारे टेप चैनल के पास आज भी मौजूद हैं.
संतों ने बाबा रामदेव पर स़िर्फ हत्या, अपहरण और धमकी देने का ही आरोप नहीं लगाया, बल्कि यह भी कहा कि बाबा रामदेव संत समाज में भ्रष्टाचार फैला रहे हैं. आचार्य प्रमोद कृष्णम कहते हैं कि बुरे से बुरा आदमी भी संतों को छोड़ देता है. अत्याचारी और दुराचारी भी संतों को नहीं लूटते, लेकिन बाबा रामदेव आस्था चैनल के ज़रिए संत समाज को लूट रहे हैं. अब आस्था चैनल बाबा रामदेव की देखरेख में चल रहा है. आचार्य ने बताया कि आस्था चैनल पर जितने भी प्रवचन दिखाए जा रहे हैं, किसी से पांच लाख तो किसी से सात लाख रुपया महीना लिया जा रहा है. यह पैसा संतों से ओबी वैन के नाम से लिया जा रहा है. एक दिन का ओबी वैन का खर्च 2 लाख बताकर पैसा लिया जाता है. समझने वाली बात यह है कि जो संत पांच लाख रुपये चैनल को देगा तो वह खुद 15 लाख कमाने की क्यों नहीं सोचेगा. कोई संत अगर पांच लाख रुपये आस्था चैनल को देता है तो वह पैसा कहां से आएगा. ज़ाहिर है, यह पैसा उद्योगपतियों और काले धन के ज़रिए ही इकट्ठा किया जाता है. आचार्य कहते हैं कि क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है, जो व्यक्ति संतों को लूट रहा है, वह देश की लूट के विषय में कैसे बात कर सकता है. बाबा रामदेव को वह चुनौती देते हैं कि उन्होंने जो तीन हज़ार एकड़ ज़मीन में बना यूरोप में एक टापू खरीदा है, उन्हें उसका खुलासा करना चाहिए.
देश के बड़े-बड़े धर्माचार्य और जगतगुरु बाबा रामदेव से निराश हैं. उनका आरोप है कि रामदेव ने धर्म को धंधा बना दिया. कुछ संतों ने कहा कि यह संत का कैसा रूप है, जो गौमूत्र बेचकर मुना़फा कमाता है. एक संत ने बताया कि महर्षि पतंजलि ने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि उनके नाम की ब्रांडिंग हो जाएगी और कलयुग में योग भारत की धरती पर साधना से हटकर व्यापार बन जाएगा. बाबा रामदेव कोई भी शिविर लगाते हैं तो वह 31 लाख रुपये लेते हैं. जबसे उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की है, तबसे वह मुफ्त में शिविर लगाने लगे हैं. आचार्य प्रमोद कृष्णम का यह आरोप है कि बाबा रामदेव ने संत परंपरा को प्राइवेट लिमिटेड बना डाला. पतंजलि फूड प्राइवेट लिमिटेड को सरकार से पैसे मिले, जिसका इस्तेमाल वह बिजनेस में कर रहे हैं. देश के संत सवाल कर रहे हैं कि क्या यही देशभक्ति है? क्या यही भ्रष्टाचार से लड़ने का सही रास्ता है?
जहां तक बात उनकी राजनीति की है तो संत समाज को इससे कोई आपत्ति नहीं है. अखिल भारतीय संत समिति का कहना है कि उनकी राजनीति से किसी को भी कोई मतभेद नहीं है. बाबा रामदेव ने देश के हज़ारों लोगों का अपने योग से इलाज किया. देश भर में घूम-घूमकर शिविर लगाए. योग को फिर से जीवित किया और इसका पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार किया. अपने शिविरों में कपालभांति और प्राणायाम के दौरान राजनीतिक और सामाजिक संदेश भी दिया. वह देशभक्ति, स्वदेशी और ईमानदारी की बातें करते थे. लोगों को अच्छा लगता था. पूरे देश में इसके लिए बाबा रामदेव की जय-जयकार हुई. फिर बाबा रामदेव ने राजनीति में सक्रिय होने का ऐलान कर दिया. उन्होंने घोषणा भी कर दी कि अगले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी 543 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. राजनीति और धर्म में अंतर होता है. संत की जवाबदेही धर्म से होती है. राजनेताओं को जनता को जवाब देना पड़ता है. क़ानून और न्यायालय किसी भी व्यक्ति को तब तक दोषी नहीं मानता, जब तक उसे सज़ा न मिल जाए. बाबा रामदेव पर लगे आरोप स़िर्फ आरोप ही हैं. सच्चाई क्या है, इसका फैसला अदालत करेगी. बाबा रामदेव को याद रखना चाहिए कि क़ानून की निगाहों में ए राजा आज भी निर्दोष हैं, लेकिन जनता की अदालत ने उन्हें दोषी मान लिया है. संत और राजनेता में यह भी एक अंतर है, संत मौन धारण कर सकते हैं, यह छूट नेताओं को नहीं है. रामदेव संत से राजनेता बन चुके हैं. उन्हें अब सारे सवालों और आरोपों का जवाब देश की जनता को देना होगा.
धर्माचार्यों का बाबा रामदेव पर आरोप

* गुरु शंकर देव की हत्या का आरोप
* राजीव दीक्षित, भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के सचिव, की मौत के ज़िम्मेवार
* आस्था चैनल को ज़ोर-ज़बरदस्ती और धोखाधड़ी से हथियाने का आरोप
* आस्था चैनल के हेड किरीट सी मेहता के अपहरण और जान से मारने की धमकी देने का आरोप
* संत समाज को भ्रष्टाचार की आग में झोंकने का आरोप
* धर्म को धंधा बनाने का आरोप

छोटी-छोटी सफाइयां चाहिए…
आचार्य बालकृष्ण भारत के नागरिक नहीं हैं
बाबा रामदेव के दाहिने हाथ माने जाने वाले आचार्य बालकृष्ण भारत के नागरिक नहीं हैं. देश के संतों का आरोप है कि वह नेपाल के नागरिक हैं. उनका जन्म नेपाल में हुआ. उनका पूरा परिवार नेपाल का नागरिक है, लेकिन उनके पासपोर्ट पर यह लिखा है कि वह जन्म से भारतीय हैं. आचार्य बालकृष्ण पहले बाबा रामदेव के शिविरों और उनके कार्यक्रमों का ध्यान रखते थे. जबसे बाबा रामदेव दवाइयां बेचने लगे और बिज़नेस करने लगे तो आचार्य बालकृष्ण ने बाबा का पूरा साम्राज्य संभाल लिया. बाबा रामदेव ने जबसे राजनीति में आने का फैसला किया है, तबसे बाबा के राजनीतिक मोर्चे की कमान आचार्य बालकृष्ण ने संभाल ली है. अब जबकि बाबा रामदेव ने राजनीतिक दल बनाने की घोषणा कर दी है तो आचार्य बालकृष्ण की नागरिकता पर सवाल उठना लाज़िमी है. बाबा रामदेव को आज नहीं तो कल, इस सवाल का जवाब देना ही होगा.
बाबा रामदेव के नाम ज़मीन नहीं तो क्या उनके भाई और रिश्तेदारों के नाम पर तो है
बाबा रामदेव पर यह आरोप लगा कि वह देश और विदेश में सैकड़ों एकड़ ज़मीन के मालिक हैं. बाबा रामदेव मीडिया के सामने आए. उन्होंने सा़फ-सा़फ कहा कि उनके नाम एक भी इंच ज़मीन नहीं है. साधु-संतों को ज़मीन की क्या ज़रूरत है. बाबा रामदेव का खंडन सराहनीय है. लेकिन संत समाज के लोग इसे बाबा रामदेव की एक चाल बता रहे हैं. उनका सवाल है कि बाबा रामदेव के नाम से ज़मीन नहीं है तो क्या हुआ, उनके सगे भाई और रिश्तेदारों के नाम से तो करोड़ों की संपत्ति है, सैकड़ों एकड़ ज़मीन है. उनकी मांग है कि इस बात की जांच होनी चाहिए कि वर्ष 2000 से पहले बाबा रामदेव के सगे भाई और उनके रिश्तेदारों के पास कितनी ज़मीन थी और कितनी संपत्ति थी और अब 2011 में उनके पास क्या है. इस जांच से दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा.
बाबा रामदेव और मीडिया
संतों ने यह स़फाई मांगी है कि बाबा रामदेव का देश के एक बड़े मीडिया घराने और उसके मुख्य कार्यकर्ता से क्या रिश्ता है? और इस कार्यकर्ता ने बाबा रामदेव की अंतरराष्ट्रीय मार्केटिंग में इतना बड़ा रोल क्यों निभाया?
नोट : यह पूरी रिपोर्ट धर्माचार्यों और जगतगुरुओं से हुए इंटरव्यू पर आधारित है. इसके बावजूद हमने बाबा रामदेव पर लगे आरोपों के बारे में उनसे बात करने की कोशिश की. उनके सहायकों को फोन किया तो उन्होंने अजय आर्य का नंबर दे दिया. कई बार डायल करने के बाद भी उन्होंने फोन नहीं उठाया. फिर जब उन्होंने फोन उठाया तो कहा कि बाबा रामदेव ने अपनी तऱफ से सारी बातें 23 तारी़ख को कह दी हैं. हमने जब यह कहा कि बाबा रामदेव पर नए आरोप लग रहे हैं तो उन्होंने कहा कि आप बाबा रामदेव के मीडिया प्रभारी एस के तीजारेवाला से बात कीजिए. तीजारेवाला के नंबर पर हम फोन करते रहे, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. हम बाबा रामदेव की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में हैं.

Thursday 3 March 2011

Purvanchal University Ka Kamal-1 wyakti 3 Naukari

ye patra hai Dr. Vikram Pratap Singh ji ka mere Es lekh par ager aapko confermation chahiye to ense Cell No. 9415255199 par sampark kar saktey hai
Dr. Vikram pratap singh ji is based from the Jaunpur (UP)
Well........., puri katha par ata hu
Jaunpur ka Itihas k panno par vishesh Mahatva raha hai. jisko hum sabhi log jantey hai
ab iska Naam Roshan kar Raha hai Purvanchal Vishwavidyalaya. Jaunpur ki eklauti University. Swargiya Veer Bahadur Singh ji k naam par eska naam Veer bahadur singh Purvanchal University pada hai. ye apne alag alag kriya kalapo k wajah se hamesh Highlight raha hai
Mager eska aj ek aisa karya batata hu jisko sun kar sabhi k rongatey khadey ho jaige.
Dr. Vikram Pratap Singh ek sajjan manushya aur apne chhatrajivan mai bhi apni sajjanta k liye apne dosto mai charchit rahe hai. Aj esi sajjanta k karan ek musibat mai fas gai hai. Apne swargiya Pita Sri V.P.singh ji k sapno ko safal kartey huwe enho ne Purvanchal University se sambaddha T.D.college Jaunpur mai Adhoc (Anumodit) Lecturer k post par dated 27/10/2006 ko join kia abhi zindigi 5000/= per month k chhotee si salary par larkhara rahi thi k ek subah ne enpar bijli gira di. ek news paper k madhyam se enko pata chala k ye ek hi university k 2 aur mahavidyalaya mai Lecturer hai. Ye pareshan hokar sedhey university pahuchey aur waha jacha toh pata chala k S.No. 268- Maa Sharda mahavidyalaya aur S.No. 248 mai Seeta Ram Singh,Ramanand singh Smarak Mahavidyalaya jo dono Azamgarh disstt. mai hai mai bhi posted dikh rahe hai aur uske bakayada salary bhi jati hai. Ab ye pareshan hokar Kulsachiv aur Kulpati k Paas pahuchey Dono ne kaha k dekhata hu. fir kafi dino tak na dekhane par enho ne regd. Dak dwara fir bheja ek patra dono ko uspar karyawahi hui ya nai hui magar enke ghar par kuchh sajjan log pahuhey aur samjhaya k Singh saheb kyo kisi k pet par laat martey ho. jaisa chal raha hai chalne do. aj ek saal k baad bhi kuchh nai badala aur abhi tak waisa hi chal raha hai.
Humari sarkar Ghotalo par dhayan tab deti hai jab wo ghotala desh ki Eco.ko gahra dhakka deta hai. Hum log Alag alag vicharo se apne wall ko F/B par sajatey hai aur ek aise bahas kartey hai jiska koi mahatva nai hota hai mager es lekh par apne pratikriya nai dete. Aj Dr. Vikram Pratap Singh ek aise chakraview mai fas gai hai jiska andaz nai lagaya ja sakta hai. Ager koi Action sarkar dwara hota hai toh University aur Management dono hi palla jhhad kar kinare ho jaige aur fasege ye akele bechare Dr. Saheb. Magar Hum log es par comments nai dengey koi awaz nai uthaige kyo k humko kya hai jiska matter hai wo janey
Dekhta hu Desh bhakti ka aur Galat k Kilaf awaz uthane walo ko.kahna aur karna 2 alag alag baat hai.
Maine pahal k aap Tag kar k es muhim ko agey badhao.