Thursday 17 November 2011

पुजारी की करतूत एक मंदिर में हनुमान जी करवाते है लडकियों से बलात्कार



राजकोट जिले के गोंडल नेशनल हाईवे पर स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर में सोमवार को लोगों ने यहां के एक साधु को तीन लड़कियों साथ सेक्स करते हुए पकड़ लिया। हनुमान जी के प्राचीन मंदिर में पुजारी द्वारा किए जा रहे इस कृत्य से लोग इतना भड़क गए कि उन्होंने नग्न अवस्था में ही साधु को पीटना शुरू कर दिया। जानकारी के अनुसार लोगों ने उसे अधमरा कर मंदिर से कुछ दूरी पर दोबारा मंदिर में न दिखाई देने की धमकी देकर छोड़ दिया था। लेकिन रात में साधु की लाश नग्न अवस्था में मंदिर से कुछ दूरी पर पड़ी मिली है। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज जांच की कार्रवाई शुरू कर दी है।

हिंदु समाज में साधु और भगवा वस्त्र का सम्माननीय स्थानीय है। साधुओं को धर्मरक्षक, धर्यप्रवर्तक और ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में पूजा जाता है। परंतु अगर यही साधु ही वासना का गंदा खेल मंदिर में ही खेलने लगे तो लोगों की भावनाओं पर किस तरह का आघात होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है।

ठीक ऐसा ही कुछ गोंडल के पास नेशनल हाईवे पर स्थित प्राचीन खिलोरी हनुमानजी के मंदिर में हुआ। इस मंदिर के पुजारी रामदास गुरु श्यामदास नाम के पुजारी को दोपहर के समय लोगों ने एक नहीं, बल्कि तीन लड़कियों के साथ कामक्रीड़ा करते रंगे हाथों पकड़ लिया। जिन लोगों ने साधु को इस हालत में देखा, उन्होंने तुरंत ही आसपास के लोगों को भी यहां बुला लिया और साधु को नग्न अवस्था में ही पीटना शुरू कर दिया और अधमरा कर मंदिर से कुछ दूरी पर दोबारा मंदिर में न दिखाई देने की धमकी देकर छोड़ दिया।

लेकिन रात में पुलिस को साधु की मौत की खबर मिली और वह घटना स्थल पर पहुंची। घटना स्थल पर साधु की लाश पूरी तरह से नग्न अवस्था में थी। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज जांच की कार्रवाई शुरू कर दी है। इस मामले में अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। पुलिस के अनुसार साधु के जिस्म पर चोट के निशान नहीं है, इसलिए इसकी भी संभावना है कि शायद शर्म के मारे उसने जहर खाकर आत्महत्या कर ली हो।

इससे पहले भी दो लड़कियों के साथ पकड़ा जा चुका था :
पुजारी रामदास इस हनुमान मंदिर में पिछले 10 वषों से रह रहा था। लोगों के अनुसार उसे पहले भी दो लड़कियों के साथ पकड़ा जा चुका था।

बलात्कारी है इन्द्र देवता


बलात्कारी इन्द्र 
हिन्दू धर्म में संबंधो में विवाह के खिलाफत की जाती है अपने को उत्तम समझने वाले इस धर्म के कई किस्से और सत्य आपको बता चूका हु जैसे ब्रह्मा ने अपनी पुत्री से विवाह किया विष्णु ने व्यभिचार किया इत्यादि अब इस धर्म के कथित भगवन (इस शब्द पर आप अप्पति न करे क्यों की कथित उसको कहते है जिसको सभी न माने)
इन्द्र द्वारा परे इस्त्री का छल से किया बलात्कार आपके सामने लाता हु
धर्म ग्रंथो में रामायण का उल्लेख करते हुवे आपको यह घटना बता रहा हु जिसका उदहारण आपको शास्त्रों में भी मिल जायेगा
घटना कुछ इस प्रकार है की ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या काफी सुन्दर थी जिनपर कथित भगवन इन्द्र की गन्दी नज़र थी अक्सर ऐसा होता था की जब ऋषि घर पर न हो तो इन्द्र जाकर अपनी वासना शांत करते थे वो भी ऋषि के भेस में एक दिन ऋषि इसनान करने गए हुवे थे तभी इन्द्र अपनी वासना शांति के लिए ऋषि का भेष बनाकर अहिल्या के पास पहुचे और अपनी वासना बुझा रहे थे की तभी ऋषि गौतम को शंका हुई और वह वापस अगये उन्होने अपनी पत्नी को नग्न अवस्था में देखा और अपनी पत्नी और इन्द्र दोनों को श्राप दे दिया |
इस प्रकार की काम वासना शांत करने को बलात्कार की श्रेणी में रक्खा जाता है इससे यह सिद्ध होता है की भगवन भगवन न होकर एक बलात्कारी आम मनुष्य है जिसका कोई धर्म इमां नहीं होता क्योकि भगवन को काम वासना या फिर किसी प्रकार की इच्छा नहीं होती ये इन्द्र केवल एक बलात्कारी पुरुष है और काम वासना इसके रोम रोम में बसी है
ऐसे को भगवन अथवा देवता अगर कहा जाता है तो फिर रावन को राक्षस क्यों कहा जाता है वो तो सिर्फ हरण करके ले गया था और यहाँ कथित भगवन ने बलात्कार किया है अतः इन्द्र को देवता नहीं राक्षस कहना उचित होगा



Tuesday 15 November 2011

अग्निवेश का भ्रष्टाचार एक मकान को गुंडई में कब्जियाया

सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश विवादों से अपना पीछा नहीं छुड़ा पा रहे हैं। नई दिल्ली के पॉश लुटियंस जोन में मौजूद 7, जंतर मंतर रोड बंगले में वह पिछले 20 सालों से रह रहे हैं, लेकिन आज तक किराया नहीं चुकाया है। बंगले का मालिकाना हक रखने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल ट्रस्ट (एसवीबीपीटी) के प्रबंध ट्रस्टी वीरेश प्रताप चौधरी का कहना है कि उन्होंने एनडीएमसी समेत कई दफ्तरों में इस बाबत शिकायत की है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है।

अग्निवेश के फेसबुक अकाउंट और उनकी वेबसाइट पर भी पते के तौर पर 7, जंतर मंतर रोड दर्ज है। एसवीबीपीटी ने बंगले के अलग-अलग हिस्सों को किराया पर दिया हुआ है। एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर में दावा किया गया है कि चौधरी से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कहा था कि वह स्वामी अग्निवेश को कुछ दिनों तक 7, जंतर मंतर रोड बंगले में रहने दें। लेकिन चौधरी का कहना है कि स्वामी अग्निवेश ने कभी भी बंगला छोड़ा ही नहीं। चौधरी ने जब चंद्रशेखर से इस बाबत बात की तो उन्होंने कहा, ‘साधु लोग जहां जाते हैं, वहीं बस जाते हैं।’ 
कई दशकों से स्वामी अग्निवेश के सहयोगी रहे स्वामी आर्यवेश ने भी किराया न चुकाए जाने की पुष्टि की है, लेकिन उनका दावा है कि बंधुआ मुक्ति मोर्चा नाम से बिजली, पानी और रखरखाव के बिल का भुगतान किया जा रहा है। स्वामी अग्निवेश से जुड़े गैर सरकारी संगठनों-बंधुआ मुक्ति मोर्चा और सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के भी दफ्तर इस बंगले के पीछे के हिस्से में मौजूद हैं।

गौरतलब है कि टीम अन्ना के सदस्य रहे अग्निवेश पिछले दिनों बिग बॉस के पांचवें संस्करण में बतौर पर मेहमान शामिल हुए थे। इसके बाद उनकी तीखी आलोचना हुई थी।

Sunday 13 November 2011

बैलगाड़ी यूग में जीने को मजबूर काशी(वाराणसी)


हमारा मुल्क २१वि सदी को chala गया है और हम २१वि सदी में आगे बढ़ चुके है मगर भारत को सबसे जादा पर्यटन से लाभ देने वाला अपने उत्तर प्रदेश का बनारस (वाराणसी) आज भी बैलगाड़ी यूग में जीने को मजबूर है, इसका उदहारण यहाँ हर रोज़ देखने को मिल जाता है आज इस अदने इंसान को भी ऐसा ही महसूस हुवा
वक्त था शाम के ४ बजे का मै बनारस में आज सुबह आया और कुछ कामो की नियत करके अपनी मोटर साइकिल लेकर सड़क पर निकल गया लगभग ४ सालो के बाद आज मैने बनारस की सडको पर मोटर साइकिल चलाई. पूरे रास्तो में मुझे भीड़ कुछ जादा दिखाई दी वजह थी की आज UPTET की परीक्षा थी और बनारस को इसमे से लगभग एक लाख सत्तर हज़ार की परीक्षा का सौभाग्य मिल गया था उसपर आज ही देश के सबसे इमानदार नेताओ में से एक श्री श्री अमर सिंह जी की सभा भी थी फिर क्या बनारस के कप्तान साहेब सब कुछ भूल लग गए आदरणीय नेता जी के स्वागत में नतीजा कुछ एकदम अलग रहा सारी ट्राफिक रोक कर आदरणीय को लाया गया और लेजयागाया | फिर क्या था पूरा शहर जाम के शिकंजे  में कस गया मै भी एक जनता हु और फस रहा आपको जानकार आश्चर्य होगा की मुझे लगभग १५० मीटर का सफ़र मोटर साइकिल  से पूरा करने में मुझे ३ घंटे लगे और ट्राफिक को कंट्रोल करने के लिए शहर में चाँद पुलिस वाले फिर क्या हाल रहा होगा आप सोच ले मै  मोटर cycal  से था वह हालात ये थे के पैदल चलने वालो को भी जगह नहीं थी
ये रोज़ मर्रा का काम है यहाँ का अपराधियों का हौसला बुलंद है ४ दिनों में २ लूट हो चुकी है और दोनों शहर के सबसे व्यस्त चौराहे पर और कप्तान साहेब का वही बयान की बहुत जल्द ही पकड़ लेंगे नतीजा जीरो है |
 मुजसे एक sajjan ने पूछा bhai आपको ३ सालो में क्या फर्क लगा शहर में मैने जवाब दिया की कोई ख़ास नहीं बस पहले इतना चलने में मुझे ३-४ मिनट अधिकतम लगते थे आज ३ घंटे लगे baki सब एक जैसा है 
इस शहर के सांसद है आदरणीय श्री श्री श्री 10000008 मुरली मनोहर जोशी जी जो चुनाव जीतने के बाद अज तक वापस शहर नहीं आये यहाँ तक हो गया की bhajapa के ही कुछ लडको ने अपना विरोध दर्ज करते हुवे मुरली मनोहर के गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने पर दर्ज करवाई मगर हमारे देश के ये महान नेता को शर्म नहीं ए और फिर भी wo नहीं आये  अब आप समझ लीजिये की इस शहर की क्या इस्थिति होगी ...............
यहाँ का  ऑटो भाड़ा भी एकदम आस्मां की ऊंचाई पर है और यहाँ का प्रशासन ऑटो संगठन के आगे हमेशा नतमस्तक रहता है छोटी ऑटो में ५-६ सवारिय और २.५ किलोमीटर के सफ़र का भाडा १२ रुपया सवारी रात को पित्रोल का रेट एक रुपया बाधा सुबह २ रुपया ऑटो भाडा बाधा और अगर कम हुवा दाम तो भाडा कम नहीं होगा और अगर प्रशासन ने कोई कार्यवाही करने का मन बनाया तो हड़ताल और फिर प्रशासन से नूर कुश्ती फिर मांग पूरी हो जाती है इनकी ५ किलोमीटर की paridhi में बसे इस शहर के पास सिकल रिक्शा है लगभग डेढ़ लाख और लिसेंसे है केवल २५ हज़ार का
अब आप समझ सकते है की यहाँ क्या अंधेर नगरी है..........................

Saturday 12 November 2011

श्री राम सेना


एक टीवी चैनल ने अपने स्टिंग ऑपरेशन में इस बात का खुलासा किया है कि टीम अन्ना के सदस्यों पर हमला करने वाली श्री राम सेना के सदस्य अब कई और लोगो को निशाना बना सकते हैं | स्टिंग ऑपरेशन में इन युवकों ने बताया कि टीम अन्ना के सदस्यों पर सिर्फ पैसे के लिए हमला किया गया था। 
शिव सेना ने दिया था भूषण को पीटने का इनाम -
स्टिंग ओपरेशन के दौरान खुफिया कमरे के सामने बोलते हुए श्री राम सेना के इंदर वर्मा के दोस्त अरुण उपाध्याय ने स्टिंग में बताया कि भूषण पर हमला करने के बाद शिवसेना के एक सीनियर लीडर ने उन्हें लैपटॉप और सेलफोन दिए। अरुण दावा करता है कि उन्हें बाल ठाकरे ने मातोश्री बुलाया है। अरुण उपाध्याय ने स्टिंग में यह भी बताया संजय राउत उसके दोस्त हैं।
मेघा पाटकर को पीटेंगे -
प्रशांत भूषण को पीटने वाले श्री राम सेना  के युवको इंदर वर्मा और विष्णु गुप्ता ने कहा कि उनका अगला निशाना मेधा पाटकर हैं और  वे 10 दिसंबर को मेधा पाटकर पर हमला करेंगे। स्टिंग ऑपरेशन में उसने कहा अगला हमला मेधा पाटकर पर होगा, उसने कहा कि इस काम के लिए  कुछ महिलाएं तैयार की हैं,  नहीं तो केस लग जाएगा कि महिला पर हाथ उठाया है ।’ उसका कहना था कि मेधा पाटकर भी आजकल  कश्मीरियत पर कुछ ज्यादा ही बोल रही हैं। इंदर वर्मा ने कहा कि वह दिल्ली में अन्ना के मुंह पर कालिख भी पोतेगा। 

Friday 11 November 2011

हिन्दुत्व की राजनीति


राज ठाकरे हिन्दुत्व की राजनीति की खुराक पर बड़े हुए हैं. हिन्दुत्व की राजनीति की बुनियाद मुस्लिम विरोध पर टिकी हुई है. कभी-कभी यह इसाई विरोध के रूप में भी दिखाई देती है. पर राज ठाकरे को ऐसा समझ में आया कि शिव सेना से अलग होने एवं महाराष्ट्र के पिछले स्थानीय निकायों के चुनाव में करारी शिकस्त के बाद राजनीति में अपने को स्थापित करने के लिए उनके लिए उत्तर भारतियों के विरोध की राजनीति करनी आवश्यक थी. सो उन्होंने किया.

ऐसा लगा जैसे मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने वाली मशीन का मुंह उत्तर भारतीयों की तरफ मोड़ दिया गया हो. मामला उनके नियंत्रण के इस कदर बाहर निकल गया कि उनके राजनीतिक सहयोगियों के लिए उनकी कार्यवाइयों को जायज ठहराना मुश्किल हो गया.

राज ठाकरे ने जो मुद्दा उठाया है वह उन्हीं पर भारी पड़ रहा है. उत्तर भारतीय लोग तो मुम्बई, पंजाब, गुजरात, कोलकाता ही नहीं दुनिया के कई इलाकों में, जहां-जहां मजदूरों की जरूरत थी वहां, जा कर बसे हैं. ये वो काम करते हैं जो स्थानीय लोग नहीं करते. अक्सर ये काम काफी श्रम की मांग करते हैं.

उदाहरण के लिए बोझा उठाने का काम मुम्बई में महाराष्ट्र के लोग नहीं करते. अत: राज ठाकरे का यह कहना कि उत्तर भारतीय लोग मराठी लोगों का रोजगार छीन रहे हैं पूर्णतया सही नहीं है. यदि उत्तर भारतीय लोग मुम्बई में जिन कामों में लगे हुए हैं उनसे अपने हाथ खींच लें तो मुम्बई की अर्थव्यवस्था बैठ जाएगी. यही हाल भारत व दुनिया के अन्य इलाकों का है जहां उत्तर भारतीय लोगों ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार प्रदान करने का काम किया है.
अब तो देश के बड़े-बड़े हिन्दुत्ववादी नेता साध्वी प्रज्ञा ठाकुर व श्रीकांत पुरोहित के पक्ष में उतर आए हैं. क्या यह कोई बरदाश्त करेगा कि मोहम्मद अफजल गुरू या फिर अजमल आमिर कसब को कोई चुनाव लड़ाए?
एक तरफ अपना खून-पसीना बहा कर स्थानीय अर्थव्यवस्था को सींचने वाले लोग हैं तो दूसरी तरफ क्षेत्रवाद की संर्कीण घिनौनी राजनीति करने वाले राज ठाकरे जिन्होंने निरीह लोगों को हिंसा का शिकार बनाया. यह निष्कर्ष निकालना बहुत मुश्किल नहीं है कि कौन देश-समाज के हित में काम कर रहा है, कौन उसके विरोध में?

पूरा देश आवाक तो इस बात से है कि जिन महाराष्ट्र के लोगों पर राज ठाकरे को बहुत नाज़ था उनमें से ही कुछ लोग देश में आतंकवादी कार्यवाइयों को अंजाम देने में मुख्य साजिशकर्ता की भूमिका में थे. यह कितने शर्म और खतरे की बात है कि सेना में काम करने वाला लेफटिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित इन कार्यवाइयों में शामिल था. साध्वी-साधुओं की लिप्तता भी कम चौंकाने वाली नहीं है. देश की रक्षा करने की जिम्मेदारी स्वीकार किए हुए तथा समाज को अध्यात्मिक दिशा देने वाले व्यक्ति देश-समाज को अंदर से ही आघात पहुंचा रहे होंगे इसकी किसी को कल्पना ही नहीं थी.

देश में होने वाली आतंकवादी कार्यवाइयों के लिए पहले पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों व उसकी खुफिया संस्था को जिम्मेदार ठहराया जाता था. फिर बंग्लादेश के आतंकवादी संगठन का नाम आने लगा. अंत में यह कहा जाने लगा कि देश का ही मुस्लिम युवा संगठन सिमी इन कार्यवाइयों के लिए जिम्मेदार है. देश के कई इलाकों से मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारियां भी हुईं. किन्तु इनके खिलाफ आतंकवादी कार्यवाइयों में शामिल होने के कोई ठोस सबूत नहीं हैं. सिर्फ पुलिस हिरासत में उनके इकबालिया बयान के आधार पर ही कई मुस्लिम युवाओं को लम्बे समय तक पुलिस या न्यायिक हिरासत में रखा गया है. इनमें से अधिकांश को पुलिस की घोर मानसिक-शारीरिक यातनाओं का शिकार भी होना पड़ा है.

दूसरी तरफ आतंकवादी घटनाओं में लिप्त होने के जो भी सबूत मिले हैं वे हिन्दुत्ववादी संगठनों के खिलाफ हैं. अप्रैल 2006 के नांदेड़ में दो बजरंग दल के कार्यकर्ता एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े व्यक्ति के घर में बम बनाते हुए विस्फोट में मारे गए. तेनकाशी, तमिल नाडू, में जनवरी 2008 में रा.स्व.सं. के स्थानीय कार्यालय पर हुए हमले में संघ के ही सात कार्यकर्ता पकड़े गए. जून 2008 में ही महाराष्ट्र के गड़करी रंगायतन में हुई घटनाओं में भी हिन्दुत्ववादी संगठनों के ही कार्यकर्ता पकड़े गए.

24 अगस्त, 2008 को कानपुर में हुए एक बम विस्फोट में बजरंग दल के दो कार्यकर्ता मारे गए. और अब तक के सबसे बड़े खुलासे में मालेगांव व मोडासा बम विस्फोट की घटनाओं में हिन्दुत्ववादी संगठनों से जुड़े कई कार्यकर्ता अब तक गिरफ्तार किए जा चुके हैं. इसमें सबसे चौंकाने वाला पहलू है रा.स्व.सं. की सेना जैसे संगठन में घुसपैठ.

पहले शरारतपूर्ण ढंग से यह प्रचारित किया गया कि हरेक आतंकवादी मुस्लिम ही होता है. आतंकवादी घटनाओं में गिरफ्तार मुस्लिम युवाओं की कोई वकालत न करे इसके लिए वकीलों के संगठनों ने प्रस्ताव पारित किए. लखनऊ, फैजाबाद, धार, आदि, जगहों में जो वकील आतंकवादी घटनाओं के अभियुक्तों के पक्ष में खड़े हुए तो उनके साथ हाथा-पाई तक की गई. कहा गया कि आतंकवादियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हो सकता. विवेचना के पहले ही तथा बिना कोई मुकदमा चले ही अभियुक्तों को पुलिस-वकील-मीडिया आतंकवादी मान लेते थे.

अब तो सारा समीकरण ही उलट गया है. गोडसे व सावरकर की परिवार से जुड़ी एक महिला आतंकवादी घटनाओं में पकड़े गए हिन्दू अभियुक्तों के लिए चंदा इकट्ठा कर रही हैं. इनसे हम उम्मीद भी क्या कर सकते थे? अब हिन्दुत्ववादी वकीलों को कोई दिक्कत नहीं है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने हमेशा बिना सबूत के गिरफ्तारी, पुलिस हिरासत में लम्बे समय तक रखने, पुलिस द्वारा यातनाएं देने, नारको परीक्षण, आदि, का विरोध किया है. किन्तु अभी तक यह बहस मुस्लिम अभियुक्तों या नक्सलवाद से जुड़े होने के आरोप में पकड़े गए अभियुक्तों के संदर्भ में होती थी. तब मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर आतंकवाद या नक्सलवाद के समर्थक होने के आरोप भी लगते थे. कहा जाता था कि मानवाधिकार कार्यकर्ता आतंकवादी या नक्सलवादी घटनाओं के शिकार लोगों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं.

अब तो देश के बड़े-बड़े हिन्दुत्ववादी नेता साध्वी प्रज्ञा ठाकुर व श्रीकांत पुरोहित के पक्ष में उतर आए हैं. ऐसा नहीं दिखाई पड़ता कि वे उन आतंकी घटनाओं, जिनके लिए हिन्दुत्ववादी कार्यकर्ता पकड़े गए हैं, में मारे गए साधारण निर्दोष लोगों के प्रति जरा भी संवेदनशील हैं. शिव सेना श्रीकांत पुरोहित को चुनाव लड़ाना चाहती है तो उमा भारती प्रज्ञा ठाकुर को. क्या यह कोई बरदाश्त करेगा कि मोहम्मद अफजल गुरू को कोई चुनाव लड़ाए?

हिन्दुत्ववादी संगठन न सिर्फ परोक्ष रूप से हिंसा का या हिंसा करने वालों का समर्थन कर रहे हैं बल्कि काफी बेशर्मी पर उतर आए हैं. देश को इन्होंने काफी नुकसान पहुंचाया है. चाहे महात्मा गांधी ही हत्या हो अथवा बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना. इनकी गतिविधियों की वजह से देश में हमेशा अस्थिरता पैदा हुई है. ये देश में नफरत फैला कर समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करना चाहते हैं. इनको बेनकाब किया जाना बहुत जरूरी है. इनकी असली रूप अब सामने आ रहा है. राष्ट्रवाद का नारा तो से अपनी देश-विरोधी गतिविधियों को छुपाने के लिए देते हैं. देश-समाज को इनसे बचाने की जरूरत है. आम धार्मिक हिन्दुओं को अपने आप को हिन्दुत्ववादी संगठनों से अलग कर लेना चाहिए ताकि हिन्दू धर्म की सहिष्णुता की छवि बची रहे.

बेपर्दा होता हिन्दू आतंकवाद


रमजान के महिने में महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल मालेगांव और गुजरात के साबरकांठा जिले के अल्पसंख्यक बहुल मोडासा में लगभग एक ही वक्त एक ही तरीके से बम विस्फोट हुए। एक ऐसे वक्त में जब लोग ईद की तैयारियों के लिए निकले थे, उस वक्त कहीं खड़े किए गए दुपहिया वाहनों ने विस्फोटकों के जरिए मौत को उगला।  अगर मोडासा में अयुब नामुभाई घोरी का 15 साल का शहजादा मारा गया तो मालेगांव में पांचवी कक्षा की छात्रा सबा परवीन और तीन लोग वहीं ठौर मारे गए।
अक्सर जिस तरह समुदायविशेष पर दोषारोपण का सिलसिला चलता है, वही बात इन बम विस्फोटों के बारे में भी उछाली गयी थी, लेकिन कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अफसरों द्वारा की गयी निष्पक्ष जांच से यही नतीजा सामने आया है कि इन दोनों बम विस्फोटों में हिन्दु आतंकवादी समूहों का हाथ है। 23 अक्तूबर को 'इण्डिया न्यूज' चैनल ने भी इस मामले में अपनी विशेष प्रस्तुति दी।
इण्डियन एक्स्प्रेस में (23 अक्तूबर 2008) के मुताबिक उसे 'महाराष्ट्र पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से जो सूचना मिली है वह बताती है कि इन विस्फोटों को कथित तौर पर इन्दौर में सक्रिय हिन्दु अतिवादी समूह 'हिन्दु जागरण् मंच' ने अंजाम दिया था, जिसका करीबी रिश्ता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से है।' पुलिस के मुताबिक इन आतंकवादियों ने जांच अधिकारियों को गुमराह करने के लिए वहां इस्लामिक स्टीकर्स भी रख दिए थे, लेकिन उन्होंने कुछ ऐसे सूत्र भी छोड़े थे कि वे पकड़ में आ गए। जांच दल ने जब बम विस्फोट के लिए मालेगांव में इस्तेमाल की गयी स्कूटर की जांच की तब उन्होंने पाया कि ' वह एक एलएमएल फ्रीडम ब्राण्ड स्कूटर थी जिसमें अन्य वाहनों से भी पार्ट डाले गए थे और चासिस एवम इंजिन नम्बर भी मिटा दिया गया था। लेकिन स्कूटर की निर्मिति का वर्ष, डीलरों के रेकॉर्ड और अपराधविज्ञान शाखा के विशेषज्ञों की सहायता से इसके सूत्र गुजरात तक भी जाते दिखे। मोडासा के बम विस्फोट में इस्तेमाल मोटरसाइकिल एक ऐसे व्यक्ति की मालकियत की थी जो कथित तौर ''अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद'' की पृष्ठभूमि से था और इस काण्ड को अंजाम दिया था हिन्दू जागरण मंच के कारिन्दों ने जिन्होंने अपना कार्यालय इन्दौर स्थित एक गैरसरकारी संगठन के दफ्तर में बनाया है।''
गौरतलब है कि महाराष्ट्र पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों ने इस मामले की पुष्टि की लेकिन मामले की सम्वेदनशीलता को देखते हुए आधिकारिक तौर पर कुछ वक्तव्य देने से इन्कार किया। उनका कहना था कि केन्द्रीय एजेन्सियों को इसके बारे मे बताया गया है। इस बात को रेखांकित करना यहां जरूरी है महाराष्ट्र के जिस आतंकवाद विरोधी दस्ते ने हेमन्त करकरे की अगुआई में इस मामले की जांच की, उसी ने कुछ माह पहले महाराष्ट्र के ठाणे और वाशी जैसे स्थानों पर हुए रहस्यमय बम विस्फोटों की गुत्थी भी सुलझायी थी। इन बम विस्फोटों में 'सनातन संस्था' और 'हिन्दू जनजागृति समिति' जैसे अतिवादी संगठनों के कार्यकर्ता पकड़े गए थे, जिनके खिलाफ पिछले दिनों 1,020पन्नों की चार्जशीट भी दायर कर दी गयी है।
वैसे सबा परवीन को अभी भी यह ग़म साता रह है कि आखिर उसने क्यों अपनी छोटी बहन फरहीन को उस दिन पकौड़ा लाने के लिए भिक्खु चौक भेजा। उसे क्या पता था कि पांचवी कक्षा में पढ़ रही दस साल की फरहीन के लिए वहां भिक्खु चौक पर मौत दबे पांव खड़ी है ? (29 सितम्बर 2008)
सूबा महाराष्ट्र के मालेगांव में रमज़ान के दिनों में हुए उस बम विस्फोट ने शेख लियाकत वहीउद्दीन के समूचे परिवार को गोया बिखेर दिया है।  फरहीन के पिता लियाकत का घर भिक्खु चौक से महज 100 फीट पर दूरी पर है। तीन बेटियों और दो बेटों के पिता शेख लियाकत आजभी उस दिन को याद करके सिहर उठते हैं। वाडिया अस्पताल में उन्होंने अपनी बड़ी नाज़ से पाली फरहीन के अचेत शरीर को देखा था, तो दोनों बेहोश हो गए थे।
अकेली फरहीन ही नहीं उस दिन विस्फोटकों से लदी उस मोटरसाइकिल ने तीन अन्य लोगों को लील लिया था। 'सिमी' के पुराने दफ्तर के पास घण्टों खड़ी इस मोटरसाइकिल के बारे में इलाके के लोगों ने पुलिस को सूचना भी दी थी, लेकिन पुलिसवाले तभी पहुंचे जब विस्फोटकों ने वहां मौत का खेल खेला था।
मालेगांव में ईद के पहले हुए इन बम विस्फोटों ने दो साल पहले के उन बम विस्फोटों की याद ताज़ा की थी जब शब ए बारात के दिन - शहर के मस्जिदों एवं अन्य मुस्लिम बहुल इलाके में जब वहां लोग भारी संख्या में एकत्रित होते हैं - बम विस्फोट हुए थे, जिसमें 40 अल्पसंख्यक मारे गए थे। इस बम विस्फोट में हिन्दु आतंकवादी समूहों की सहभागिता के प्रमाणों को देखने के बावजूद, जहां एक ऐसी लाश भी बरामद हुई थी जिसने एक नकली दाढ़ी लगायी थी, पुलिस ने एकतरफा गिरफ्तारियां की थीं। आज भी इनमें से कई लोग जेल में बन्द हैं। दो साल पहले सीबीआई जांच की मांग भी मान ली गयी थी, लेकिन वह जांच भी अंधा गली में पहुंच गयी है।
हर बम विस्फोट के बाद समुदाय विशेष को ही निशाने पर रखने के रवैये के खिलाफ मालेगांव के मुसलमानों ने रोष प्रदर्शन किया था। इलाके के मंत्री बाबा सिद्दीकी से बात करते हुए समुदाय के नेताओं ने कहा था 'आप मन्दिरों में बम धमाकों के लिए सिमी को जिम्मेदार मानते हैं, आप बाजार में हुए बम धमाकों के लिए सिमी को जिम्मेदार मानते हैं, आप मस्जिदों में हुए बम धामाकों के लिए सिमी को जिम्मेदार मानते हैं। लेकिन यह हमला तो सिमी के बन्द पड़े दतर के बाहर हुआ है। अब आप किसे दोष देंगे।'( मेल टुड,3 अक्तूबर 2008)
यह बात विदित है कि अल्पसंख्यकों की अच्छी खासी आबादी वाले मालेगांव के बम विस्फोट की ही तरह गुजरात के सांबरकांठा जिले मोडासा के अल्पसंख्यक बहुल इलाके में उसी वक्त उसी तरह से बम विस्फोट हुआ था। मोडासा में रात को 9.26 मिनट पर हुए बम विस्फोट में अयूब नामूभाई गोरी का 15 साल को इकलौता बेटा मारा गया था तो चन्द मिनटों बाद मालेगांव में बम विस्फोट हुआ था। ईद के पहले भीड़भाड़वाले इलाके में मोटरसाइकिलों पर रखे गए इन विस्फोटकों के जरिए अधिक से अधिक लोगों को मारने की योजना थी क्योंकि उनका समय ऐसे ही तय किया गया था जब लोग रमज़ान का उपवास खतम करके बाहर निकले हों।
वे सभी जो मुल्क में अंजाम दिए जानेवाले बम विस्फोटों पर नज़र रखे हुए हैं आप को बता सकते हैं कि जहां तक बजरंग दल जैसे अतिवादी हिन्दू संगठन का ताल्लुक है - जिससे सम्बध्द लोग देश के अलग-अलग भागों में अंजाम दिए गए बम विस्फोटों में पकड़े गए हैं या दुर्घटना में मारे गए हैं - उसे अपनी करतूतों को अंजाम देने के लिए मोटरसाइकिल जैसा दुपहिया वाहन मुफीद जान पड़ता है। अप्रैल 2006 में महाराष्ट्र के नांदेड में लक्ष्मण राजकोण्डवार नामक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के घर जो बम विस्फोट हुआ था, जिसमें संघ-बजरंग दल का कार्यकर्ता हिमांशु पानसे और राजकोण्डवार का बेटा राजीव मारे गए थे, उसके बाकी अभियुक्तों ने अपने नार्कोटेस्ट में पुलिस को बाकायदा बताया था कि इसके पहले महाराष्ट्र के परभणी (2003), जालना (2004), पूर्णा जैसे स्थानों में जो बम विस्फोट किए गए थे, उसमें उनके ही लोगों का हाथ था। इन 'रहस्यमय बम धामाकों में' मोटरसाइकिल पर सवार आतंकवादियों ने नमाज के लिए एकत्रित मुस्लिम समुदाय पर बम फेंके थे। नांदेड बम धामाकों में मारे गए हिमांशु और राजीव के घर पर जब पुलिस ने छापा मारा था तो उन्हें न केवल नकली दाढ़ी मिली थी बल्कि ऐसे कपड़े भी मिले थे, जो आम तौर पर मुस्लिम समुदाय द्वारा पहने जाते हैं। इलाके में मस्जिदों के नक्शे भी वहां से बरामद हुए थे।
इस बात को मद्देनज़र रखते हुए कि पुलिस एवम मीडिया के संचालन में साम्प्रदायिक सहजबोधा बहुत हावी रहता है, इस बात का आकलन करना बहुत मुश्किल है कि आगे क्या होगा ? मालेगांव और मोडासा के बम धामाकों को अंजाम देनेवाले हिन्दू आतंकवादी भले पकड़े गए हों, लेकिन चाहे नांदेड बम विस्फोट हों या अगस्त के आखरी सप्ताह में सामने आया कानपुर बम धामाका हो - जिसमें बजरंग दल - संघ के दो कार्यकर्ता राजीव मिश्रा और भूपेन्द्र सिंह मारे गए थे, ऐसे कई मामलों में पुलिस एवम जांच एजेन्सियों की लिपापोती जगजाहिर है। कानपुर बम धामाकों में राजीव मिश्रा एवम भूपेन्द्र सिंह के जिन दो सहयोगियों का नार्को टेस्ट कराया गया था, जिसमें उन्होंने कानपुर आई आई टी के एक प्रोफेसर एवम विश्व हिन्दू परिषद के एक स्थानीय नेता का नाम लिया था। उन्होंने पुलिस को यहभी बताया था कि फिरोजाबाद जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में बम धमाकों को अंजाम देने की जो साजिश इन आतंकवादियों ने रची थी, उसके असली मास्टरमाइंड वहीं थे। यह जुदा बात है कि पुलिस दल इनसे सामान्य पूछताछ करने भी नहीं गया।
अगर हम देश भर में 2006 के बाद हुए बम विस्फोटों पर नज़र डालें तो यह बात साफ दिखाई देती है कि कमसे कम पांच ऐसे बम धमाके हैं जिनमें अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया, उनके धाार्मिक स्थानों को नुकसान हुआ और आज भी उन्हें सुलझाया नहीं जा सका है। पिछले दिनों 'मेल टुडे' में प्रकाशित अमन शर्मा की रिपोर्ट ने इसका खुलासा किया था (3 अक्तूबर 2008) दिल्ली का जामा मस्जिद बम विस्फोट (14 घायल, अप्रैल 2006)जहां निम्न तीव्रता वाले बम पालिथिन के पैकटों में रखे थे। यह मामला आज भी लम्बित है। मालेगांव (40 मौतें, 8सितम्बर 2006) जिसमें शब-ए-बारात के दिन मस्जिदों के बाहर बम रखे गए थे - जिनमें आरडीएक्स एवम अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया गया था, यह मामला आजभी अनसुलझा है। समझौता एक्स्प्रेस में बम विस्फोट(66 मौत, 18 मई 2007) जिसमें छह बमों का प्रयोग हुआ था, इसमें भी कोई प्रगति नहीं हुई है और न ही किसी संगठन को दोषी बताया गया है। मक्का मस्जिद बम विस्फोट (11 मौतें, 18 मई 2007) जिसमें मक्का मस्जिद के अन्दर दो बक्सों में बम रखे गए थे, ये मामले भी फिलवक्त सीबीआई के पास पड़े हैं। अजमेर शरीफ बम धमाकों     (3 मौतें, 11 अक्तूबर 2007) की जांच भी अभी किसी नतीजे तक नहीं पहुंची है, इसमें दो टिफिन बक्सों में अमोनियम नाइट्रेट का प्रयोग किया गया था और मोबाइल फोन से बम धामाके किए गए थे।

बजरंग दल के आतंकवादियों को पुलिस की मिली भगत से आजादी मिली

कानपुर के राजीव नगर थाना क्षेत्र में २४ अगस्त २००८ को बजरंग दल कार्यालय में हुवे बम विस्फोट में पुलिस ने आखिर अपनी क्लोसेर रिपोर्ट डाल दी और  दिखाया गया की केस चलाने योग्य साक्ष्य नहीं था | आप केस की तफ्तीश को समझ सकते है की कितनी मुस्तैदी से हुई होगी................. आइये पूरे प्रकरण पर एक नज़र डालते है....|
यह घटना है २४ अगेस्ट २००८ की है जब देश के अलग अलग हिस्से में बम फोडे जा रहे थे देश के आम जनता मर रही थी और नेता परेता घडियाली आंसू बहा रहे थे ठीक उसी वक्त कानपूर के कल्यानपुर थाना क्षेत्र के राजीव नगर इलाके में बजरंग दल कार्यालय में बम बनाते हुवे फट जाने से बजरंग दल के दो खूखार आतंकवादी सदस्य राजीव मिश्र और भूपेंद्र सिंह मारे गए पड़ताल चालू हुई नतीजा एकदम चौकाने वाला था मृतक के घरो की तलाशी और कार्यालय की तलाशी ली गए  जहा विस्फोटक पदार्थो का जखीरा बरामद हुवा |
फारेंसिक जाँच में यह तथ्य साफ़ हुवा की देश में होने वाले सारे बम विस्फोटो में इस्तिमाल होने वाले पदार्थो से ही यह बम बन रहा था साथ ही यह भी साफ़ हो गया की सुनील जोशी से बैंको द्वारा काफी आर्थिक सहायता भी मिली थी इन आतंकवादियों को फोने के रिकार्ड खागाल्नी पर पता चला की इन लोगो के सम्बन्ध सुनील जोशी,साध्वी प्रज्ञा ठाकुर,दयानंद पाण्डेय,लोकेश शर्मा,पूर्व मेजर प्रभाकर कुलकर्णी से लगातार सम्बन्ध रहे है और अनेको आतंकी घटनाओ का षड्यंत्र रचा गया था और अनेको आतंकी घटने की गयी थी |
इसके बाद मृतक राजीव मिश्र के घर के पास छुपाकर रक्खा एक विस्फोटको का जखीरा बरामद हुवा और यह जखीरा इतना था की किसी शहर को उड़ने के लिए काफी था इन सबके बाद भी पुलिस ने कार्यवाही नहीं की और केस को ठंडे बस्ती में दाल दिया गया फिर सी0बी0आई० द्वारा कार्यवाही को आगे बढाया गया और कार्यवाही भेदभाव पूर्ण रही भेदभाव का ही नतीजा है की इसके केस नम्बर 816 / २००८ U \ S 286 / 304 A IP CAND 3 /4 /5 Explosive Act.के तहत चलने वाली कारवाही अब ठंडे बस्ते में चली गयी है |
यही यह कांड किसी मुस्लिम संगठन के कार्यालय में हुवा होता तो देश के ये ठेकेदार इस संगठन को प्रतिबंधित करते और आतंकी संगठन घोषित करते परन्तु यहाँ बात बजरंग दल की थी सभी साँस खीच कर बैठ गए है और किसी में कुछ करने की क्षमता नहीं है |
हम देश प्रेम करने वाले असली भारतीयों से इल्तिजा करते है की महामहिम राष्ट्रपति को पत्र लिख कर इसकी जाँच NIA से करवाने का आग्रह करे |
    

Saturday 5 November 2011

इस्लाम में मांसाहार

इस्लाम में मांसाहार, और इसके लिए जानवरों की हत्या का प्रावधान हिंसात्मक तथा निर्दयतापूर्ण है; इससे मुसलमानों में हिंसक प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। ईद-उल-अज़हा के अवसर पर पशु-बलि (क़ुरबानी) की सामूहिक रीति में यह निर्दयता व्यापक रूप धारण कर लेती है। क्या यह वही इस्लाम है जिसका ईश्वर ‘अति दयावान’ है? यह कैसा दयाभाव, कैसी दयाशीलता है?’’

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क़ुरबानी-हिंसा, हत्या, निर्दयता? इस विषय के कई पहलू हैं। उन सब पर दृष्टि डालने से उपरोक्त आपत्तियों के निवारण, और उलझनों के सुलझने में आसानी होगी।


● हिंसा, जीव-हत्या जीव-हत्या, अपने अनेक रूपों में एक ऐसी हक़ीक़त है जिससे मानवता का इतिहास कभी भी ख़ाली नहीं रहा। व्यर्थ व अनुचित व अन्यायपूर्ण जीव-हत्या से आमतौर पर तो लोग हमेशा बचते रहे हैं क्योंकि यह मूल-मानव प्रवृत्ति तथा स्वाभाविक दयाभाव के प्रतिवू$ल है; लेकिन जीवधारियों की हत्या भी इतिहास के हर चरण में होती रही है क्योंकि बहुआयामी जीवन में यह मानवजाति की आवश्यकता रही है। इसके कारक सकारात्मक भी रहे हैं, जैसे आहार, औषधि तथा उपभोग के सामानों की तैयारी व उपलब्धि; और नकारात्मक भी रहे हैं, जैसे हानियों और बीमारियों से बचाव। पशुओं, पक्षियों, मछलियों आदि की हत्या आहार के लिए भी की जाती रही है, औषधि-निर्माण के लिए भी, और उनके शरीर के लगभग सारे अंगों एवं तत्वों से इन्सानों के उपभोग व इस्तेमाल की वस्तुएं बनाने के लिए भी। बहुत सारे पशुओं, कीड़ों-मकोड़ों, मच्छरों, सांप-बिच्छू आदि की हत्या, तथा शरीर व स्वास्थ्स के लिए हानिकारक जीवाणुओं (बैक्टीरिया, जम्र्स, वायरस आदि) की हत्या, उनकी हानियों से बचने-बचाने के लिए की जानी, सदा से सर्वमान्य, सर्वप्रचलित रही है। वर्तमान युग में ज्ञान-विज्ञान की प्रगति के व्यापक व सार्वभौमिक वातावरण में, औषधि-विज्ञान में शोधकार्य के लिए तथा शल्य-क्रिया-शोध व प्रशिक्षण (Surgical Research and Training) के लिए अनेक पशुओं, पक्षियों, कीड़ों-मकोड़ों, कीटाणुओं, जीवाणुओं आदि की हत्या की जाती है। ठीक यही स्थिति वनस्पतियों की ‘हत्या’ की भी है। जानदार पौधों को काटकर अनाज, ग़ल्ला, तरकारी, फल, पू$ल आदि वस्तुएं आहार व औषधियां और अनेक उपभोग-वस्तुएं तैयार करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं; पेड़ों को काटकर (अर्थात् उनकी ‘हत्या’ करके, क्योंकि उनमें भी जान होती है) उनकी लकड़ी, पत्तों, रेशों (Fibres) जड़ों आदि से बेशुमार कारआमद चीज़ें बनाई जाती हैं। इन सारी ‘हत्याओं’ में से कोई भी हत्या ‘हिंसा’, ‘निर्दयता’, ‘क्रूरता’ की श्रेणी में आज तक शामिल नहीं की गई, उसे दयाभाव के विरुद्ध व प्रतिकूल नहीं माना गया। कुछ नगण्य अपवादों (Negligible exceptions) को छोड़कर (और अपवाद को मानव-समाज में हमेशा पाए जाते रहे हैं) सामान्य रूप से व्यक्ति, समाज, समुदाय या धार्मिक सम्प्रदाय, जाति, क़ौम, सभ्यता, संस्कृति, धर्म, ईशवादिता आदि किसी भी स्तर पर जीव-हत्या के उपरोक्त रूपों, रीतियों एवं प्रचलनों का खण्डन व विरोध नहीं किया गया। बड़ी-बड़ी धार्मिक विचारधाराओं और जातियों में इस ‘जीव-हत्या’ के हवाले से ईश्वर के ‘दयावान’ व ‘दयाशील’ होने पर प्रश्न नहीं उठाए गए, आक्षेप नहीं किए गए, आपत्ति नहीं जताई गई।

● भारतीय परम्परा में जीव-हत्या, मांसाहार और पशु-बलि विषय-वस्तु पर इस्लामी दृष्टिकोण और मुस्लिम पक्ष पर चर्चा करने से पहले उचित महसूस होता है कि स्वयं भारतीय परम्परा पर (आलोचनात्मक, नकारात्मक व दुर्भावनात्मक दृष्टि नहीं, बल्कि) एक  तथ्यात्मक (Objective) नज़र भी डाल ली जाए। मनुस्मृति को ‘भारतीय धर्मशास्त्रों में सर्वोपरि शास्त्र’ होने का श्रेय प्राप्त है। इसके मात्र एक (पांचवें) अध्याय में ही 21 श्लोकों में मांसाहार (अर्थात् जीव-हत्या) से संबंधित शिक्षाएं, नियम और आदेश उल्लिखित हैं। रणधीर प्रकाशन हरिद्वार से प्रकाशित, पण्डित ज्वाला प्रसाद चतुर्वेदी द्वारा अनूदित प्रति (छटा मुद्रण, 2002) में 5:17-18; 5:21-22; 5:23; 5:27-28; 5:29-30; 5:31-32; 5:35-36; 5:37-38; 5:39; 5:41-42; 5:43-44; 5:56 में ये बातें देखी जा सकती हैं। इनका सार निम्नलिखित है:

1. ब्रह्मा ने मांस को (मानव) प्राण के लिए अन्न कल्पित किया है। अन्न, फल, पशु, पक्षी आदि प्राण के ही भोजन हैं। ब्रह्मा ने ही खाद्य और खादक दोनों का निर्माण किया है। स्वयं ब्रह्मा ने यज्ञों की समृद्धि के लिए पशु बनाए हैं इसलिए यज्ञ में पशुओं का वध अहिंसा है
2. �भक्ष्य (मांसाहार-योग्य) कुछ पशुओं के नाम बताए गए हैं। सनातन विधि को मानते हुए संस्कृत किया हुआ पशु-मांस ही खाना चाहिए।
3. वेद-विदित और इस चराचर जगत में नियत हिंसा को अहिंसा ही समझना चाहिए क्योंकि धर्म वेद से हो निकला है।
4. �अगस्त्य मुनि के अनुपालन में ब्राह्मण यज्ञ के निमित्त यज्ञ, या मृत्यों के रक्षार्थ प्रशस्त, पशु-पक्षियों का वध किया जा सकता है। मनु जी के कथनानुसार मधुपर्व, ज्योतिष्टोमादि यज्ञ, पृतकर्म और देवकर्म में पशु हिंसा करना चाहिएश्राद्ध और मधुपर्व में विधि नियुक्त होने पर मांस न खाने वाला मनुष्य मरने के इक्कीस जन्म तक पशु होता है
5. देवतादि के उद्देश्य बिना वृथा पशुओं को मारने वाला मनुष्य उन पशुओं के बालों की संख्या के बराबर जन्म-जन्म मारा जाता है।इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि :
(i) आहार के लिए मांस खाया जा सकता है।
(ii) यज्ञ के लिए, श्राद्ध के लिए, और देवकर्म में, पशु हिंसा करनी चाहिए, यह वास्तव में अहिंसा है।
(iii) पशुओं को व्यर्थ मारना पाप है।
(iv) पशु-पक्षी और वनस्पतियां मनुष्य के आहार के लिए ही निर्मित की गई हैं। यही कारण है कि (बौद्ध-कालीन अहिंसा-आन्दोलन के समय, और उसके पहले) वैदिक सनातन धर्म में मांसाहार और यज्ञों के लिए पशु-वध का प्रचलन था। धर्म इसका विरोधी नहीं, बल्कि समर्थक व आह्वाहक था।

● इस्लाम का पक्ष मनुस्मृति, वेद, सनातन धर्म और वैदिक काल के उपर्लिखित हवाले, मांसाहार, जीव-हत्या और क़ुरबानी (पशु-बलि) के इस्लामी पक्ष के पुष्टीकरण में दलील के तौर पर प्रस्तुत नहीं किए गए हैं। इस्लाम एक प्राकृतिक व शाश्वत धर्म के रूप में, अपने आप में संपूर्ण, तर्कपूर्ण, विश्वसनीय (Authentic) है। उपरोक्त बातें विषय-वस्तु को समझने में उन लोगों की आसानी के लिए लिखी गई हैं जो मालूम नहीं क्यों हर स्तर पर, हर क़िस्म के मांसाहार व जीव-हत्या तथा हिंसा को तो अनदेखा (Neglect) कर देते हैं, बल्कि उनमें से अधिकतर लोग तो स्वयं (बहुत शौक़ से) मांस-मछली, अंडे आदि खाते भी हैं, लेकिन इस्लाम और मुसलमानों के हवाले से इन्हीं बातों पर क्षुब्ध, चिन्तित और आक्रोषित हो जाते हैं।इस्लाम का दृष्टिकोण इस विषय में संक्षिप्त रूप से यूं है :
● भूमण्डल, वायुमण्डल, सौर्यमण्डल की हर वस्तु (जीव-अजीव, चर-अचर) मनुष्यों की सेवा/आहार/उपभोग/स्वास्थ्य/जीवन के लिए निर्मित की गई है।
● किसी भी जीवधारी की व्यर्थ व अनुद्देश्य हत्या अबाध्य (Prohibitted) है, और सोद्देश्य (Purposeful) हत्या बाध्य (Permissible)।

● मुस्लिम पक्ष क़ुरबानी, ईशमार्ग में यथा-अवसर आवश्यकता पड़ने पर अपना सब कुछ क़ुरबान (Sacrifice) कर देने की भावना का व्यावहारिक प्रतीक (Symbol) है। इसकी शुरुआत लगभग 4000 वर्ष पूर्व हुई थी जब ईशदूत पैग़म्बर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) से अल्लाह ने उनकी ईशपरायणता की परीक्षा लेने के लिए आदेश दिया था कि अपनी प्रियतम चीज़—बुढ़ापे की सन्तान, पुत्र इस्माईल—की बलि दो। इब्राहीम (अलैहि॰) बेटे की गर्दन पर छुरी पे$रने को थे कि ईशवाणी हुई कि, बस तुम परीक्षा में उत्तीर्ण हो गए। बेटे की बलि अभीष्ट न थी, अतः (बेटे की बलि के प्रतिदान-स्वरूप) एक दुम्बे (भेड़) की बलि दे दो, यही काफ़ी है (सारांश क़ुरआन, 37:101-107)। तब से आज तक उसी तिथि (10 ज़िलहिज्जा) को, पशु-बलि (कु़रबानी) देकर मुस्लिम समाज के (क़ुरबानी के लिए समर्थ) सारे व्यक्ति, प्रतीकात्मक रूप से ईश्वर से अपने संबंध, वफ़ादारी और संकल्प को हर वर्ष ताज़ा करते हैं कि ‘‘हे ईश्वर! तेरा आदेश होगा, आवश्यकता होगी, तक़ाज़ा होगा तो हम तेरे लिए अपनी हर चीज़ क़ुरबान करने के लिए तैयार व तत्पर हैं।’’ और यही ईशपरायणता का चरम-बिन्दु है।

● मुसलमानों की ‘हिंसक प्रवृत्ति’ (?) जहां तक मांसाहार और पशु-हत्या की वजह से मुसलमानों में हिंसक प्रवृत्ति उत्पन्न होने की बात है तो पिछले आठ नौ दशकों से अब तक का इतिहास इस बात का स्पष्ट व अकाट्य खण्डन करता है। विश्व में मुस्लिम जनसंख्या लगभग 20-25 प्रतिशत, और भारत में (पिछले 60-62 वर्षों के दौरान) लगभग 15 प्रतिशत रही है। इस समयकाल में दो महायुद्धों और अनेक छोटे-छोटे युद्धों में हुई हिंसा में मुसलमानों का शेयर 0 प्रतिशत रहा है। तीन अन्य बड़े युद्धों में अधिक से अधिक 2-5 प्रतिशत; और भारत के हज़ारों दंगों में लगभग 2 प्रतिशत, कई नरसंहारों (Mass Kilkings) में 0 प्रतिशत। हमारे देश में पूरब से दक्षिण तक, तथा अति दक्षिण में हिन्द महासागर में स्थित एक छोटे से देश में, लंबे समय से कुछ सुसंगठित, सशस्त्र गुटों और सुनियोजित भूमिगत संगठनों द्वारा चलाई जा रही हिंसा की चक्की में लाखों निर्दोष लोग और आबादियों की आबादियां पिस्ती, मरती रही हैं। इनमें कोई भी मुस्लिम गुट या संगठन नहीं है। राष्ट्र पिता और दो प्रधानमंत्रियों के हत्यारे, मुसलमान नहीं थे।

● हिंसा में दरिन्दों, राक्षसों से भी आगे...कौन? हिंसक प्रवृत्ति में जो लोग दरिन्दों, शैतानों और राक्षसों को भी बहुत पीछे छोड़ गए, हज़ारों इन्सानों को (यहां तक कि मासूम बच्चों को भी) ज़िन्दा, (लकड़ी की तरह) जलाकर उनके शरीर कोयले में बदल दिए और इस पर ख़ूब आनन्दित व मग्न विभोर हुए; गर्भवती स्त्रियों के पेट चीर कर बच्चों को निकाला, स्त्री को जलाया, और बच्चे को भाले में गोध कर ऊपर टांगा और ताण्डव नृत्य किया वे मुसलमान नहीं थे (मुसलमान, मांसाहारी होने के बावजूद इन्सानों का मांस नहीं ‘खाते’)



अगर औरतों के साथ ऐसे अत्याचार व अपमान को भी हिंसा के दायरे में लाया जाए जिसकी मिसाल मानवजाति के पूरे विश्व इतिहास में नहीं मिलती तो यह बड़ी अद्भुत, विचित्र अहिंसा है कि (पशु-पक्षियों के प्रति ग़म का तो प्रचार-प्रसार किया जाए, मगरमछ के टस्वे बहाए जाएं, और दूसरी तरफ़) इन्सानों के घरों से औरतों को खींचकर निकाला जाए, बरसरे आम उनसे बलात् कर्म किया जाए, वस्त्रहीन करके सड़कों पर उनका नग्न परेड कराया जाए, घसीटा जाए, उनके परिजनों और जनता के सामने उनका शील लूटा जाए। नंगे परेड की फिल्म बनाई जाए, और गर्व किया जाए! ऐसी मिसालें ‘हिंसक प्रवृत्ति’ वाले मुसलमानों ने कभी भी क़ायम नहीं की हैं। उनकी इन्सानियत व शराफ़त और उनका विवेक और धर्म उन्हें कभी ऐसा करने ही नहीं देगा। ऐसी ‘गर्वपूर्ण’ मिसालें तो उन पर हिंसा का आरोप लगाने वाले कुछ विशेष ‘अहिंसावादियों’ और ‘देशभक्तों’ ने ही हमारे देश की धरती पर बारम्बार क़ायम की हैं।

अनिवार्य है मांसाहार - डाक्टर एम. एस. स्वामीनाथन

 सन १९२५ में जन्मे डाक्टर एम. एस. स्वामीनाथन किसी परिचि के मोहताज नहीं है वह भारत के मशहूर कृषि वैज्ञानिक हरित क्रांति  के जनक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त डाक्टर एम. एस. स्वामीनाथन के तमाम बयानों के बाद यह जग ज़ाहिर है की मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए मांसाहार अति आवश्यक है |
नई दिल्ली के अंग्रेज़ी अख़बार स्टेट्समैन के अंक 4 सितम्बर 1967 में स्वामीनाथन का एक विशेष इंटरव्यू छपा था जो उन्होंने यूएनआई को दिया था। इसमें उन्होंने यह चेतावनी दी थी कि भारत के लोग अपनी खान-पान की आदतों की वजह से प्रोटीन के फ़ाक़े  के शिकार हैं। इस बयान में कहा गया था कि -‘‘अगले दो दषकों में भारत को बहुत बड़े पैमाने पर ज़हनी बौनेपन  के ख़तरे का सामना करना होगा, अगर प्रोटीन के फ़ाक़े का मसला हल नहीं हुआ।‘‘- ये अल्फ़ाज़ डाक्टर एम.एम.स्वामीनाथन ने यूएनआई को एक इंटरव्यू देते हुए कहे थे, जो इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के डायरेक्टर रह चुके हैं। उन्होंने कहा था कि संतुलित आहार का विचार हालांकि नया नहीं है लेकिन दिमाग़ के विकास के सिलसिले में उसकी अहमियत एक नई बायलोजिकल खोज है। अब यह बात निश्चित है कि 4 साल की उम्र में इंसानी दिमाग़ 80 प्रतिशत से लेकन 90 प्रतिशत तक अपने पूरे वज़न को पहुंच जाता है और अगर उस नाज़ुक मुद्दत में बच्चे को मुनासिब प्रोटीन न मिल रही हो तो दिमाग़ अच्छी तरह विकसित नहीं हो सकता। डाक्टर स्वामीनाथन ने कहा कि भविष्य में विभिन्न जातीय वर्गों के ज़हनी फ़र्क़ का तुलनात्मक अध्ययन इस दृष्टिकोण से भी करना चाहिये। अगर कुपोषण और प्रोटीन के फ़ाक़े के मसले पर जल्दी तवज्जो न दी गई तो अगले दो दशकों में हमें यह मन्ज़र देखना पड़ेगा कि एक तरफ़ सभ्य क़ौमों की बौद्धिक ताक़त  में तेज़ी से इज़ाफ़ा हो रहा है और दूसरी तरफ़ हमारे मुल्क में ज़हनी बौनापन बढ़ रहा है। नौजवान नस्ल को प्राटीन के फ़ाक़े से निकालने में अगर हमने जल्दी न दिखाई तो नतीजा यह होगा कि हर रोज़ हमारे देष में 10,00,000 दस लाख बौने वजूद में आयेंगे। इसका बहुत कुछ असर हमारी नस्लों पर तो मौजूदा वर्षों में ही पड़ चुका होगा।पूछा गया कि इस मसले का हल क्या है ?डाक्टर स्वामीनाथन ने जवाब दिया कि सरकार को चाहिये कि वह अपने कार्यक्रमों के ज़रिये जनता में प्रोटीन के संबंध में चेतना जगाये और इस सिलसिले में लोगों को जागरूक बनाये।
ग़ैर-मांसीय आहार में प्रोटीन हासिल करने का सबसे बड़ा ज़रिया दालें हैं और जानवरों से हासिल होने वाले आहार मस्लन दूध में ज़्यादा आला क़िस्म का प्रोटीन पाया जाता है। प्रोटीन की ज़रूरत का अन्दाज़ा मात्रा और गुणवत्ता दोनों ऐतबार से करना चाहिए। औसत विकास के लिए प्रोटीन के समूह में 80 प्रकार के अमिनो एसिड होना ज़रूरी हैं। उन्होंने कहा कि ग़ैर-मांसीय आहार में कुछ प्रकार के एसिड मस्लन लाइसिन (lysine) और मैथोनाइन का मौजूद होना आम है जबकि ज्वार में लाइसिन की ज़्यादती उन इलाक़ों में बीमारी का कारण रही है जहां का मुख्य आहार यही अनाज है।
हालांकि जानवरों से मिलने वाले आहार का बड़े पैमाने पर उपलब्ध होना अच्छा है लेकिन उनकी प्राप्ति बड़ी महंगी है क्योंकि वनस्पति आहार को इस आहार में बदलने के लिए बहुत ज़्यादा एनर्जी बर्बाद करनी पड़ती है। एग्रीकल्चरल इंस्टीच्यूट में दुनिया भर के सभी हिस्सों से गेहूं और ज्वार की क़िस्में मंगवाकर जमा की गईं और इस ऐतबार से उनका विश्लेषण किया गया कि किस क़िस्म में कितने अमिनो एसिड पाए जाते हैं ? रिसर्च से इनमें दिलचस्प फ़र्क़ मालूम हुआ। इनमें प्रोटीन की मात्रा 7 प्रतिशत से लेकर 16 प्रतिशत तक मौजूद थी। यह भी पता चला कि नाइट्रोजन की खाद इस्तेमाल करके आधे के क़रीब तक उनका प्रोटीन बढ़ाया जा सकता है। किसानों के अन्दर प्रोटीन के संबंध में चेतना पैदा करने के लिए डाक्टर स्वामीनाथन ने यह सुझाव दिया था कि गेहूं की ख़रीदारी के लिए क़ीमतों को इस बुनियाद पर तय किया जाए कि क़िस्म में कितना प्रोटीन पाया जाता है। उन्होंने बताया कि एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट ग़ल्ले के कुछ बाज़ारों में प्रोटीन जांच की एक सेवा शुरू करेगा और जब इत्मीनान बक्श तथ्य जमा हो जाएंगे तब यह पैमाना क़ीमत तय करने की नीति में शामिल किया जा सकेगा। ग़ल्ले की मात्रा को बढ़ाने और उसकी क़िस्म को बेहतर बनाने के दोतरफ़ा काम को नस्ली तौर इस तरह जोड़ा जा सकता है कि ज़्यादा फ़सल देने वाले और ज़्यादा बेहतर क़िस्म के अनाज, बाजरे और दालों की खेती की जाए। बौद्धिक बौनेपन का जो ख़तरा हमारे सामने खड़ा है, उसका मुक़ाबला करने का यह सबसे कम ख़र्च और फ़ौरन क़ाबिले-इ-अमल तरीक़ा है। (स्टेट्समैन, दिल्ली, 4 सितम्बर 1967)
डाक्टर स्वामीनाथन के उपरोक्त बयान के प्रकाशन के बाद विभिन्न अख़बारों और पत्रिकाओं में इसकी समीक्षा की गई। नई दिल्ली के अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस (7 सितम्बर 1967) ने अपने संपादकीय में जो कुछ लिखा था, उसका अनुवाद यहां दिया जा रहा है-‘इंडस्ट्री की तरह कृषि में भी हमेशा यह मुमकिन नहीं होता कि एक क्रियान्वित नीति के नतीजों का शुरू ही में अन्दाज़ा किया जा सके। इस तरह जब केन्द्र की सरकार ने अनाज की क़ीमत के सिलसिले में समर्थन नीति अख्तियार करने का फ़ैसला किया तो मुश्किल ही से यह सन्देह किया जा सकता था कि ग़ल्ले की बहुतायत के बावजूद प्रोटीन के कमी का मसला सामने आ जाएगा-जैसा कि इंडियन एग्रीकल्चरल इंस्टीच्यूट के डायरेक्टर डाक्टर स्वामीनाथन ने निशानदेही की है। ग़ल्लों पर ज़्यादा ऐतबार की ऐसी स्थिति पैदा होगी जिससे अच्छे खाते-पीते लोग भी कुपोषण में मुब्तिला हो जाएंगे। जो लोग प्रोटीन के कमी से पीड़ित होंगे , शारीरिक कष्टों के अलावा उनके दिमाग़ पर भी बुरे प्रभाव पड़ेंगे। डाक्टर स्वामीनाथन के बयान के मुताबिक़ यह होगा कि बच्चों की बौद्धिक क्षमता पूरी तरह विकसित न हो पाएगी। क्योंकि इनसानी दिमाग़ अपने वज़न का 80 प्रतिशत से लेकर 90 प्रतिशत तक 4 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते पूरा कर लेता है, इसलिए इस कमी के नतीजे में एक बड़ा नुक्सान मौजूदा बरसों में ही हो चुका होगा। जिसका नतीजा यह होगा कि हमारे देश में बौद्धिक बौनापन वजूद में आ जाएगा। इस चीज़ को देखते हुए मौजूदा कृषि नीति पर पुनर्विचार ज़रूरी है। मगर वे पाबंदियां भी बहुत ज़्यादा हैं जिनमें सरकार को अमल करना होगा। सबसे पहले यह कि कृषि पैदावार को जानवरों से मिलने वाले प्रोटीन में बदलना बेहद महंगा है। सरकार ने हालांकि संतुलित आहार और मांस, अंडे और मछली के ज़्यादा मुहिम चलाई है लेकिन उसके बावजूद जनता आहार संबंधी अपनी आदतों को बदलने में बहुत सुस्त है।

आम तौर पर भूख का मसला, जानवरों को पालने की मुहिम चलाने में ख़र्च का मसला और लोगों की आहार संबंधी आदतों को बदलने की कठिनाई वे कारण हैं जिनकी वजह से सरकार को कृषि की बुनियाद पर अपनी नीति बनानी पड़ती है, लेकिन निकट भविष्य को देखते हुए ऐसा मालूम होता है कि सरकार स्वामीनाथन की चेतावनी को नज़रअन्दाज़ न कर सकेगी। ऐसा मालूम होता है कि दूरगामी परिणाम के ऐतबार से कृषि नीति की कठिनाईयों को अर्थशास्त्र के बजाय विज्ञान हल करेगा। अनुभव से पता चला है कि अनाज ख़ास तौर पर गेहूं को प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाती है। इसके बावजूद यह बात संदिग्ध है कि सिर्फ़ ग़ल्ले की पैदावार के तरीक़े में तब्दीली इस समस्या का समाधान साबित हो पाएगी। जब तक प्रोटीन की उत्तम क़िस्में रखने वाले गेहूं न खोज लिए जाएं। जब तक ऐसा न हो सरकार को चाहिए कि दालों और पशुपालन को इसी तरह प्रोत्साहित करे जिस तरह वह अनाज को प्रोत्साहित करती है।‘ (इंडियन एक्सप्रेस, 7 सितम्बर 1967)
जैसा कि मालूम है कि भारत को अगले बीस बरसों में एक नया और बहुत भयानक ख़तरा पेश आने वाला है। यह ख़तरा कृषि केन्द्र के डायरेक्टर के अल्फ़ाज़ में ‘बौद्धिक बौनेपन‘ का ख़तरा है। इसका मतलब यह है कि हमारी आने वाली नस्लें जिस्मानी ऐतबार से ज़ाहिरी तौर पर तो बराबर होंगी लेकिन बौद्धिक योग्यता के ऐतबार हम दुनिया की दूसरी सभ्य जातियों से पस्त हो चुके होंगे।
यह ख़तरा जो हमारे सामने है, उसकी वजह डाक्टर स्वामीनाथन के अल्फ़ाज़ में यह है कि हमारा आहार में प्रोटीन की मा़त्रा बहुत कम होती है। यहां की आबादी एक तरह के प्रोटीन के फ़ाक़े में मुब्तिला होती जा रही है। प्रोटीन भोजन का एक तत्व है जो इनसानी जिस्म के समुचित विकास के लिए अनिवार्य है। यह प्रोटीन अपने सर्वोत्तम रूप में मांस से हासिल होता है। मांस का प्रोटीन न सिर्फ़ क्वालिटी में सर्वोत्तम होता है बल्कि वह अत्यंत भरपूर मात्रा में दुनिया में मौजूद है और सस्ता भी है।
वही हिस्ट्री ऑफ़ थॉट का अध्ययन बताता है कि विचार के ऐतबार से इनसानी इतिहास के दो दौर हैं। एक विज्ञान पूर्व युग और दूसरा विज्ञान के बाद का युग विज्ञान पूर्व युग में लोगों को चीज़ों की हक़ीक़त मालूम न थी, इसलिए महज़ अनुमान और कल्पना के तहत चीज़ों के बारे में राय क़ायम कर ली गई। इसलिए विज्ञान पूर्व युग को अंधविश्वास का युग कहा जाता है। उपरोक्त ऐतराज़ दरअस्ल उसी प्राचीन युग की यादगार है। यह ऐतराज़ दरअस्ल अंधविष्वासपूर्ण विचारों की कंडिशनिंग के तहत पैदा हुआ, जो परम्परागत रूप से अब तक चला आ रहा है।
अंधविश्वास के पुराने दौर में बहुत से ऐसे विचार लोगों में प्रचलित हो गए जो हक़ीक़त के ऐतबार से बेबुनियाद थे। विज्ञान का युग आने के बाद इन विचारों का अंत हो चुका है। मस्लन सौर मण्डल बारे में पुरानी जिओ-सेन्ट्रिक थ्योरी ख़त्म हो गई और उसकी जगह हेलिओ-सेन्ट्रिक थ्योरी आ गई। इसी तरह मॉडर्न केमिस्ट्री के आने के बाद पुरानी अलकैमी ख़त्म हो गई। इसी तरह मॉडर्न एस्ट्रोनोमी के आने के बाद पुरानी एस्ट्रोलोजी का ख़ात्मा हो गया, वग़ैरह वग़ैरह। उपरोक्त ऐतराज़ भी इसी क़िस्म का एक ऐतराज़ है और अब यक़ीनी तौर पर उसका ख़ात्मा हो जाना चाहिए।
गैलीलियो 17वीं षताब्दी का इटैलियन साइंटिस्ट था। उसने पुराने टॉलमी नज़रिये से मतभेद करते हुए यह कहा कि ज़मीन सौर मण्डल का केन्द्र नहीं है, बल्कि ज़मीन एक ग्रह है जो लगातार सूरज के गिर्द घूम रहा है। यह नज़रिया मसीही चर्च के अक़ीदे के खि़लाफ़ था। उस वक़्त चर्च को पूरे यूरोप में प्रभुत्व हासिल था। सो मसीही अदालत में गैलीलियो को बुलाया गया और सुनवाई के बाद उसे सख़्त सज़ा दी गई। बाद में उसकी सज़ा में रियायत करते हुए उसे अपने घर में नज़रबंद कर दिया गया। गैलीलियो उसी हाल में 8 साल तक रहा, यहां तक कि वह 1642 ई. में मर गया।
इस वाक़ये के तक़रीबन 400 साल बाद मसीही चर्च ने अपने अक़ीदे पर पुनर्विचार किया। उसे महसूस हुआ कि गैलीलियो का नज़रिया सही था और मसीही चर्च का अक़ीदा ग़लत था। इसके बाद मसीही चर्च ने साइंटिफ़िक कम्युनिटी से माफ़ी मांगी और अपनी ग़लती का ऐलान कर दिया। यही काम उन लोगों को करना चाहिए जो अतिवादी रूप से वेजिटेरियनिज़्म के समर्थक बने हुए हैं। यह नज़रिया अब साइंटिफ़िक रिसर्च के बाद ग़लत साबित हो चुका है। अब इन लोगों को चाहिए कि वे अपनी ग़लती स्वीकार करते हुए अपने नज़रिये को त्याग दें, वर्ना उनके बारे में कहा जाएगा कि वे विज्ञान के युग में भी अंधविष्वासी बने हुए हैं।

उत्तर प्रदेश सर्कार के भरष्टाचार

उत्तर प्रदेश सर्कार के भरष्टाचार का बोलबाला देखने को मिला शुक्रवार को जब इन्द्र भवन दफ्तर में एक IPS श्री डी  डी मिश्र ने सरकार पर गंभीर आरोप लगते हुवे कहा की समस्त खरीदारी में ऊपर बैठे हुवे अधिकारियो की दलाली फिक्स होती है 
इस्थिथि इतनी गंभीर हो गई की उस अधिकारी को धक्का लगते हुवे बहार लाना पड़ा