Tuesday 25 October 2011

मांसाहार खाओ देश बचाओ

                         
                                       शुरू अल्लाह के नाम से, जो निहायत ही रहीम व करीम है 

दैनिक जागरण 31 अगस्त २०१० के खबर के अनुसार सैनिकों के राशन पर सीएजी की फटकार का असर नज़र आने लगा है । रक्षा मंत्रालय ने अपने जवानों की सेहत की सुध लेते हुए उनके आहार को और पौष्टिक बनाने का फैसला किया है ।इस कवायद में फील्ड और पीस एरिया में तैनात जवानों को जहाँ अब हर दिन दो अंडे दिए जाएँगे ।वहीं नौ हज़ार फुट और उससे अधिक ऊँचाई पर तैनात जवानों को दिन में एक के बजाए दो अंडे मिलेंगे । ()
सैनिकों की यह खुराक बड़े वैज्ञानिक विश्लेषण के बाद तय की जाती है देश की रक्षा में तैनात जवानों की सेहत का पूरा ध्यान सरकार को रखना पड़ता है सिर्फ शाकाहार जवानों को संतुलित आहार प्रदान नही कर सकता क्योकि इससे शरीर मे सही मात्रा में प्रोटीन की ज़रूरत पूरी नही हो सकती । इसलिए सरकार ही का दायित्व है कि वह जवानों के संतुलित आहार का इंतजाम करे । क्योकि प्रोटीन की कमी के कारण जवानों मे कुपोषण हो सकता है और वह युद्ध के समय मे देश व सैनिकों के लिए घातक हो सकता है । अब देश के नागरिकों का भी फ़र्ज़ है वह भी देश के लिए हर परिस्थिति के लिए हर समय तैयार रहें देश के हर समय जान देने व लेने के लिए तैयार रहें । कभी ऐसी स्थिति आने पर मांसाहार न करने के कारण प्रोटीन की कमी के कारण कुपोषण से जूझते लोग क्या करेंगे ?ऐसी स्थिति मे वह लोग पीठ दिखाने को विवश होंगे और पराजय का कारण भी बन सकते है । इसलिए हर व्यक्ति को प्रचुर मात्रा मे प्रोटीन के लिए रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित मेन्यू अपनाने की ज़रूरत है । इसके लिए लोगों को अपने काल्पनिक अंधविश्वासो को बाधा नही बनने देना चाहिए ।
कुछ लोग मांसाहार के खिलाफ दुष्प्रचार करके अपने लोगों को कमजोर बना रहें है ऐसा करके वह लोग जाने अनजाने शत्रु देश का काम आसान कर रहें है | ऐसे लोगो को पकड़ कर जेल में बंद कर देना चाहिए क्योकि ऐसे लोग देश के दुश्मन है और विदेशी ताकतों के हाथो बिक्कर देश को कमज़ोर करने का षड़यंत्र रच रहे है | और समय रहते हुवे जग्रुल हनी की ज़रूरत है वरना देश को ऐसे शाकाहार का प्रचार करने वाले भरष्ट और देशद्रोही लोग बर्बाद कर देंगे इसी लिए कहता हु मांसाहार खाओ देश बचाओ 

तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना। कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।

                                                                       


                                                               
                                       शुरू अल्लाह के नाम से, जो निहायत ही रहीम व करीम है


पुस्‍तक एवं लेखक:‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय, भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा, राज्यसभा के सदस्य, इलाहाबाद नगरपालिका के चेयरमैन एवं इतिहासकार
जब में इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई. से 1953 ई. तक) तो मेरे सामने दाखिल-खारिज का एक मामला लाया गया। यह मामला सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर से संबंधित जायदाद के बारे में था। मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे। एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज़ दाखिल किये जो उसके खानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे। इन दस्तावेज़ों में शहंशाह औरंगज़ेब के फ़रमान भी थे। औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था। मैंने सोचा कि ये फ़रमान जाली होंगे। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोडने के लिए प्रसिद्ध है, वह एक मन्दिर को यह कह कर जागीर दे सकता हे यह जागीर पूजा और भोग के लिए दी जा रही है। आखि़र औरंगज़ेब कैस बुतपरस्ती के साथ अपने को शरीक कर सकता था। मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली हैं, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डा. सर तेज बहादुर सप्रु से राय लेना उचित समझा। वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। मैंने दस्तावेज़ें उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि औरंगजे़ब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं। इसके बाद उन्होंने अपने मुन्शी से बनारस के जंगमबाडी शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा। यह मुक़दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था। जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मन्दिर को जागीर दी गई थी।

इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की, उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया। डाक्टर सप्रू की सलाह पर मैंने भारत के पिभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतो के पास पत्र भेजकर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उन मन्दिरों को जागीरें दी गई हों तो वे कृपा करके उनकी फोटो-स्टेट कापियां मेरे पास भेज दें। अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई। उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई। यह फ़रमान 1065 हि. से 1091 हि., अर्थात 1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे। हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाण्ति हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रूख सामने लाया गया है। भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं। यदि सही ढ़ंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाऐंगे जिनसे औरंगज़ेब का गै़र-मुस्लिमों के प्रति उदार व्यवहार का पता चलेगा। औरंगज़ेब के फरमानों की जांच-पड़ताल के सिलसिले में मेरा सम्पर्क श्री ज्ञानचंद और पटना म्यूजियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डा. पी एल. गुप्ता से हुआ। ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृस्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे। मुझे खुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता भी सच्चाई को तलाश करने में व्यस्त हैं और काफ़ी बदनाम औरंगज़ेब की तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे हैं। औरंगज़ेब, जिसे पक्षपाती इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हकूमत का प्रतीक मान रखा है। उसके बारें में वे क्या विचार रखते हैं इसके विषय में यहां तक कि ‘शिबली’ जैसे इतिहास गवेषी कवि को कहना पड़ाः
तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।

औरंगज़ेब पर हिन्दू-दुश्मनी के आरोप के सम्बन्ध में जिस फरमान को बहुत उछाला गया है, वह ‘फ़रमाने-बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह फ़रमान बनारस के मुहल्ला गौरी के एक ब्राहमण परिवार से संबंधित है। 1905 ई. में इसे गोपी उपाघ्याय के नवासे मंगल पाण्डेय ने सिटि मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था। एसे पहली बार ‘एसियाटिक- सोसाइटी’ बंगाल के जर्नल (पत्रिका) ने 1911 ई. में प्रकाशित किया था। फलस्वरूप रिसर्च करनेवालों का ध्यान इधर गया। तब से इतिहासकार प्रायः इसका हवाला देते आ रहे हैं और वे इसके आधार पर औरंगज़ेब पर आरोप लगाते हैं कि उसने हिन्दू मन्दिरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि इस फ़रमान का वास्तविक महत्व उनकी निगाहों से आझल रह जाता है। यह लिखित फ़रमान औरंगज़ेब ने 15 जुमादुल-अव्वल 1065 हि. (10 मार्च 1659 ई.) को बनारस के स्थानिय अधिकारी के नाम भेजा था जो एक ब्राहम्ण की शिकायत के सिलसिले में जारी किया गया था। वह ब्राहमण एक मन्दिर का महंत था और कुछ लोग उसे परेशान कर रहे थे। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘अबुल हसन को हमारी शाही उदारता का क़ायल रहते हुए यह जानना चाहिए कि हमारी स्वाभाविक दयालुता और प्राकृतिक न्याय के अनुसार हमारा सारा अनथक संघर्ष और न्यायप्रिय इरादों का उद्देश्य जन-कल्याण को अढ़ावा देना है और प्रत्येक उच्च एवं निम्न वर्गों के हालात को बेहतर बनाना है। अपने पवित्र कानून के अनुसार हमने फैसला किया है कि प्राचीन मन्दिरों को तबाह और बरबाद नहीं किया जाय, बलबत्ता नए मन्दिर न बनए जाएँ। हमारे इस न्याय पर आधारित काल में हमारे प्रतिष्ठित एवं पवित्र दरबार में यह सूचना पहुंची है कि कुछ लोग बनारस शहर और उसके आस-पास के हिन्दू नागरिकों और मन्दिरों के ब्राहम्णों-पुरोहितों को परेशान कर रहे हैं तथा उनके मामलों में दख़ल दे रहे हैं, जबकि ये प्राचीन मन्दिर उन्हीं की देख-रेख में हैं। इसके अतिरिक्त वे चाहते हैं कि इन ब्राहम्णों को इनके पुराने पदों से हटा दें। यह दखलंदाज़ी इस समुदाय के लिए परेशानी का कारण है। इसलिए यह हमारा फ़रमान है कि हमारा शाही हुक्म पहुंचते ही तुम हिदायत जारी कर दो कि कोई भी व्यक्ति ग़ैर-कानूनी रूप से दखलंदाजी न करे और न उन स्थानों के ब्राहम्णों एवं अन्य हिन्दु नागरिकों को परेशान करे। ताकि पहले की तरह उनका क़ब्ज़ा बरक़रार रहे और पूरे मनोयोग से वे हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के लिए प्रार्थना करते रहें। इस हुक्म को तुरन्त लागू किया जाये।’’

इस फरमान से बिल्कुल स्पष्ट हैं कि औरंगज़ेब ने नए मन्दिरों के निर्माण के विरूद्ध कोई नया हुक्म जारी नहीं किया, बल्कि उसने केवल पहले से चली आ रही परम्परा का हवाला दिया और उस परम्परा की पाबन्दी पर ज़ोर दिया। पहले से मौजूद मन्दिरों को ध्वस्त करने का उसने कठोरता से विरोध किया। इस फ़रमान से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह हिन्दू प्रजा को सुख-शान्ति से जीवन व्यतीत करने का अवसर देने का इच्छुक था। यह अपने जैसा केवल एक ही फरमान नहीं है। बनारस में ही एक और फरमान मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि औरंगज़ेब वास्तव में चाहता था कि हिन्दू सुख-शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। यह फरमान इस प्रकार हैः ‘‘रामनगर (बनारस) के महाराजाधिराज राजा रामसिंह ने हमारे दरबार में अर्ज़ी पेश की हैं कि उनके पिता ने गंगा नदी के किनारे अपने धार्मिक गुरू भगवत गोसाईं के निवास के लिए एक मकान बनवाया था। अब कुछ लोग गोसाईं को परेशान कर रहे हैं। अतः यह शाही फ़रमान जारी किया जाता है कि इस फरमान के पहुंचते ही सभी वर्तमान एवं आने वाले अधिकारी इस बात का पूरा ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति गोसाईं को परेशान एवं डरा-धमका न सके, और न उनके मामलें में हस्तक्षेप करे, ताकि वे पूरे मनोयोग के साथ हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए प्रार्थना करते रहें। इस फरमान पर तुरं अमल गिया जाए।’’ (तीरीख-17 बबी उस्सानी 1091 हिजरी) जंगमबाड़ी मठ के महंत के पास मौजूद कुछ फरमानों से पता चलता है कि

औरंगज़ैब कभी यह सहन नहीं करता था कि उसकी प्रजा के अधिकार किसी प्रकार से भी छीने जाएँ, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। वह अपराधियों के साथ सख़्ती से पेश आता था। इन फरमानों में एक जंगम लोंगों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) की ओर से एक मुसलमान नागरिक के दरबार में लाया गया, जिस पर शाही हुक्म दिया गया कि बनारस सूबा इलाहाबाद के अफ़सरों को सूचित किया जाता है कि पुराना बनारस के नागरिकों अर्जुनमल और जंगमियों ने शिकायत की है कि बनारस के एक नागरिक नज़ीर बेग ने क़स्बा बनारस में उनकी पांच हवेलियों पर क़ब्जा कर लिया है। उन्हें हुक्म दिया जाता है कि यदि शिकायत सच्ची पाई जाए और जायदा की मिल्कियत का अधिकार प्रमानिण हो जाए तो नज़ीर बेग को उन हवेलियों में दाखि़ल न होने दया जाए, ताकि जंगमियों को भविष्य में अपनी शिकायत दूर करवाने के लिएए हमारे दरबार में ने आना पडे। इस फ़रमान पर 11 शाबान, 13 जुलूस (1672 ई.) की तारीख़ दर्ज है। इसी मठ के पास मौजूद एक-दूसरे फ़रमान में जिस पर पहली नबीउल-अव्वल 1078 हि. की तारीख दर्ज़ है, यह उल्लेख है कि ज़मीन का क़ब्ज़ा जंगमियों को दया गया। फ़रमान में है- ‘‘परगना हवेली बनारस के सभी वर्तमान और भावी जागीरदारों एवं करोडियों को सूचित किया जाता है कि शहंशाह के हुक्म से 178 बीघा ज़मीन जंगमियों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) को दी गई। पुराने अफसरों ने इसकी पुष्टि की थी और उस समय के परगना के मालिक की मुहर के साथ यह सबूत पेश किया है कि ज़मीन पर उन्हीं का हक़ है। अतः शहंशाह की जान के सदक़े के रूप में यह ज़मीन उन्हें दे दी गई। ख़रीफ की फसल के प्रारम्भ से ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा बहाल किया जाय और फिर किसीप्रकार की दखलंदाज़ी न होने दी जाए, ताकि जंगमी लोग(शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) उसकी आमदनी से अपने देख-रेख कर सकें।’’ इस फ़रमान से केवल यही ता नहीं चलता कि औरंगज़ेब स्वभाव से न्यायप्रिय था, बल्कि यह भी साफ़ नज़र आता है कि वह इस तरह की जायदादों के बंटवारे में हिन्दू धार्मिक सेवकों के साथ कोई भेदभा नहीं बरता था। जंगमियों को 178 बीघा ज़मीन संभवतः स्वयं औरंगज़ेब ही ने प्रान की थी, क्योंकि एक दूसरे फ़रमान (तिथि 5 रमज़ान, 1071 हि.) में इसका स्पष्टीकरण किया गया है कि यह ज़मीन मालगुज़ारी मुक्त है।

औरंगज़ेब ने एक दूसरे फरमान (1098 हि.) के द्वारा एक-दूसरी हिन्दू धार्मिक संस्था को भी जागीर प्रदान की। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘बनारस में गंगा नदी के किनारे बेनी-माधो घाट पर दो प्लाट खाली हैं एक मर्क़जी मस्जिद के किनारे रामजीवन गोसाईं के घर के सामने और दूसरा उससे पहले। ये प्लाट बैतुल-माल की मिल्कियत है। हमने यह प्लाट रामजीवन गोसाईं और उनके लड़के को ‘‘इनाम’ के रूप में प्रदान किया, ताकि उक्त प्लाटों पर बाहम्णें एवं फ़क़ीरों के लिए रिहायशी मकान बनाने के बाद वे खुदा की इबादत और हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए दूआ और प्रार्थना कने में लग जाएं। हमारे बेटों, वज़ीरों, अमीरों, उच्च पदाधिकारियों, दरोग़ा और वर्तमान एवं भावी कोतवालों के अनिवार्य है कि वे इस आदेश के पालन का ध्यान रखें और उक्त प्लाट, उपर्युक्त व्यक्ति और उसके वारिसों के क़ब्ज़े ही मे रहने दें और उनसे न कोई मालगुज़ारी या टैक्स लिया जसए और न उनसे हर साल नई सनद मांगी जाए।’’ लगता है औरंगज़ेब को अपनी प्रजा की धार्मिक भावनाओं के सम्मान का बहुत अधिक ध्यान रहता था।

हमारे पास औरंगज़ेब का एक फ़रमान (2 सफ़र, 9 जुलूस) है जो असम के शह गोहाटी के उमानन्द मन्दिर के पुजारी सुदामन ब्राहम्ण के नाम है। असम के हिन्दू राजाओं की ओर से इस मन्दिर और उसके पुजारी को ज़मीन का एक टुकड़ा और कुछ जंगलों की आमदनी जागीर के रूप में दी गई थी, ताकि भोग का खर्च पूरा किया जा सके और पुजारी की आजीविका चल सके। जब यह प्रांत औरंगजेब के शासन-क्षेत्र में आया, तो उसने तुरंत ही एक फरमान के द्वारा इस जागीर को यथावत रखने का आदेश दिया। हिन्दुओं और उनके धर्म के साथ औरंगज़ेब की सहिष्ण्ता और उदारता का एक और सबूत उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर के पुजारियों से मिलता है। यह शिवजी के प्रमुख मन्दिरों में से एक है, जहां दिन-रात दीप प्रज्वलित रहता है। इसके लिए काफ़ी दिनों से पतिदिन चार सेर घी वहां की सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाथा था और पुजारी कहते हैं कि यह सिलसिला मुगल काल में भी जारी रहा। औरंगजेब ने भी इस परम्परा का सम्मान किया। इस सिलसिले में पुजारियों के पास दुर्भाग्य से कोई फ़रमान तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु एक आदेश की नक़ल ज़रूर है जो औरंगज़ब के काल में शहज़ादा मुराद बख़्श की तरफ से जारी किया गया था। (5 शव्वाल 1061 हि. को यह आदेश शहंशाह की ओर से शहज़ादा ने मन्दिर के पुजारी देव नारायण के एक आवेदन पर जारी किया था। वास्तविकता की पुष्टि के बाद इस आदेश में कहा गया हैं कि मन्दिर के दीप के लिए चबूतरा कोतवाल के तहसीलदार चार सेर (अकबरी घी प्रतिदिन के हिसाब से उपल्ब्ध कराएँ। इसकी नक़ल मूल आदेश के जारी होने के 93 साल बाद (1153 हिजरी) में मुहम्मद सअदुल्लाह ने पुनः जारी की। साधारण्तः इतिहासकार इसका बहुत उल्लेख करते हैं कि अहमदाबाद में नागर सेठ के बनवाए हुए चिन्तामणि मन्दिर को ध्वस्त किया गया, परन्तु इस वास्तविकता पर पर्दा डाल देते हैं कि उसी औरंगज़ेब ने उसी नागर सेठ के बनवाए हुए शत्रुन्जया और आबू मन्दिरों को काफ़ी बड़ी जागीरें प्रदान कीं।


मंदिर ढहने की घटना
निःसंदेह इतिहास से यह प्रमाण्ति होता हैं कि औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर और गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद को ढा देने का आदेश दिया था, परन्तु इसका कारण कुछ और ही था। विश्वनाथ मन्दिर के सिलसिले में घटनाक्रम यह बयान किया जाता है कि जब औरंगज़ेब बंगाल जाते हुए बनारस के पास से गुज़र रहा था, तो उसके काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं ने बादशाह से निवेदन किया कि वहा। क़ाफ़िला एक दिन ठहर जाए तो उनकी रानियां बनारस जा कर गंगा दनी में स्नान कर लेंगी और विश्वनाथ जी के मन्दिर में श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर आएँगी। औरंगज़ेब ने तुरंत ही यह निवेदन स्वीकार कर लिया और क़ाफिले के पडाव से बनारस तक पांच मील के रास्ते पर फ़ौजी पहरा बैठा दिया। रानियां पालकियों में सवार होकर गईं और स्नान एवं पूजा के बाद वापस आ गईं, परन्तु एक रानी (कच्छ की महारानी) वापस नहीं आई, तो उनकी बडी तलाश हुई, लेकिन पता नहीं चल सका। जब औरंगजै़ब को मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने फ़ौज के बड़े-बड़े अफ़सरों को तलाश के लिए भेजा। आखिर में उन अफ़सरों ने देखा कि गणेश की मूर्ति जो दीवार में जड़ी हुई है, हिलती है। उन्होंने मूर्ति हटवा कर देख तो तहखाने की सीढी मिली और गुमशुदा रानी उसी में पड़ी रो रही थी। उसकी इज़्ज़त भी लूटी गई थी और उसके आभूषण भी छीन लिए गए थे। यह तहखाना विश्वनाथ जी की मूर्ति के ठीक नीचे था। राजाओं ने इस हरकत पर अपनी नाराज़गी जताई और विरोघ प्रकट किया। चूंकि यह बहुत घिनौना अपराध था, इसलिए उन्होंने कड़ी से कड़ी कार्रवाई कने की मांग की। उनकी मांग पर औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र-स्थल को अपवित्र किया जा चुका है। अतः विश्नाथ जी की मूर्ति को कहीं और लेजा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाय और महंत को मिरफतर कर लिया जाए। डाक्टर पट्ठाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है। पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा. पी. एल. गुप्ता ने भी इस घटना की पुस्टि की है।
मस्जिद ढहाने की घटना
गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद की घटना यह है कि वहां के राजा जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालुगज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजते थे। कुछ ही वर्षाें में यह रक़म करोड़ों की हो गई। तानाशाह न यह ख़ज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी। जब औरंज़ेब को इसका पता चला तो उसने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद गिरा दी जाए। अतः गड़ा हुआ खज़ाना निकाल कर उसे जन-कल्याण के कामों मकें ख़र्च किया गया। ये दोनों मिसालें यह साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि औरंगज़ेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्जिद में कोई फ़र्क़ नहीं समझता था। ‘‘दर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उन लोगों को दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और पनगढंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोडने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए हैं।


साभार पुस्तक ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय,मधुर संदेश संगम, अबुल फज़्ल इन्कलेव, दिल्ली-25 औरंगज़ेब जेब

काबा में शंकर ................?

                            
शुरू अल्लाह के नाम से, जो निहायत ही रहीम व करीम है.
मुझसे अक्सर कई मेरे हिन्दू दोस्त पूछा करते है और कहते है कि तुम्हें पता है, काबा भी हमारा ही है! वह हमारे शंकर जी को कैद करके तुमलोगों ने रक्खा है उसमें एक पत्थर लगा है और वह पत्थर ही भगवान शिव हैं और वह वहां विराजमान हैं! इसलिए तुम सब भी उन्ही की पूजा करते हो. यह पत्थर केवल मात्र पत्थर ही नहीं बल्कि भाग्वान शिव का साक्षात रूप है और तुम लोग भी इसे पूजते हो ! मुझे हंसी आजाती थी कल भी एक साहेब ने ऐसे ही कहा मैने उनको उनके अंदाज़ में जवाब दिया मैने कहा, "अगर यही बात है तो तुम मुसलमान क्यूँ नहीं बन जाते और तुम भी जाओ उस पत्थर को चूमने" और दूसरी बात तब तो मेरा धर्म सबसे बलशाली धरम है जिसने तुम्हारे भगवान् तक को कैद करके रख लिया है
मै यह सवाल अपने बचपन से सुनता आ रहा हूँ जिसको देखो अपने भगवान् की महीमा गाता है और फिर कहता है की हमने उनको कैद करके रख लिया है उन्हों ने कहा की उनके ऊपर गंगा जल डालने से वो प्रकट हो जायेगे मैने कहा भाई तो एक काम करो तुम मुस्लमान बन जाओ और गंगा जल लेकर जाओ वह और उनको प्रकट करवाओ मगर अगर प्रकट नहीं हुवे तो आप अपनी पूरी कौम को मुस्लमान कर देना और अगर प्रकट हो गए जो संभव नहीं है तो वो खुद तुम्हारे कहानी के हिसाब से सबको हिन्दू बना देंगे ............ यह कह कर मै जोर से हसने लगा उनकी जल भुन कर खाक हो गए
उन्हों ने कहा की आप मूर्ति पूजा का विरोध करते हो तो फिर काबा की तरफ़ मुहं करके नमाज़ क्यूँ पढ़ते हैं?
मैने कहा की इसमे तुम्हारी गलती नहीं है कभी अपने धर्म को पढ़ा हो तब पता चले की क्यों ............... यार सारे वेड उठालो गीता उठालो,पुराण उठा लो,रामायण उठालो,रामचरितमानस उठालो,कादम्बनी उठालो और साथ में पराशर उठा लो कही दिखाओ की मूर्ति पूजा है खाई बहस का सिलसिला ख़तम हो गया मगर मैने ऐसे लोगो को आइना दिखाने क लिए सोचा की ये पूरा लिख ही डालू
मैं हिन्दू भाईयों में अज्ञानतावश, या जानबूझकर कुतर्क के ज़रिये हमेशा से पूछे गए इस सवाल का जवाब देता हूँ कि काबा में भगवान शिव हैं, या मुस्लिम काबा के पत्थर अथवा काबा की पूजा करते हैं.

सबसे पहला जवाब है:

जब आप मानते हो कि वहां (मक्का के काबा में, मुसलमानों के इबादतगाह में) शिव हैं तो आप मुसलमान क्यूँ नहीं हो जाते? (The stone you are seeing in the Kaa'ba is called Hajr-e-Aswad)

दूसरा जवाब:

काबा मतलब किबला होता है जिसका मतलब है- वह दिशा जिधर मुखातिब होकर मुसलमान नमाज़ पढने के लिए खडे होते है, वह काबा की पूजा नही करते.


मुसलमान किसी के आगे नही झुकते, न ही पूजा करते हैं सिवाय अल्लाह के.

सुरह बकरा में अल्लाह सुबहान व तआला फरमाते हैं -
"ऐ रसूल, किबला बदलने के वास्ते बेशक तुम्हारा बार बार आसमान की तरफ़ मुहं करना हम देख रहे हैं तो हम ज़रूर तुमको ऐसे किबले की तरफ़ फेर देंगे कि तुम निहाल हो जाओ अच्छा तो नमाज़ ही में तुम मस्जिदे मोहतरम काबे की तरफ़ मुहं कर लो और ऐ मुसलमानों तुम जहाँ कहीं भी हो उसी की तरफ़ अपना मुहं कर लिया करो और जिन लोगों को किताब तौरेत वगैरह दी गई है वह बखूबी जानते है कि ये तब्दील किबले बहुत बजा व दुरुस्त हैं और उसके परवरदिगार की तरफ़ से है और जो कुछ वो लोग करते हैं उससे खुदा बेखबर नहीं." (अल-कुरान 2: 144)

इस्लाम एकता के साथ रहने का निर्देश देता है:

चुकि इस्लाम एक सच्चे ईश्वर यानि अल्लाह को मानता है और मुस्लमान जो कि एक ईश्वर यानि अल्लाह को मानते है इसलिए उनकी इबादत में भी एकता होना चाहिए और अगर ऐसा निर्देश कुरान में नही आता तो सम्भव था वो ऐसा नही करते और अगर किसी को नमाज़ पढने के लिए कहा जाता तो कोई उत्तर की तरफ़, कोई दक्षिण की तरफ़ अपना चेहरा करके नमाज़ अदा करना चाहता इसलिए उन्हें एक ही दिशा यानि काबा कि दिशा की तरफ़ मुहं करके नमाज़ अदा करने का हुक्म कुरान में आया. तो इस तरह से मुसलमान कही भी रहे काबे की तरफ रुख करके नमाज़ अदा करता है और वो रुख पश्चिम पड़ता है क्यों की काबा दुनिया के नक्शे में बिल्कुल बीचो-बीच (मध्य- Center) स्थित है:

आखिर ये लोग क्यों भूल जाते है की दुनिया में मुसलमान ही प्रथम है जिन्होंने विश्व का नक्शा बनाया. उन्होंने दक्षिण (south facing) को upwards और उत्तर (north facing) को downwards करके नक्शा बनाया तो देखा कि काबा center में था. बाद में पश्चिमी भूगोलविद्दों ने दुनिया का नक्शा उत्तर (north facing) को upwards और दक्षिण (south facing) को downwards करके नक्शा बनाया. फ़िर भी अल्हम्दुलिल्लाह नए नक्शे में काबा दुनिया के center में है.

काबा का तवाफ़ (चक्कर लगाना) करना इस बात का सूचक है कि ईश्वर (अल्लाह) एक है:
जब मुसलमान मक्का में जाते है तो वो काबा (दुनिया के मध्य) के चारो और चक्कर लगते हैं (तवाफ़ करते हैं) यही क्रिया इस बात की सूचक है कि ईश्वर (अल्लाह) एक है.

काबा पर खड़े हो कर अजान दी जाती थी:

हज़रत मुहम्मद सल्ल.ने काबे पर खडे होकर अज़ान deney का hukm huzrat belal को दिया और hazrat belal ने काबे के ऊपर खडे होकर अज़ान दी और उसके बाद भी लोग काबे पर खड़े हो कर लोगों को नमाज़ के लिए बुलाने वास्ते अजान देते थे. उनसे जो ये इल्जाम लगाते हैं कि मुस्लिम काबा कि पूजा करते है, से एक सवाल है कि कौन मूर्तिपूजक होगा जो अपनी आराध्य मूर्ति के ऊपर खडे हो उसकी पूजा करेगा. जवाब दीजिये?

वैसे इसका तीसरा और सबसे बेहतर जवाब है मेरे पास की :  
हदीस में एक जगह लिखा है कि "हज़रत उमर (र.अ.) यह फ़रमाते हैं कि मैं इसे चूमता हूँ, क्यूंकि इसे हमारे प्यारे नबी (स.अ.व.) ने चूमा था, वरना यह सिर्फ एक पत्थर ही है इसके सिवा कुछ नहीं, यह मेरा ना लाभ कर सकता है, ना ही नुकसान."

होलिका दहन (आग) से अल्लाह ने पैग़म्बर इब्राहीम (प्रहलाद) को

शुरू अल्लाह के नाम से, जो निहायत ही रहीम व करीम है.
आँखें खोलने पर सब पता चल सकता है, जहाँ एक तरफ कई महान लोगों ने इस्लाम और हिन्दू धर्म में समानता वाली किताबें लिख डाली वहीँ यह पूर्णतया सत्य ही है कि एक दुनियाँ में कई मान्यताएं नहीं हो सकती सिवाय एक  के ! दुनियाँ एक, उसे चलाने वाला एक तो फिर बाक़ी सब एक से ज्यादा कैसे हो सकते हैं.

जिस तरह से प्रहलाद की कहानी है ठीक उसी तरह से पैग़म्बर इब्राहीम की हक़ीक़त भी. प्रहलाद की कहानी तो सभी जानते हैं मगर भारतीय जन मानस के ज़ेहन में पैग़म्बर इब्राहीम की हक़ीक़त का कोई अक्स मौजूद नहीं. तो आइये आज जानते हैं उन्हीं के बारे में!

इस बात से कई दानिशमंदो का इनकार नहीं कि भारत वर्ष में भी नबियों का आना हुआ हो सकता है, कुछ लोगों को तो राम और कृष्ण को भी नबियों की श्रेणी में लाने की कोशिश की है. मनु की कहानी से हूबहू मिलती-जुलती जीवनी नुह (अ.) की भी है  यही नहीं नाम पर गौर करिए तो आपको नाम भी एक लगेगा महा नुह और मनु में सामंती दिखेगी | जिससे हम भारतीयों को जानने और समझने की आवश्यकता है. अगर सच्चे और साफ़ दिल से इन सभी विषयों को जो कि आप में समानता लाने के उद्देश्य को सफल बनायें, का अध्ययन अब अति आवश्यक है वरना बिना जानकारी के हम पूर्वाग्रही बनते चले जा रहे है जिसका नतीजा सिर्फ़ विनाश है विकास कत्तई नहीं !

भक्त प्रहलाद की काहानी:
क बार असुरराज हिरण्यकशिपु विजय प्राप्ति के लिए तपस्या में लीन था। मौका देखकर देवताओं ने उसके राज्य पर कब्जा कर लिया उसकी गर्भवती पत्नी को ब्रह्मर्षि नारद अपने आश्रम में ले आए। वे उसे प्रतिदिन धर्म और ईश्वर महिमा के बारे में बताते। यह ज्ञान गर्भ में पल रहे पुत्र प्रहलाद ने भी प्राप्त किया। वहाँ प्रहलाद का जन्म हुआ।

बाल्यावस्था में पहुँचकर प्रहलाद ने एकेश्वर-भक्ति शुरू कर दी। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने गुरु को बुलाकर कहा कि ऐसा कुछ करो कि यह ईश्वर का नाम रटना बंद कर दे। गुरु ने बहुत कोशिश की किन्तु वे असफल रहे। तब असुरराज ने अपने पुत्र की हत्या का आदेश दे दिया। उसे विष दिया गया, उस पर तलवार से प्रहार किया गया, विषधरों के सामने छोड़ा गया, हाथियों के पैरों तले कुचलवाना चाहा, पर्वत से नीचे फिंकवाया, लेकिन ईश कृपा से प्रहलाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। तब हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को बुलाकर कहा कि तुम प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ जाओ, जिससे वह जलकर भस्म हो जाए।

होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि तब तक कभी हानि नहीं पहुँचाएगी, जब तक कि वह किसी सद्वृत्ति वाले मानव का अहित करने की न सोचे। अपने भाई की बात को मानकर होलिका भतीजे प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ गई। उसका अहित करने के प्रयास में होलिका तो स्वयं जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद हँसते हुए अग्नि से बाहर आ गया

मकामे इब्राहीम (काबा में) 
पैग़म्बर इब्राहीम (अ.) की जीवनी:
पैग़म्बर इब्राहीम के पिता आज़र अपने ज़माने के श्रेष्ठतम मूर्तिकार व मूर्तिपूजक थे. उनकी बनाई हुई मूर्तियों की पूजा हर जगह की जाती थी. आज़र कुछ मूर्तियों को इब्राहीम (अ.) को भी खेलने के लिए खिलौने बतौर दे दिया करते थे. एक बार उन्होंने अपने पिता द्वारा निर्मित मूर्तियों को एक मंदिर में देखा और अपने पिता से पूछा 'आप इन खिलौनों को मंदिर में क्यूँ लाये हो?' 'यह मूर्तियाँ ईश्वर का प्रतिनिधित्व करती हैं, हम इन्ही से मांगते है और इन्ही की इबादत करते हैं.', पिता आज़र ने बच्चे इब्राहीम (अ.) को समझाया. लेकिन आज़र की बातों को बालक इब्राहीम (अ.) के मानस पटल ने नकार दिया.

जीवनी लम्बी है पाठकों की सुविधानुसार इसे संक्षेप में कुछ यूँ समझ लीजिये कि इब्राहीम अलैहिसलाम ने सूरज चाँद या मुर्तिओं में किसी को भी अपना माबूद (पूज्य) मानाने से इनकार कर दिया क्यूंकि सूरज सुबह उग कर शाम अस्त हो जाता, चाँद रात में ही दिखाई देता और मूर्तियों के बारे में उनका क़िस्सा ज़रूर आप तक पहुँचाना चाहता हूँ कि एक बार वो मुर्तिओं को देखने रात में मंदिर गए और वहां एक बहुत बड़ी मूर्ति देखी बाक़ी छोटी-छोटी मूर्ति भी देखी. उन्होंने छोटी सभी मूर्तियों को तोड़ दिया और चले आये अगले दिन लोगों ने पूछा कि 'इन छोटी मूर्तियों को किसने तोडा' तो इब्राहीम (अ.) ने कहा - 'लगता है रात में इस बड़े बुत से इन छोटे बुतों का झगड़ा हो गया होगा जिसके चलते बड़े बुत ने गुस्से में आकर इनको तोड़ डाला होगा, ऐसा क्यूँ न किया जाये कि बड़े बुत से ही पूछा जाये कि उसने ऐया क्यूँ किया.' लोगों ने कहा - ये बुत नहीं बोलते हैं'

इस तरह से उन्होंने अपने पिता और लोगों को भी इस्लाम का पैग़ाम सुनाया और मुसलमान बन जाने की सलाह दी लेकिन ऐसा हो न सका. लेकिन मूर्तियों के तोड़े जाने और अन्य हक़ीक़तों के जान जाने के उपरान्त उन्होंने इब्राहीम (अ.) को ख़ूब खरी-खोटी सुनायी और डांटा और वहां से चले जाने को कहा. लेकिन इब्राहीम ने कहा- मैं ईश्वर (अल्लाह) से आपके लिए क्षमा करने कि दुआ मांगूंगा.

पैग़म्बर इब्राहीम (अ.) को अल्लाह ने आग से बचाया:
स तरह से इब्राहीम एक अल्लाह की इबादत की शिक्षा लोगों को देने लगे. जिसके चलते हुकूमत की नज़र में आ गए और नमरूद जो कि हुकूमत का सदर था ने उन्हें जान से मरने का हुक्म दे दिया. उन्हें आग के ज़रिये ख़त्म करने का हुक्म जारी हुआ. यह खबर जंगल में आग की तरह फ़ैली और जिस जगह पर ऐसा कृत्य करने का फरमाना हुआ था, भीड़ लग गयी और लोग दूर-दूर से नज़ारा देखने आ पहुंचे. ढोल नगाड़ा और नृत्य का बंदोबस्त किया गया और वहां एक बहुत बड़ा गड्ढा खोदा गया जिसमें ख़ूब सारी लकड़ियाँ इकठ्ठा की गयीं. फिर ऐसी आग जलाई गयी जैसी पहले कभी नहीं जली थी. उसके लपटे ऐसी कि बादलों को छू रही थी और आस पास के पक्षी भी जल कर निचे गिरे जा रहे थे. इब्राहीम (अ.) के हाथ और पैर को ज़ंजीर से जकड़ दिया गया था और एक बहुत बड़ी गुलेल के ज़रिये से बहुत दूर से उस आग में फेंका जाना था.

ठीक उसी समय जिब्राईल फ़रिश्ता (जो कि केवल नबियों पर ही आता था) आया और बोला: 'ऐ इब्राहीम, आप क्या चाहते हैं?' इब्राहीम चाहते तो कह सकते थे कि उन्हें आग से तुरंत बचा लिया जाए. मगर उन्होंने कहा, 'मैं अल्लाह की रज़ा (मर्ज़ी) चाहता हूँ जिसमें वह मुझसे खुश रहे.' ठीक तभी गुलेल जारी कर दी गयी और इब्राहीम (अ.) को आग की गोद में फेंक दिया गे. लेकिन अल्लाह नहीं चाहता था  कि उनका प्यारा नबी आग से जल कर मर जाये इसलिए तुरंत हुक्म हुआ, 'ऐ आग ! तू ठंडी हो जा और इब्राहीम के लिए राहत का सामान बन

और इस तरह से अल्लाह का चमत्कार साबित हुआ. आग ने अल्लाह का हुक्म माना और इब्राहीम (अ.) को तनिक भी नहीं छुई बल्कि उनकी ज़ंजीर को ही छू सकी जिससे वह आज़ाद हो गए. इब्राहीम (अ.) बाहर आ गए और उनके चेहरे पर उतना ही सुकून और इत्मीनान था जैसे वो बाग़ की सैर करके आये हों या ठंडी हवा से तरो-ताज़ा होकर आयें हो और उनके कपड़े में रत्ती भर भी धुआँ नहीं बल्कि वे वैसे ही थे जैसे कि पहले थे.

लोगों ने इब्राहीम को आग से बच जाने की हकीकत देखी और आश्चर्यचकित हो गए और कहने लगे...... 'आश्चर्य है ! इब्राहीम (अ.) के ईश्वर (अल्लाह) ने उन्हें आग से बचा लिया.'

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इस तरह से भक्त प्रहलाद और इब्राहीम (अ.) के बीच काफ़ी समानताएं हैं जिसे हम नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते.  गहन अध्ययन के उपरान्त अवश्य सत्य की प्राप्ति हो जाएगी....आमीन !
शुक्र गुज़ार हूँ जनाब सलीम ख़ान साहेब के ब्लॉग का जिससे मैने काफी कुछ सीखा है और ये बिस्मिल्लाह उनका ही कॉपी किया है 

Monday 24 October 2011

किरण बेदी ने माना अपनी चोरी को

आयोजकों से अधिक यात्रा खर्च लेने के आरोपों का सामना कर रहीं अन्ना हजारे पक्ष की सदस्य किरण बेदी ने सोमवार को कहा कि उन्हें आमंत्रित करने वालों को यात्रा खर्च के ऐवज में ली गई अधिक राशि लौटा दी जायेगा 
ये उनका बयान ये साबित करने के लिए काफी है की किरण बेदी ने भी भरष्टाचार किया है अभी एक का खुलासा हुवा तो वो पैसे वापस देने की बात कर रही है बाकी ऐसे काफी केस होंगे जो अभी नहीं खुले है क्या किरण बेदी सबका पैसा वापस करेंगी
 

गुजरात दंगों का जिन्न

2002 गुजरात दंगों का जिन्न मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का पीछा नहीं छोड़ रहा है। कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त एमिकस क्यूरी राजू रामचंद्रन की रिपोर्ट मोदी पर भारी पड़ सकती है। सूत्रों के मुताबिक इस रिपोर्ट में एसआईटी के उलट मोदी के खिलाफ मामला न बंद करने की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निलंबित आईपीएस संजीव भट्ट समेत सभी गवाहों से पूछताछ होनी चाहिए।

दरअसल गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों सद्भावना मिशन के जरिए अपनी छवि सुधारने में लगे हैं। लेकिन हो सकता है कि उनकी इस कोशिश पर पानी फिर जाए। इसकी वजह बन सकती है सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट। एमिकस क्यूरी राजू रामचंद्रन की रिपोर्ट जल्द ही अदालत में पेश होने वाली है।

सूत्रों की मानें तो इस रिपोर्ट में मोदी और 2002 के गुजरात दंगों के बारे में काफी कुछ कहा गया है। इस रिपोर्ट में मोदी के खिलाफ मामला चलाने की पैरवी की गई है। आरोप लगाए गए हैं कि आईपीसी के सेक्शन 153 और 166 के तहत मोदी ने समुदायों के बीच शत्रुता फैलाई और जनसेवक के रूप में दायित्व नहीं निभाया। एमिकस क्यूरी का कहना है कि मोदी के खिलाफ केस को बंद नहीं किया जा सकता। केस चलाने के लिए काफी सबूत मौजूद हैं।

गौरतलब है कि 600 पन्नों की एसआईटी रिपोर्ट में कहा गया था कि गुलबर्ग सोसाइटी में मुसलमानों पर हमलों में सरकार की प्रतिक्त्रिया वैसी नहीं थी, जैसी होनी चाहिए थी। इससे पहले एसआईटी ने विश्व हिंदू परिषद की विचारधारा वाले वकील को दंगों से जुड़े केसों के लिए सरकारी वकील नियुक्त करने पर मोदी सरकार की आलोचना की थी। हालांकि, एसआईएटी ने मोदी के खिलाफ सबूत न होने की बात कहते हुए केस को आगे न बढ़ाने की पैरवी भी की थी।

साफ है कि एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट मोदी के सद्भावना मिशन की मुहिम में ग्रहण लगा सकती है। अपनी छवि सुधारने में लगे मोदी इन दिनों हज पर जाने वाले मुस्लिम भाईयों को भी शुभकामनाएं देने में लगे हैं। पूरे गुजरात में मोदी के शुभकामना वाले होर्डिग्स लगाए गए हैं। लेकिन इस रिपोर्ट के खुलासे ने एक बार फिर मोदी की मुसीबतें बढ़ा दी हैं।

Saturday 22 October 2011

पन्ना लाल अपनी प्रतिभा की धाक जमा चुका है


बांदा।वह शातिर चोरों को एक पल में खोज निकालने में माहिर है और खोई वस्तु को पलभर में ढ़ूंढ़ निकालता है। इतना ही नहीं, वह हर छुपाई गई बात का राज खोल देता है और आपके व्यक्तित्व व पेशे के बारे में भी बता सकता है। वह न तो कोई जासूस है और न ही सीबीआई इंस्पेक्टर। खास बात यह कि वह इंसान भी नहीं, बल्कि सर्वाधिक बेवकूफ और मंदबुद्धि माना जाने वाला गधा है। नाम लेकिन इंसानों जैसा है- पन्ना लाल।
चौंक गए न ! इस करतबी गधे के कारनामे जो भी देखता है, उसका दीवाना हो जाता है। यहां के गंगोह में चलने वाले भगवती मेले में काला जादू, तलवार की नोंक पर लटकती नन्ही परी, दंगल व झूला जहां लोगों को खूब आकर्षित कर रहा है, वहीं हर किसी की निगाह पन्ना लाल को तलाशती नजर आती है। सैकड़ों लोगों के बीच से पन्ना लाल बिना टिकट सर्कस का आनंद लेने वालों को खोज निकालता है।
पन्ना लाल बता देता है कि किसी व्यक्ति का पेशा क्या है, पत्नी से लड़कर आए पति, पति से बेहद प्यार करने वाली पत्नी, भाग्यशाली लड़की, पैसे वाली ससुराल किसकी होगी। कौन नहाकर नहीं आया है और किसी व्यक्ति की उम्र कितनी है, यह भी बताता है। साथ ही छुपाए गए सामान तक को आंखों पर पट्टी बंधे होने के बावजूद खोज निकालता है।
चौंकाने वाली बात यह है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा पूछे गए सवालों के सही जवाब देने में पन्ना लाल कोई चूक नहीं करता। अब तक किसी को उसने कोई गलत जवाब नहीं दिया है। इससे खुश होकर दर्शक उसे कई बार पुरस्कृत भी करते हैं।
पन्ना लाल के प्रशिक्षक और विशाल सर्कस के मालिक बनवारी लाल गोसांई का कहना है कि पशुओं को प्रशिक्षित करना उनका पुश्तैनी पेशा है। सभी जंतुओं मे बुद्धि होती है, गधा भी इससे अछूता नहीं है। आवश्यकता तो कठिन परिश्रम कर उसे साधने की है।
उनका कहना है कि गधे को प्रशिक्षित करने में दो वर्ष लगते हैं। मूलत: आगरा निवासी बनवारी लाल के अनुसार पन्ना लाल के करिश्मे सब जगह समान रूप से लोकप्रिय हैं और अब तक दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश व मुम्बई में पन्ना लाल अपनी प्रतिभा की धाक जमा चुका है।

वह रे अंधविश्वास

मेरठ। एक मां भला ऐसा कैसे कर सकती है। किसी के बहकावे में आकर अपनी दुधमुंही बच्ची के साथ ऐसे वारदात को कैसे अंजाम दे सकती है। जी हां, एक मां ने अंधविश्वास में आकर तंत्र विद्या के प्रयोग के दौरान अपनी ही छह माह की अबोध बेटी के मुंह में चिमटा घूसेड़ दिया। निर्दयी मां के ऐसा करते ही बच्ची की हालत खराब हो गई। बच्ची को तुरंत मेरठ के अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

जानकारी के मुताबिक, जिले के मवाना के हस्तिनापुर में एक मुस्लिम महिला तंत्र विद्या सीख रही है। उसने इसका प्रयोग अपनी छह माह की पुत्री पर ही कर डाला। मां ने अपनी अबोध पुत्री के मुंह में चिमटा दे दिया। इससे बच्ची के मुंह में जख्म हो गया। हालत बिगड़ने पर पसीजी मां उसे डॉक्टर के यहां ले गई। उसने इलाज करने से मना कर दिया। फिर मेरठ ले गई जहां उसका इलाज चल रहा है।

पुलिस के मुताबिक, डॉक्टर ने इस संबंध में थाने पर सूचना दी। इसके बाद महिला और उसके पति से पूछ ताछ की जा रही है। पड़ताल के बाद ही मामला दर्ज किया जाएगा।


 

मुसलमानों के नाम पर बदनुमा कलंक तसलीमा नसरीन का नया शगूफा



अक्‍सर विवादित बयान देकर चर्चा में रहने वालीं लेखिका तस्‍लीमा नसरीन ने इस बार महिलाओं को लेकर एक अजीब-ओ-गरीब बयान दिया है। उन्‍होंने यह बयान ट्वीट के जरिए दिया है। 

तसलीमा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाएं धरती पर 72 कुंवारे पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध बना सकती हैं, क्‍योंकि जन्‍नत में उन्‍हें यह नसीब नहीं होगा।
तसलीमा ने जब 90 के दशक में अपनी पहली किताब 'लज्जा' लिखी थी तभी से वह मुसलमानों के निशाने पर आ गई थी। अपने विवादस्पद किताब के कारण उन्हें अपन मुल्क छोड़ना पड़ा था। भारत समेत कुछ देशों में वे शरणार्थी के तौर पर रही।

पिछले साल तसलीमा ने फ्रांस सरकार ने जब महिलाओं के हिजाब पहनने पर बैन लगा दिया तब उन्होंने फ्रांस सरकार के इस निर्णय का समर्थन करने के लिए फ्रांस स्थित अपने आवास पर 'दी फोर्ट नाइटली टैबलेट' नाम के एक वेबसाइट पर कथित तौर पर पहली बार बेडरूम में कम कपड़ों में तस्वीरें खिंचवाई थी और उसे फेसबुक पर शेयर भी किया था।
मेरा सवाल हमारे अलिमो से है की अभी तक कतल का फतवा इस जैसी कामिनी किस्म की औरत के लिए क्यों नहीं जरी करते जो तवायफ से भी गई गुज़री है क्यों की तवायफ पैसो के लिए सिर्फ अपना जिस्म बेचती है इसने अपना पूरा वजूद भी बेच दिया काफिरों के हाथ सिर्फ पैसो के लिए | ऐसे कई इदारे है जहा पैसो की कमी नहीं है कई अलीम है जिनके पास अथाह पैसा है क्या कौम के लिए इतना नहीं कर सकते

आपकी राय
क्या तस्लीमा नसरीन को ऐसे विवादास्पद बयान देने चाहिए? क्या ऐसे भड़काऊ बयान किसी भी सभ्य समाज में मंजूर किए जा सकते हैं? या किसी लेखक या कलाकार को अभिव्यक्ति की पूरी आज़ादी है? इन अहम सवालों के जवाब में अपनी राय संतुलित शब्दों में जाहिर करें।क्या तसलीमा को हमको खुद ही इस्लामी तरीके से सजा देना चाहिए मुसलमानों को एक होकर तसलीमा का क्या विरोध karna चाहिए

Thursday 20 October 2011

उत्तर प्रदेश के एक और मंत्री पर लगा बलात्‍कार का आरोप लगा

उत्तर प्रदेश के एक और मंत्री पर बलात्‍कार का आरोप लगा है। चित्रकूट जिले में बरगढ़ क्षेत्र की स्वयंसेवी संस्था में काम करने वाली एक युवती ने आरोप लगाया है कि कैबिनेट मंत्री दद्दू प्रसाद ने उसके साथ दो बार बलात्कार किया है। युवती के साथ बलात्‍कार की पुष्टि हो गई है। ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद ने युवती के आरोपों को बड़ी राजनीतिक साजिश करार दिया है।

इस युवती ने एसपी दफ्तर के सामने जहर खाकर जान देने की कोशिश भी की। अदालत में कलम बंद बयान देने के बाद बुधवार को पत्रकारों से बातचीत में इस युवती ने सनसनीखेज आरोप लगाए। उसने मंत्री दद्दू प्रसाद और उनके पीए पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि स्वयंसेवी संस्था में काम करने के दौरान मंत्री के पीए से उसकी करीबी हो गई। साल 2007 में पीए ने नौकरी दिलवाने के बहाने उसे मंत्री दद्दू प्रसाद से मिलवाने बांदा डाक बंगले ले गया। वहां खाने के साथ उसे कोई नशीला पदार्थ खिला दिया गया, जिससे बेसुध हो गई। इसी दौरान डाक बंगले में मंत्री ने दो बार बलात्कार किया।

ब्लैकमेल भी किया

युवती का आरोप है कि मंत्री ने उसके साथ मंदिर में शादी भी रचाई थी। आरोप है कि मंत्री का पीए अंगद सिंह 2005 से ही उसके साथ दुराचार कर रहा है। अंगद ने उसकी एक निर्वस्त्र तस्वीर खींच ली थी, इसके बाद से वह फोटो को सार्वजनिक करने की धमकी देकर लगातार ब्लैकमेल कर दुराचार करता रहा। महिला ने मंत्री और पीए से अपनी जान को खतरा बताते हुए सुरक्षा मांगी है।

मंत्री की सफाई

दद्दू प्रसाद ने युवती के इन आरोपों पर कहा कि बड़ी राजनीतिक साजिश के तहत उनके खिलाफ कथित बलात्‍कार के झूठे आरोप लगवाए जा रहे हैं। उनका आरोप है कि चुनाव नजदीक देख कुछ राजनीतिक विरोधी युवती को पैसे देकर उनके खिलाफ साजिश के तहत झूठा बयान दिलवा रहे हैं।

सत्य क्या है यह तो अभी किसी को नहीं पता है परन्तु मंत्री और युवती दोनों में से जिसका आरोप सही है तो दुसरे को कड़ी सजा होना चाहिए ताकि दुबारा कोई ऐसा समीकरण न दोहराया जाये 

विवाद की रामायण: सीता रावण की बेटी, राम की बहन, हनुमान स्‍त्री प्रेमी

दिल्ली यूनिवर्सिटी के कोर्स से ए. के. रामानुजन की 'रामायण' पर लिखे गए विवादास्पद निबंध को हटाने पर विवाद शुरू हो गया है। यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग कुछ टीचर निबंध को हटाने के खिलाफ एकजुट होने लगे है। शिक्षकों ने 24 अक्‍टूबर को प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। इस मार्च में दूसरे विश्वविद्यालयों के भी कुछ शिक्षक शामिल हो सकते हैं। 

रामानुजन द्वारा रामायण की विविधता पर केंद्रित इस विवादास्पद निबंध ‘थ्री हंड्रेड रामायंस: फाइव एक्साम्पल्स एंड थ्री थाट्स आन ट्रांसलेशन’ को डीयू की एके‍डमिक कौंसिल ने भारी बहुमत से खारिज कर दिया है, लेकिन शिक्षकों के एक समूह को यह फैसला रास नहीं आ रहा है। कुछ इतिहासकारों को भी यह फैसला नागवार गुजरा है।

जेएनयू में समकालीन भारतीय इतिहास के प्रोफेसर आदित्‍य मुखर्जी कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि कौंसिल का फैसला हास्‍यास्‍पद है। ऐसे बेबुनियाद कारणों से किसी निबंध को पाठ्यक्रम से हटाने का कोई मतलब नहीं है। एतिहासिक तौर पर यह तथ्‍य है कि रामायण को लेकर इस तरह के कई विचार और स्‍वरूप हैं। किसी समूह की ओर से किए जा रहे विरोध के आधार पर एजुकेशनल टेक्‍स्‍ट को बदलना सही नहीं है।’     

इस निबंध में सीता को रावण की पुत्री और राम-सीता को भाई-बहन बताने के साथ हनुमान को महिला प्रेमी और रसिक स्वभाव वाला कहा गया है। डीयू का डेमोक्रेटिक टीचर्स फोरम दो छात्र संगठनों- स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया और आल इंडिया स्टूडेंट्स फोरम के साथ मिलकर इस निबंध को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए मुहिम छेड़ने जा रहा है।

फेसबुक पर बहस

फेसबुक पर भी डीयू के शिक्षकों में इस निबंध को हटाने को लेकर जमकर बहस हो रही है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के टीचर ग्रुप पेज पर इतिहास के कई प्रोफेसरों ने इस निबंध को हटाने पर आपत्ति जताई है। इन प्रोफेसरों ने फेसबुक पर अपनी टिप्पणियां दी हैं। एलएसआर कॉलेज के पंकज झा ने इतिहास के शिक्षकों से बैठक कर इस मामले पर अपना फैसला लेने की संभावनाओं पर विचार करने को कहा है। उन्होंने लिखा है,'ना तो एक्सपर्ट पैनल और ना ही शिक्षकों ने इस निबंध पर ऐतराज जताया, फिर भी इसे हटा दिया गया।' दयाल सिंह कॉलेज के नवीन गौर ने लिखा है, ' जिन छात्रों ने यह निबंध पढ़ा है, उनको भी इसे हटाने का फैसला गलत लग रहा है।'