Friday 20 May 2011

बाटला हाउस मुठभेड़ कांड

बाटला हाउस मुठभेड़ कांड के वर्षो बीतने के बाद और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से आम लोग इस मुठभेड़ पर लगातार प्रश्न उठाते रहे हैं और अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने उनके सवालों को अधिक गंभीर बना दिया है.बहुचर्चित बाटला हाउस प्रकरण में पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं. लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच आख़िर क्यों नहीं कराई?जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र अफरोज़ आलम साहिल ने इस तथाकथित मुठभेड़ से संबंधित विभिन्न दस्तावेज़ पाने के लिए सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत लगातार विभिन्न सरकारी एवं ग़ैर सरकारी कार्यालयों के दरवाज़े खटखटाए, किंतु पोस्टमार्टम रिपोर्ट पाने में उन्हें डेढ़ वर्ष लग गए. अफरोज़ आलम ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से उन दस्तावेज़ों की मांग की थी, जिनके आधार पर जुलाई 2009 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी थी. मालूम हो कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट देते हुए उसका यह तर्क मान लिया था कि उसने गोलियां अपने बचाव में चलाई थीं.राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा भेजे गए दस्तावेज़ों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पुलिस द्वारा आयोग एवं सरकार के समक्ष दाख़िल किए गए विभिन्न काग़ज़ातों के अलावा ख़ुद आयोग की अपनी रिपोर्ट भी है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, आतिफ अमीन (24 वर्ष) की मौत तेज़ दर्द से हुई और मुहम्मद साजिद (17 वर्ष) की मौत सिर में गोली लगने के कारण हुई. जबकि इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की मृत्यु का कारण गोली से पेट में हुए घाव से ख़ून का ज़्यादा बहना बताया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, तीनों (आतिफ, साजिद एवं मोहन चंद्र शर्मा) को जो घाव लगे हैं, वे मृत्यु से पूर्व के हैं. रिपोर्ट के अनुसार, मोहम्मद आतिफ अमीन के शरीर पर 21 घाव हैं, जिनमें से 20 गोलियों के हैं. आतिफ को कुल 10 गोलियां लगीं और सारी गोलियां पीछे से मारी गईं. आठ गोलियां पीठ पर, एक दाईं बाजू पर पीछे से और एक बाईं जांघ पर नीचे से. 2×1 सेमी का एक घाव आतिफ के दाएं पैर के घुटनों पर है. यह घाव किसी धारदार चीज़ या रगड़ लगने से हुआ. इसके अलावा रिपोर्ट में आतिफ की पीठ और शरीर पर कई जगह छीलन है, जबकि जख्म नंबर 20 जो बाएं कूल्हे के पास है, से धातु का एक 3 सेमी का टुकड़ा मिला है.मोहम्मद साजिद के शरीर पर कुल 14 घाव हैं. साजिद को कुल 5 गोलियां लगीं और उनसे 12 घाव हुए. इनमें से तीन गोलियां दाहिनी पेशानी के ऊपर, एक गोली पीठ पर बाईं ओर और एक गोली दाएं कंधे पर लगी. मोहम्मद साजिद को लगने वाली तमाम गोलियां नीचे की ओर निकली हैं, जैसे एक गोली जबड़े के नीचे से (ठोड़ी और गर्दन के बीच), सिर के पिछले हिस्से से और सीने से. साजिद के शरीर से धातु के दो टुकड़े मिलने का रिपोर्ट में उल्लेख है, जिसमें से एक का साइज़ 8×1 सेमी है, जबकि दूसरा पीठ पर लगे घाव (जीएसडब्ल्यू-7) से टीशर्ट से मिला है. इस घाव के पास 5×1.5 सेमी लंबा खाल छिलने का निशान है. पीठ पर बीच में लाल रंग की 4×2 सेमी की खराश है. इसके अलावा दाहिने पैर में सामने (घुटने से नीचे) की ओर 3.5×2 सेमी का गहरा घाव है. इन दोनों घावों के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि ये घाव गोली के नहीं हैं. साजिद को लगे कुल 14 घावों में से सात को बहुत गहरा कहा गया है.इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि बाएं कंधे से 10 सेमी नीचे घाव के बाहरी हिस्से की सफाई की गई थी. शर्मा को 19 सितंबर 2008 को एल-18 में घायल होने के बाद निकटतम अस्पताल होली फैमिली में भर्ती कराया गया था. उन्हें कंधे के अलावा पेट में भी गोली लगी थी. रिपोर्ट के अनुसार, पेट में गोली लगने से ख़ून ज़्यादा बह गया और यही मौत का कारण बना. मुठभेड़ के बाद यह प्रश्न उठाया गया था कि जब शर्मा को 10 मिनट के अंदर डॉक्टरी सहायता मिल गई थी और संवेदनशील जगह पर गोली भी नहीं लगी थी, तो फिर उनकी मौत कैसे हो गई? यह भी प्रश्न उठाया गया था कि शर्मा को गोली किस तऱफ से लगी, आगे से या पीछे से? यह भी कहा जा रहा था कि शर्मा पुलिस की गोली का शिकार हुए हैं, किंतु पोस्टमार्टम रिपोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर पा रही है, क्योंकि होली फैमिली अस्पताल जहां उन्हें पहले लाया गया था और बाद में वहीं उनकी मौत भी हुई, में उनके घावों की सफाई की गई. लिहाज़ा पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर यह नहीं बता सके कि यह गोली के घुसने की जगह है या निकलने की. दूसरा कारण यह है कि शर्मा को एम्स में सफेद सूती कपड़े में ले जाया गया था और उनके घाव उसी से ढके हुए थे. रिपोर्ट में लिखा है कि जांच अधिकारी से निवेदन किया गया था कि वह शर्मा के कपड़े लैब में लाएं. मालूम हो कि शर्मा का पोस्टमार्टम 20 सितंबर 2008 को 12 बजे दिन में किया गया था और उसी समय यह रिपोर्ट भी तैयार की गई थी.मोहम्मद आतिफ अमीन को लगभग सारी गोलियां पीछे से लगीं. आठ गोलियां पीठ में लगकर सीने से निकली हैं. एक गोली दाहिने हाथ पर पीछे से बाहर की ओर से लगी, जबकि एक गोली बाईं जांघ पर लगी. और, यह गोली हैरतअंगेज तौर पर ऊपर की ओर जाकर बाएं कूल्हे के पास निकली. पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के संबंध में प्रकाशित समाचारों और उठाए जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देते हुए यह तर्क दिया कि आतिफ गोलियां चलाते हुए भागने का प्रयास कर रहा था और उसे मालूम नहीं था कि फ्लैट में कुल कितने लोग हैं, इसलिए क्रॉस फायरिंग में उसे पीछे से गोलियां लगीं. लेकिन, मुठभेड़ या क्रॉस फायरिंग में कोई गोली जांघ में लगकर कूल्हे की ओर कैसे निकल सकती है. आतिफ के दाहिने पैर के घुटने में 1.5×1 सेमी का जो घाव है, उसके बारे में पुलिस का कहना है कि वह गोली चलाते हुए गिर गया था. पीठ में गोलियां लगने से घुटने के बल गिरना तो समझ में आ सकता है, किंतु विशेषज्ञ इस बात पर हैरान हैं कि फिर आतिफ की पीठ की खाल इतनी बुरी तरह कैसे उधड़ गई? पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, आतिफ के दाहिने कूल्हे पर 6 से 7 सेमी के भीतर कई जगह रगड़ के निशान भी पाए गए.साजिद के बारे में भी पुलिस का कहना है कि साजिद एक गोली लगने के बाद गिर गया था और वह क्रॉस फायरिंग के बीच आ गया. इस तर्क को गुमराह करने के अलावा और क्या कहा जा सकता है. साजिद को जहां गोलियां लगी हैं, उनमें से तीन पेशानी से नीचे की ओर आती हैं. जिसमें से एक गोली ठोड़ी और गर्दन के बीच जबड़े से भी निकली है. साजिद के दाहिने कंधे पर जो गोली मारी गई, वह बिल्कुल सीधे नीचे की ओर आई है. गोलियों के इन निशानों के बारे में पहले ही स्वतंत्र फोरेंसिक विशेषज्ञ का कहना था कि या तो साजिद को बैठने के लिए मजबूर किया गया या फिर गोली चलाने वाला ऊंचाई पर था. ज़ाहिर है, दूसरी सूरत उस फ्लैट में संभव नहीं है. दूसरे यह कि क्रॉस फायरिंग तो आमने-सामने होती है, न कि ऊपर से नीचे की ओर.साजिद के पैर के घाव के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि यह किसी ग़ैर धारदार वस्तु से लगा है. पुलिस इसका कारण गोली लगने के बाद गिरना बता रही है, लेकिन 3.5×2 सेमी का गहरा घाव फर्श पर गिरने से कैसे आ सकता है? पोस्टमार्टम रिपोर्ट से इस आरोप की पुष्टि होती है कि आतिफ एवं साजिद के साथ मारपीट की गई थी. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशानुसार इस प्रकार के मामलों में पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ आयोग के कार्यालय भेजी जाए, लेकिन मोहन चंद्र शर्मा की रिपोर्ट में केवल यह लिखा है कि घावों की फोटो पर आधारित सीडी संबंधित जांच अधिकारी के सुपुर्द की गई. बाटला हाउस की घटना के बाद सरकार, कार्यपालिका और मीडिया ने जो भूमिका अदा की, वह न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि इससे देश के मुसलमानों एवं अन्य लोगों के मन में यह प्रश्न है कि आख़िर सरकार इस मामले की न्यायिक जांच से क्यों कतरा रही है? न्यायिक जांच के लिए जज भी सरकार ही नियुक्त करेगी.वर्ष 2008 में होने वाले सीरियल धमाकों के बारे में विभिन्न राय पाई जाती हैं. कुछ लोग इन तमाम घटनाओं को हेडली की भारत यात्रा से जोड़कर देखते हैं. जबकि भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने अहमदाबाद धमाकों के बाद मीडिया से कहा था कि यह सब कांग्रेस करा रही है, क्योंकि न्युक्लियर समझौते के मुद्दे पर लोकसभा में नोट की गड्डियां पहुंचने से वह परेशान है और जनता के जेहन को मोड़ना चाहती है. समाजवादी पार्टी से निष्कासित सांसद अमर सिंह के अनुसार, सोनिया गांधी बाटला हाउस मामले की जांच कराना चाहती थीं, लेकिन किसी कारण वह ऐसा नहीं कर सकीं, पर उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया किवह कारण क्या है?बाटला हाउस मामले की न्यायिक जांच की मांग केंद्रीय सरकार के अलावा अदालत भी नकार चुकी है. सबका यही तर्क है कि इससे पुलिस का मनोबल गिरेगा. केंद्रीय सरकार और अदालत जब इस तर्क द्वारा जांच की मांग ठुकरा रही थी, उसी समय देहरादून में रणवीर नामक युवक की मुठभेड़ में मौत की जांच हो रही थी और अंत में पुलिस का अपराध सिद्ध हुआ. आख़िर पुलिस का मनोबल रूपी यह कौन सा आधार है, जिसकी रक्षा के लिए न्याय और पारदर्शिता के नियमों को त्यागा जा रहा है. ये भेद भाव नही तो क्या है.???? अपने सभी दोस्तों की राये चाहता हु | मेरा सिर्फ इतना कहना है की अगर ये सच है तो सफाई सामने लाई जाए वरना अगर ये गलत है तो दोषियों को सज़ा दी जाए

वादेय्मात्रम का सच ------जयचँद वंशज बकिम चंद चटर्जी

१८८२ में अंग्रेजो के नोकर बकिम चद चटर्जी ने एक किताब लिखी थी आनंद मट इस किताब में अंग्रेजो के इस नोकर ने मुस्लिम हुकूमत के अंग्रेजो से हारने और अंग्रेजो की जीत पर बहुत ख़ुशी ज़ाहिर की हे ये अंग्रेजो का नोकर देश द्रोही हिन्दू को लिखता हे की ....
मुसलमान मलिचो के मुकाबले बिर्तानिया की हुकूमत को तस्लीम करले उनका फ़र्ज़ होना चाहिए की हिन्दुस्तान की पाक सर्ज़मीन को इन नापाक मलिचो (मुसलमानों) को से साफ़ करदें इनकी मस्जिदों को मिटा देना चाहिए और हर मुसलमान को ज़बरदस्ती हिन्दू बना लेना चाहिए ....
इसके अलावा इस अंग्रेजो के नोकर देशद्रोही जयचँद के वंशज बकिम चंद चटर्जी ने लिखा की मुस्लिम की मस्जिदों और ओलिया के मजारो को तोड़ो उस देशद्रोही ने मुस्लिमो को हिन्दू बनाने के लिए जो तरीके लिखे हे अगर में वो तरीके में लिखू तो शायद मेरा कलम फट जाये और उन तरीको का इस्तेमाल अब तक भागलपुर, मुरादाबाद, मेरठ, अलिघर, भोपाल, नासिक, सूरत, अहमदाबाद, बरोदा, डेल्ही और जाने कितनी जगह किया जा चूका हे और मुस्लिमो पर होने वाले ज़ुल्म को इनके एक वंशज ने किर्या की पिरती किर्या बता दिया था अदालते आज बी अंग्रेजो की तरह आँखे बंद करके दमन वाला फेसला करती हैं महान समाज सेवक डॉक्टर विनायक को उम्र कद की सजा इसका एक उदहारण हे और उस देशद्रोही बकिम्च्न्द चटर्जी ने "आनंद मठ’’ के पृष्ठ-७७ पर तीसरी और चोथी पंक्ति में लिखा हैः‘‘हम राज्य नहीं चाहते- हम केवल मुसलमानों को भगवान का विद्वेषी मानकर उनका वंश-सहित नाश करना चाहते...
क्या कोई ऐसा इंसान हे जो अंग्रेजो की तरफदारी और उनकी तारीफ करे और उसे हम लोग देशभक्त मानले अंग्रेजो के शाशन की स्थापना पर ख़ुशी मनाने वाले बकिम चंद जो अंग्रेजो का नोकर था की लिखी किताब आनंद मठ जो पूरी तरह मुसलमानों का विरोध करती और अंग्रेजो का गुणगान करती हे के अंत में लिखा बंदेमातरम गीत आप गाना पंसंद करेंगे उस देश द्रोही और भाड़े के अंग्रेजो के दलाल की लिखी अगर एक लाइन को भी कोई सही कहता हे तो मुझे लगता हे वो देश के उस बलि दनिया के मुह पर कालिख पोतने के सामान हे जिन्होंने स्वाधीनता के लिए अपनी जान कुर्बान की सारे क्रांतिकारियों और देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले १८५७ के सिपाहियों के बलिदान का अपमान हे किसी देशद्रोही और नफरत फेलाने वाले अंग्रेजो के टट्टू की लिखी बात में देश भक्ति को देखना और आज उन बलिदानियों की आत्मा को कितना दुःख होता होगा जिन्होंने धरती माँ की आजादी के लिए अपनी जान की आहुति देदी जब वो अंग्रेजो के दलाल बकिम्च्न्द की लिखी पंक्तियों को देश्भात्की कहता हुआ सुनते होंगे आप लोग एक बार आनंद मठ को पड़कर देखिये मुझे नही लगता कोई खुद तो देशभक्त कहने वाला हिन्दुस्तानी वंदेमातरम को देश्भात्की दिखाने का जरिया कहेगा और अगर कोई कहता हे तो या तो वो देशद्रोही हे या फिर मैं क्योकि मैं अंग्रेजी शाशन की तारीफ और चापलूसी करने वाले देशद्रोही का विरोध करता हु मेरे खून का एक एक कतरा मेरे हिन्दुस्तान के लिए हाज़िर हे और मैं जानता हु बकिम्च्न्द की नसले मेरा विरोध करेंगी क्योकि अंग्रेजो ने सिर्फ बकिम्च्न्द को ही नही उसके खून को भी खरीद लिया था जो आज भी उसकी नस्लों में लहू बनकर बहता हे आनंद मठ लिखने वाला मेरी धरती माँ को अपमानित करे और मैं चुप रहू ये हो ही नही सकता आजादी की लडाई में इकबाल ने हिन्दू मुस्लिमो को एक नारा दिया था जिस नारे के जोश में सभी हिन्दू और मुस्लिमो ने मिलकर अंग्रेजो को देश से निकाल फेका था आज आप लोगो के बिच में मैं फिर वही नारा लाया हु क्योकि आज भी देश को आजादी की ज़रूरत हे उन सियासी लोगो से जो सत्ता के लिए नफरत की दीवारे बनाते हे जो अपनी जैबे भरने के लिए हम हिन्दुस्तानियों के लहू को पानी समझते हे जो हमारे म्हणत के पैसो को अपने घर में भरते हैं और ये आवाज़ मेरी नही हर उस हिन्दुस्तानी की हे जो देश को अमन सुकून के साथ बुलंद मक़ाम पर देखना चाहते हैं ...इन्कलाब जिंदाबाद ..
फिर वही मैदाने कर्बला का मंज़र हे यारो
ज़ुल्म से लड़कर अपनी पुश्तो को बचाना हे

औरंगज़ेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्जिद में कोई फ़र्क़ नहीं समझता था।

पुस्‍तक एवं लेखक:‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय, भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा, राज्यसभा के सदस्य, इलाहाबाद नगरपालिका के चेयरमैन एवं इतिहासकार---
जब में इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई. से 1953 ई. तक) तो मेरे सामने दाखिल-खारिज का एक मामला लाया गया। यह मामला सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर से संबंधित जायदाद के बारे में था। मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे। एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज़ दाखिल किये जो उसके खानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे। इन दस्तावेज़ों में शहंशाह औरंगज़ेब के फ़रमान भी थे। औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था। मैंने सोचा कि ये फ़रमान जाली होंगे। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोडने के लिए प्रसिद्ध है, वह एक मन्दिर को यह कह कर जागीर दे सकता हे यह जागीर पूजा और भोग के लिए दी जा रही है। आखि़र औरंगज़ेब कैस बुतपरस्ती के साथ अपने को शरीक कर सकता था। मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली हैं, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डा. सर तेज बहादुर सप्रु से राय लेना उचित समझा। वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। मैंने दस्तावेज़ें उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि औरंगजे़ब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं। इसके बाद उन्होंने अपने मुन्शी से बनारस के जंगमबाडी शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा। यह मुक़दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था। जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मन्दिर को जागीर दी गई थी। इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की, उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया। डाक्टर सप्रू की सलाह पर मैंने भारत के पिभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतो के पास पत्र भेजकर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उन मन्दिरों को जागीरें दी गई हों तो वे कृपा करके उनकी फोटो-स्टेट कापियां मेरे पास भेज दें। अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई। उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई। यह फ़रमान 1065 हि. से 1091 हि., अर्थात 1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे। हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाण्ति हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रूख सामने लाया गया है।
भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं। यदि सही ढ़ंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाऐंगे जिनसे औरंगज़ेब का गै़र-मुस्लिमों के प्रति उदार व्यवहार का पता चलेगा।

औरंगज़ेब के फरमानों की जांच-पड़ताल के सिलसिले में मेरा सम्पर्क श्री ज्ञानचंद और पटना म्यूजियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डा. पी एल. गुप्ता से हुआ। ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृस्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे। मुझे खुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता भी सच्चाई को तलाश करने में व्यस्त हैं और काफ़ी बदनाम औरंगज़ेब की तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे हैं। औरंगज़ेब, जिसे पक्षपाती इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हकूमत का प्रतीक मान रखा है। उसके बारें में वे क्या विचार रखते हैं इसके विषय में यहां तक कि ‘शिबली’ जैसे इतिहास गवेषी कवि को कहना पड़ाः तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।। औरंगज़ेब पर हिन्दू-दुश्मनी के आरोप के सम्बन्ध में जिस फरमान को बहुत उछाला गया है, वह ‘फ़रमाने-बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह फ़रमान बनारस के मुहल्ला गौरी के एक ब्राहमण परिवार से संबंधित है। 1905 ई. में इसे गोपी उपाघ्याय के नवासे मंगल पाण्डेय ने सिटि मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था। एसे पहली बार ‘एसियाटिक- सोसाइटी’ बंगाल के जर्नल (पत्रिका) ने 1911 ई. में प्रकाशित किया था। फलस्वरूप रिसर्च करनेवालों का ध्यान इधर गया। तब से इतिहासकार प्रायः इसका हवाला देते आ रहे हैं और वे इसके आधार पर औरंगज़ेब पर आरोप लगाते हैं कि उसने हिन्दू मन्दिरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि इस फ़रमान का वास्तविक महत्व उनकी निगाहों से आझल रह जाता है। यह लिखित फ़रमान औरंगज़ेब ने 15 जुमादुल-अव्वल 1065 हि. (10 मार्च 1659 ई.) को बनारस के स्थानिय अधिकारी के नाम भेजा था जो एक ब्राहम्ण की शिकायत के सिलसिले में जारी किया गया था। वह ब्राहमण एक मन्दिर का महंत था और कुछ लोग उसे परेशान कर रहे थे। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘अबुल हसन को हमारी शाही उदारता का क़ायल रहते हुए यह जानना चाहिए कि हमारी स्वाभाविक दयालुता और प्राकृतिक न्याय के अनुसार हमारा सारा अनथक संघर्ष और न्यायप्रिय इरादों का उद्देश्य जन-कल्याण को अढ़ावा देना है और प्रत्येक उच्च एवं निम्न वर्गों के हालात को बेहतर बनाना है। अपने पवित्र कानून के अनुसार हमने फैसला किया है कि प्राचीन मन्दिरों को तबाह और बरबाद नहीं किया जाय, बलबत्ता नए मन्दिर न बनए जाएँ। हमारे इस न्याय पर आधारित काल में हमारे प्रतिष्ठित एवं पवित्र दरबार में यह सूचना पहुंची है कि कुछ लोग बनारस शहर और उसके आस-पास के हिन्दू नागरिकों और मन्दिरों के ब्राहम्णों-पुरोहितों को परेशान कर रहे हैं तथा उनके मामलों में दख़ल दे रहे हैं, जबकि ये प्राचीन मन्दिर उन्हीं की देख-रेख में हैं। इसके अतिरिक्त वे चाहते हैं कि इन ब्राहम्णों को इनके पुराने पदों से हटा दें। यह दखलंदाज़ी इस समुदाय के लिए परेशानी का कारण है। इसलिए यह हमारा फ़रमान है कि हमारा शाही हुक्म पहुंचते ही तुम हिदायत जारी कर दो कि कोई भी व्यक्ति ग़ैर-कानूनी रूप से दखलंदाजी न करे और न उन स्थानों के ब्राहम्णों एवं अन्य हिन्दु नागरिकों को परेशान करे। ताकि पहले की तरह उनका क़ब्ज़ा बरक़रार रहे और पूरे मनोयोग से वे हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के लिए प्रार्थना करते रहें। इस हुक्म को तुरन्त लागू किया जाये।’’ इस फरमान से बिल्कुल स्पष्ट हैं कि औरंगज़ेब ने नए मन्दिरों के निर्माण के विरूद्ध कोई नया हुक्म जारी नहीं किया, बल्कि उसने केवल पहले से चली आ रही परम्परा का हवाला दिया और उस परम्परा की पाबन्दी पर ज़ोर दिया। पहले से मौजूद मन्दिरों को ध्वस्त करने का उसने कठोरता से विरोध किया। इस फ़रमान से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह हिन्दू प्रजा को सुख-शान्ति से जीवन व्यतीत करने का अवसर देने का इच्छुक था। यह अपने जैसा केवल एक ही फरमान नहीं है। बनारस में ही एक और फरमान मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि औरंगज़ेब वास्तव में चाहता था कि हिन्दू सुख-शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। यह फरमान इस प्रकार हैः ‘‘रामनगर (बनारस) के महाराजाधिराज राजा रामसिंह ने हमारे दरबार में अर्ज़ी पेश की हैं कि उनके पिता ने गंगा नदी के किनारे अपने धार्मिक गुरू भगवत गोसाईं के निवास के लिए एक मकान बनवाया था। अब कुछ लोग गोसाईं को परेशान कर रहे हैं। अतः यह शाही फ़रमान जारी किया जाता है कि इस फरमान के पहुंचते ही सभी वर्तमान एवं आने वाले अधिकारी इस बात का पूरा ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति गोसाईं को परेशान एवं डरा-धमका न सके, और न उनके मामलें में हस्तक्षेप करे, ताकि वे पूरे मनोयोग के साथ हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए प्रार्थना करते रहें। इस फरमान पर तुरं अमल गिया जाए।’’ (तीरीख-17 बबी उस्सानी 1091 हिजरी) जंगमबाड़ी मठ के महंत के पास मौजूद कुछ फरमानों से पता चलता है कि औरंगज़ैब कभी यह सहन नहीं करता था कि उसकी प्रजा के अधिकार किसी प्रकार से भी छीने जाएँ, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। वह अपराधियों के साथ सख़्ती से पेश आता था। इन फरमानों में एक जंगम लोंगों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) की ओर से एक मुसलमान नागरिक के दरबार में लाया गया, जिस पर शाही हुक्म दिया गया कि बनारस सूबा इलाहाबाद के अफ़सरों को सूचित किया जाता है कि पुराना बनारस के नागरिकों अर्जुनमल और जंगमियों ने शिकायत की है कि बनारस के एक नागरिक नज़ीर बेग ने क़स्बा बनारस में उनकी पांच हवेलियों पर क़ब्जा कर लिया है। उन्हें हुक्म दिया जाता है कि यदि शिकायत सच्ची पाई जाए और जायदा की मिल्कियत का अधिकार प्रमानिण हो जाए तो नज़ीर बेग को उन हवेलियों में दाखि़ल न होने दया जाए, ताकि जंगमियों को भविष्य में अपनी शिकायत दूर करवाने के लिएए हमारे दरबार में ने आना पडे। इस फ़रमान पर 11 शाबान, 13 जुलूस (1672 ई.) की तारीख़ दर्ज है। इसी मठ के पास मौजूद एक-दूसरे फ़रमान में जिस पर पहली नबीउल-अव्वल 1078 हि. की तारीख दर्ज़ है, यह उल्लेख है कि ज़मीन का क़ब्ज़ा जंगमियों को दया गया। फ़रमान में है- ‘‘परगना हवेली बनारस के सभी वर्तमान और भावी जागीरदारों एवं करोडियों को सूचित किया जाता है कि शहंशाह के हुक्म से 178 बीघा ज़मीन जंगमियों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) को दी गई। पुराने अफसरों ने इसकी पुष्टि की थी और उस समय के परगना के मालिक की मुहर के साथ यह सबूत पेश किया है कि ज़मीन पर उन्हीं का हक़ है। अतः शहंशाह की जान के सदक़े के रूप में यह ज़मीन उन्हें दे दी गई। ख़रीफ की फसल के प्रारम्भ से ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा बहाल किया जाय और फिर किसीप्रकार की दखलंदाज़ी न होने दी जाए, ताकि जंगमी लोग(शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) उसकी आमदनी से अपने देख-रेख कर सकें।’’ इस फ़रमान से केवल यही ता नहीं चलता कि औरंगज़ेब स्वभाव से न्यायप्रिय था, बल्कि यह भी साफ़ नज़र आता है कि वह इस तरह की जायदादों के बंटवारे में हिन्दू धार्मिक सेवकों के साथ कोई भेदभा नहीं बरता था। जंगमियों को 178 बीघा ज़मीन संभवतः स्वयं औरंगज़ेब ही ने प्रान की थी, क्योंकि एक दूसरे फ़रमान (तिथि 5 रमज़ान, 1071 हि.) में इसका स्पष्टीकरण किया गया है कि यह ज़मीन मालगुज़ारी मुक्त है। औरंगज़ेब ने एक दूसरे फरमान (1098 हि.) के द्वारा एक-दूसरी हिन्दू धार्मिक संस्था को भी जागीर प्रदान की। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘बनारस में गंगा नदी के किनारे बेनी-माधो घाट पर दो प्लाट खाली हैं एक मर्क़जी मस्जिद के किनारे रामजीवन गोसाईं के घर के सामने और दूसरा उससे पहले। ये प्लाट बैतुल-माल की मिल्कियत है। हमने यह प्लाट रामजीवन गोसाईं और उनके लड़के को ‘‘इनाम’ के रूप में प्रदान किया, ताकि उक्त प्लाटों पर बाहम्णें एवं फ़क़ीरों के लिए रिहायशी मकान बनाने के बाद वे खुदा की इबादत और हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए दूआ और प्रार्थना कने में लग जाएं। हमारे बेटों, वज़ीरों, अमीरों, उच्च पदाधिकारियों, दरोग़ा और वर्तमान एवं भावी कोतवालों के अनिवार्य है कि वे इस आदेश के पालन का ध्यान रखें और उक्त प्लाट, उपर्युक्त व्यक्ति और उसके वारिसों के क़ब्ज़े ही मे रहने दें और उनसे न कोई मालगुज़ारी या टैक्स लिया जसए और न उनसे हर साल नई सनद मांगी जाए।’’ लगता है औरंगज़ेब को अपनी प्रजा की धार्मिक भावनाओं के सम्मान का बहुत अधिक ध्यान रहता था। हमारे पास औरंगज़ेब का एक फ़रमान (2 सफ़र, 9 जुलूस) है जो असम के शह गोहाटी के उमानन्द मन्दिर के पुजारी सुदामन ब्राहम्ण के नाम है। असम के हिन्दू राजाओं की ओर से इस मन्दिर और उसके पुजारी को ज़मीन का एक टुकड़ा और कुछ जंगलों की आमदनी जागीर के रूप में दी गई थी, ताकि भोग का खर्च पूरा किया जा सके और पुजारी की आजीविका चल सके। जब यह प्रांत औरंगजेब के शासन-क्षेत्र में आया, तो उसने तुरंत ही एक फरमान के द्वारा इस जागीर को यथावत रखने का आदेश दिया। हिन्दुओं और उनके धर्म के साथ औरंगज़ेब की सहिष्ण्ता और उदारता का एक और सबूत उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर के पुजारियों से मिलता है। यह शिवजी के प्रमुख मन्दिरों में से एक है, जहां दिन-रात दीप प्रज्वलित रहता है। इसके लिए काफ़ी दिनों से पतिदिन चार सेर घी वहां की सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाथा था और पुजारी कहते हैं कि यह सिलसिला मुगल काल में भी जारी रहा। औरंगजेब ने भी इस परम्परा का सम्मान किया। इस सिलसिले में पुजारियों के पास दुर्भाग्य से कोई फ़रमान तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु एक आदेश की नक़ल ज़रूर है जो औरंगज़ब के काल में शहज़ादा मुराद बख़्श की तरफ से जारी किया गया था। (5 शव्वाल 1061 हि. को यह आदेश शहंशाह की ओर से शहज़ादा ने मन्दिर के पुजारी देव नारायण के एक आवेदन पर जारी किया था। वास्तविकता की पुष्टि के बाद इस आदेश में कहा गया हैं कि मन्दिर के दीप के लिए चबूतरा कोतवाल के तहसीलदार चार सेर (अकबरी घी प्रतिदिन के हिसाब से उपल्ब्ध कराएँ। इसकी नक़ल मूल आदेश के जारी होने के 93 साल बाद (1153 हिजरी) में मुहम्मद सअदुल्लाह ने पुनः जारी की। साधारण्तः इतिहासकार इसका बहुत उल्लेख करते हैं कि अहमदाबाद में नागर सेठ के बनवाए हुए चिन्तामणि मन्दिर को ध्वस्त किया गया, परन्तु इस वास्तविकता पर पर्दा डाल देते हैं कि उसी औरंगज़ेब ने उसी नागर सेठ के बनवाए हुए शत्रुन्जया और आबू मन्दिरों को काफ़ी बड़ी जागीरें प्रदान कीं।
(mandir dhane ki ghatna)
निःसंदेह इतिहास से यह प्रमाण्ति होता हैं कि औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर और गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद को ढा देने का आदेश दिया था, परन्तु इसका कारण कुछ और ही था। विश्वनाथ मन्दिर के सिलसिले में घटनाक्रम यह बयान किया जाता है कि जब औरंगज़ेब बंगाल जाते हुए बनारस के पास से गुज़र रहा था, तो उसके काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं ने बादशाह से निवेदन किया कि वहा। क़ाफ़िला एक दिन ठहर जाए तो उनकी रानियां बनारस जा कर गंगा दनी में स्नान कर लेंगी और विश्वनाथ जी के मन्दिर में श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर आएँगी। औरंगज़ेब ने तुरंत ही यह निवेदन स्वीकार कर लिया और क़ाफिले के पडाव से बनारस तक पांच मील के रास्ते पर फ़ौजी पहरा बैठा दिया। रानियां पालकियों में सवार होकर गईं और स्नान एवं पूजा के बाद वापस आ गईं, परन्तु एक रानी (कच्छ की महारानी) वापस नहीं आई, तो उनकी बडी तलाश हुई, लेकिन पता नहीं चल सका। जब औरंगजै़ब को मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने फ़ौज के बड़े-बड़े अफ़सरों को तलाश के लिए भेजा। आखिर में उन अफ़सरों ने देखा कि गणेश की मूर्ति जो दीवार में जड़ी हुई है, हिलती है। उन्होंने मूर्ति हटवा कर देख तो तहखाने की सीढी मिली और गुमशुदा रानी उसी में पड़ी रो रही थी। उसकी इज़्ज़त भी लूटी गई थी और उसके आभूषण भी छीन लिए गए थे। यह तहखाना विश्वनाथ जी की मूर्ति के ठीक नीचे था। राजाओं ने इस हरकत पर अपनी नाराज़गी जताई और विरोघ प्रकट किया। चूंकि यह बहुत घिनौना अपराध था, इसलिए उन्होंने कड़ी से कड़ी कार्रवाई कने की मांग की। उनकी मांग पर औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र-स्थल को अपवित्र किया जा चुका है। अतः विश्नाथ जी की मूर्ति को कहीं और लेजा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाय और महंत को मिरफतर कर लिया जाए। डाक्टर पट्ठाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है। पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा. पी. एल. गुप्ता ने भी इस घटना की पुस्टि की है।(masjid todne ki ghatna oranzeb)
गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद की घटना यह है कि वहां के राजा जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालुगज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजते थे। कुछ ही वर्षाें में यह रक़म करोड़ों की हो गई। तानाशाह न यह ख़ज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी। जब औरंज़ेब को इसका पता चला तो उसने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद गिरा दी जाए। अतः गड़ा हुआ खज़ाना निकाल कर उसे जन-कल्याण के कामों मकें ख़र्च किया गया।
ये दोनों मिसालें यह साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि औरंगज़ेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्जिद में कोई फ़र्क़ नहीं समझता था। ‘‘दर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उन लोगों को दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और पनगढंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोडने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए हैं।
साभार पुस्तक ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय,मधुर संदेश संगम, अबुल फज़्ल इन्कलेव, दिल्ली-25 औरंगज़ेब जेब
पुस्‍तक एवं लेखक:‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय, भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा, राज्यसभा के सदस्य, इलाहाबाद नगरपालिका के चेयरमैन एवं इतिहासकार---
जब में इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई. से 1953 ई. तक) तो मेरे सामने दाखिल-खारिज का एक मामला लाया गया। यह मामला सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर से संबंधित जायदाद के बारे में था। मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे। एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज़ दाखिल किये जो उसके खानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे। इन दस्तावेज़ों में शहंशाह औरंगज़ेब के फ़रमान भी थे। औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था। मैंने सोचा कि ये फ़रमान जाली होंगे। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोडने के लिए प्रसिद्ध है, वह एक मन्दिर को यह कह कर जागीर दे सकता हे यह जागीर पूजा और भोग के लिए दी जा रही है। आखि़र औरंगज़ेब कैस बुतपरस्ती के साथ अपने को शरीक कर सकता था। मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली हैं, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डा. सर तेज बहादुर सप्रु से राय लेना उचित समझा। वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। मैंने दस्तावेज़ें उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि औरंगजे़ब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं। इसके बाद उन्होंने अपने मुन्शी से बनारस के जंगमबाडी शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा। यह मुक़दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था। जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मन्दिर को जागीर दी गई थी। इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की, उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया। डाक्टर सप्रू की सलाह पर मैंने भारत के पिभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतो के पास पत्र भेजकर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उन मन्दिरों को जागीरें दी गई हों तो वे कृपा करके उनकी फोटो-स्टेट कापियां मेरे पास भेज दें। अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई। उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई। यह फ़रमान 1065 हि. से 1091 हि., अर्थात 1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे। हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाण्ति हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रूख सामने लाया गया है।
भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं। यदि सही ढ़ंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाऐंगे जिनसे औरंगज़ेब का गै़र-मुस्लिमों के प्रति उदार व्यवहार का पता चलेगा।

औरंगज़ेब के फरमानों की जांच-पड़ताल के सिलसिले में मेरा सम्पर्क श्री ज्ञानचंद और पटना म्यूजियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डा. पी एल. गुप्ता से हुआ। ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृस्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे। मुझे खुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता भी सच्चाई को तलाश करने में व्यस्त हैं और काफ़ी बदनाम औरंगज़ेब की तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे हैं। औरंगज़ेब, जिसे पक्षपाती इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हकूमत का प्रतीक मान रखा है। उसके बारें में वे क्या विचार रखते हैं इसके विषय में यहां तक कि ‘शिबली’ जैसे इतिहास गवेषी कवि को कहना पड़ाः तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।। औरंगज़ेब पर हिन्दू-दुश्मनी के आरोप के सम्बन्ध में जिस फरमान को बहुत उछाला गया है, वह ‘फ़रमाने-बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह फ़रमान बनारस के मुहल्ला गौरी के एक ब्राहमण परिवार से संबंधित है। 1905 ई. में इसे गोपी उपाघ्याय के नवासे मंगल पाण्डेय ने सिटि मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था। एसे पहली बार ‘एसियाटिक- सोसाइटी’ बंगाल के जर्नल (पत्रिका) ने 1911 ई. में प्रकाशित किया था। फलस्वरूप रिसर्च करनेवालों का ध्यान इधर गया। तब से इतिहासकार प्रायः इसका हवाला देते आ रहे हैं और वे इसके आधार पर औरंगज़ेब पर आरोप लगाते हैं कि उसने हिन्दू मन्दिरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि इस फ़रमान का वास्तविक महत्व उनकी निगाहों से आझल रह जाता है। यह लिखित फ़रमान औरंगज़ेब ने 15 जुमादुल-अव्वल 1065 हि. (10 मार्च 1659 ई.) को बनारस के स्थानिय अधिकारी के नाम भेजा था जो एक ब्राहम्ण की शिकायत के सिलसिले में जारी किया गया था। वह ब्राहमण एक मन्दिर का महंत था और कुछ लोग उसे परेशान कर रहे थे। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘अबुल हसन को हमारी शाही उदारता का क़ायल रहते हुए यह जानना चाहिए कि हमारी स्वाभाविक दयालुता और प्राकृतिक न्याय के अनुसार हमारा सारा अनथक संघर्ष और न्यायप्रिय इरादों का उद्देश्य जन-कल्याण को अढ़ावा देना है और प्रत्येक उच्च एवं निम्न वर्गों के हालात को बेहतर बनाना है। अपने पवित्र कानून के अनुसार हमने फैसला किया है कि प्राचीन मन्दिरों को तबाह और बरबाद नहीं किया जाय, बलबत्ता नए मन्दिर न बनए जाएँ। हमारे इस न्याय पर आधारित काल में हमारे प्रतिष्ठित एवं पवित्र दरबार में यह सूचना पहुंची है कि कुछ लोग बनारस शहर और उसके आस-पास के हिन्दू नागरिकों और मन्दिरों के ब्राहम्णों-पुरोहितों को परेशान कर रहे हैं तथा उनके मामलों में दख़ल दे रहे हैं, जबकि ये प्राचीन मन्दिर उन्हीं की देख-रेख में हैं। इसके अतिरिक्त वे चाहते हैं कि इन ब्राहम्णों को इनके पुराने पदों से हटा दें। यह दखलंदाज़ी इस समुदाय के लिए परेशानी का कारण है। इसलिए यह हमारा फ़रमान है कि हमारा शाही हुक्म पहुंचते ही तुम हिदायत जारी कर दो कि कोई भी व्यक्ति ग़ैर-कानूनी रूप से दखलंदाजी न करे और न उन स्थानों के ब्राहम्णों एवं अन्य हिन्दु नागरिकों को परेशान करे। ताकि पहले की तरह उनका क़ब्ज़ा बरक़रार रहे और पूरे मनोयोग से वे हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के लिए प्रार्थना करते रहें। इस हुक्म को तुरन्त लागू किया जाये।’’ इस फरमान से बिल्कुल स्पष्ट हैं कि औरंगज़ेब ने नए मन्दिरों के निर्माण के विरूद्ध कोई नया हुक्म जारी नहीं किया, बल्कि उसने केवल पहले से चली आ रही परम्परा का हवाला दिया और उस परम्परा की पाबन्दी पर ज़ोर दिया। पहले से मौजूद मन्दिरों को ध्वस्त करने का उसने कठोरता से विरोध किया। इस फ़रमान से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह हिन्दू प्रजा को सुख-शान्ति से जीवन व्यतीत करने का अवसर देने का इच्छुक था। यह अपने जैसा केवल एक ही फरमान नहीं है। बनारस में ही एक और फरमान मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि औरंगज़ेब वास्तव में चाहता था कि हिन्दू सुख-शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। यह फरमान इस प्रकार हैः ‘‘रामनगर (बनारस) के महाराजाधिराज राजा रामसिंह ने हमारे दरबार में अर्ज़ी पेश की हैं कि उनके पिता ने गंगा नदी के किनारे अपने धार्मिक गुरू भगवत गोसाईं के निवास के लिए एक मकान बनवाया था। अब कुछ लोग गोसाईं को परेशान कर रहे हैं। अतः यह शाही फ़रमान जारी किया जाता है कि इस फरमान के पहुंचते ही सभी वर्तमान एवं आने वाले अधिकारी इस बात का पूरा ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति गोसाईं को परेशान एवं डरा-धमका न सके, और न उनके मामलें में हस्तक्षेप करे, ताकि वे पूरे मनोयोग के साथ हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए प्रार्थना करते रहें। इस फरमान पर तुरं अमल गिया जाए।’’ (तीरीख-17 बबी उस्सानी 1091 हिजरी) जंगमबाड़ी मठ के महंत के पास मौजूद कुछ फरमानों से पता चलता है कि औरंगज़ैब कभी यह सहन नहीं करता था कि उसकी प्रजा के अधिकार किसी प्रकार से भी छीने जाएँ, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। वह अपराधियों के साथ सख़्ती से पेश आता था। इन फरमानों में एक जंगम लोंगों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) की ओर से एक मुसलमान नागरिक के दरबार में लाया गया, जिस पर शाही हुक्म दिया गया कि बनारस सूबा इलाहाबाद के अफ़सरों को सूचित किया जाता है कि पुराना बनारस के नागरिकों अर्जुनमल और जंगमियों ने शिकायत की है कि बनारस के एक नागरिक नज़ीर बेग ने क़स्बा बनारस में उनकी पांच हवेलियों पर क़ब्जा कर लिया है। उन्हें हुक्म दिया जाता है कि यदि शिकायत सच्ची पाई जाए और जायदा की मिल्कियत का अधिकार प्रमानिण हो जाए तो नज़ीर बेग को उन हवेलियों में दाखि़ल न होने दया जाए, ताकि जंगमियों को भविष्य में अपनी शिकायत दूर करवाने के लिएए हमारे दरबार में ने आना पडे। इस फ़रमान पर 11 शाबान, 13 जुलूस (1672 ई.) की तारीख़ दर्ज है। इसी मठ के पास मौजूद एक-दूसरे फ़रमान में जिस पर पहली नबीउल-अव्वल 1078 हि. की तारीख दर्ज़ है, यह उल्लेख है कि ज़मीन का क़ब्ज़ा जंगमियों को दया गया। फ़रमान में है- ‘‘परगना हवेली बनारस के सभी वर्तमान और भावी जागीरदारों एवं करोडियों को सूचित किया जाता है कि शहंशाह के हुक्म से 178 बीघा ज़मीन जंगमियों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) को दी गई। पुराने अफसरों ने इसकी पुष्टि की थी और उस समय के परगना के मालिक की मुहर के साथ यह सबूत पेश किया है कि ज़मीन पर उन्हीं का हक़ है। अतः शहंशाह की जान के सदक़े के रूप में यह ज़मीन उन्हें दे दी गई। ख़रीफ की फसल के प्रारम्भ से ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा बहाल किया जाय और फिर किसीप्रकार की दखलंदाज़ी न होने दी जाए, ताकि जंगमी लोग(शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) उसकी आमदनी से अपने देख-रेख कर सकें।’’ इस फ़रमान से केवल यही ता नहीं चलता कि औरंगज़ेब स्वभाव से न्यायप्रिय था, बल्कि यह भी साफ़ नज़र आता है कि वह इस तरह की जायदादों के बंटवारे में हिन्दू धार्मिक सेवकों के साथ कोई भेदभा नहीं बरता था। जंगमियों को 178 बीघा ज़मीन संभवतः स्वयं औरंगज़ेब ही ने प्रान की थी, क्योंकि एक दूसरे फ़रमान (तिथि 5 रमज़ान, 1071 हि.) में इसका स्पष्टीकरण किया गया है कि यह ज़मीन मालगुज़ारी मुक्त है। औरंगज़ेब ने एक दूसरे फरमान (1098 हि.) के द्वारा एक-दूसरी हिन्दू धार्मिक संस्था को भी जागीर प्रदान की। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘बनारस में गंगा नदी के किनारे बेनी-माधो घाट पर दो प्लाट खाली हैं एक मर्क़जी मस्जिद के किनारे रामजीवन गोसाईं के घर के सामने और दूसरा उससे पहले। ये प्लाट बैतुल-माल की मिल्कियत है। हमने यह प्लाट रामजीवन गोसाईं और उनके लड़के को ‘‘इनाम’ के रूप में प्रदान किया, ताकि उक्त प्लाटों पर बाहम्णें एवं फ़क़ीरों के लिए रिहायशी मकान बनाने के बाद वे खुदा की इबादत और हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए दूआ और प्रार्थना कने में लग जाएं। हमारे बेटों, वज़ीरों, अमीरों, उच्च पदाधिकारियों, दरोग़ा और वर्तमान एवं भावी कोतवालों के अनिवार्य है कि वे इस आदेश के पालन का ध्यान रखें और उक्त प्लाट, उपर्युक्त व्यक्ति और उसके वारिसों के क़ब्ज़े ही मे रहने दें और उनसे न कोई मालगुज़ारी या टैक्स लिया जसए और न उनसे हर साल नई सनद मांगी जाए।’’ लगता है औरंगज़ेब को अपनी प्रजा की धार्मिक भावनाओं के सम्मान का बहुत अधिक ध्यान रहता था। हमारे पास औरंगज़ेब का एक फ़रमान (2 सफ़र, 9 जुलूस) है जो असम के शह गोहाटी के उमानन्द मन्दिर के पुजारी सुदामन ब्राहम्ण के नाम है। असम के हिन्दू राजाओं की ओर से इस मन्दिर और उसके पुजारी को ज़मीन का एक टुकड़ा और कुछ जंगलों की आमदनी जागीर के रूप में दी गई थी, ताकि भोग का खर्च पूरा किया जा सके और पुजारी की आजीविका चल सके। जब यह प्रांत औरंगजेब के शासन-क्षेत्र में आया, तो उसने तुरंत ही एक फरमान के द्वारा इस जागीर को यथावत रखने का आदेश दिया। हिन्दुओं और उनके धर्म के साथ औरंगज़ेब की सहिष्ण्ता और उदारता का एक और सबूत उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर के पुजारियों से मिलता है। यह शिवजी के प्रमुख मन्दिरों में से एक है, जहां दिन-रात दीप प्रज्वलित रहता है। इसके लिए काफ़ी दिनों से पतिदिन चार सेर घी वहां की सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाथा था और पुजारी कहते हैं कि यह सिलसिला मुगल काल में भी जारी रहा। औरंगजेब ने भी इस परम्परा का सम्मान किया। इस सिलसिले में पुजारियों के पास दुर्भाग्य से कोई फ़रमान तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु एक आदेश की नक़ल ज़रूर है जो औरंगज़ब के काल में शहज़ादा मुराद बख़्श की तरफ से जारी किया गया था। (5 शव्वाल 1061 हि. को यह आदेश शहंशाह की ओर से शहज़ादा ने मन्दिर के पुजारी देव नारायण के एक आवेदन पर जारी किया था। वास्तविकता की पुष्टि के बाद इस आदेश में कहा गया हैं कि मन्दिर के दीप के लिए चबूतरा कोतवाल के तहसीलदार चार सेर (अकबरी घी प्रतिदिन के हिसाब से उपल्ब्ध कराएँ। इसकी नक़ल मूल आदेश के जारी होने के 93 साल बाद (1153 हिजरी) में मुहम्मद सअदुल्लाह ने पुनः जारी की। साधारण्तः इतिहासकार इसका बहुत उल्लेख करते हैं कि अहमदाबाद में नागर सेठ के बनवाए हुए चिन्तामणि मन्दिर को ध्वस्त किया गया, परन्तु इस वास्तविकता पर पर्दा डाल देते हैं कि उसी औरंगज़ेब ने उसी नागर सेठ के बनवाए हुए शत्रुन्जया और आबू मन्दिरों को काफ़ी बड़ी जागीरें प्रदान कीं।
(mandir dhane ki ghatna)
निःसंदेह इतिहास से यह प्रमाण्ति होता हैं कि औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर और गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद को ढा देने का आदेश दिया था, परन्तु इसका कारण कुछ और ही था। विश्वनाथ मन्दिर के सिलसिले में घटनाक्रम यह बयान किया जाता है कि जब औरंगज़ेब बंगाल जाते हुए बनारस के पास से गुज़र रहा था, तो उसके काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं ने बादशाह से निवेदन किया कि वहा। क़ाफ़िला एक दिन ठहर जाए तो उनकी रानियां बनारस जा कर गंगा दनी में स्नान कर लेंगी और विश्वनाथ जी के मन्दिर में श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर आएँगी। औरंगज़ेब ने तुरंत ही यह निवेदन स्वीकार कर लिया और क़ाफिले के पडाव से बनारस तक पांच मील के रास्ते पर फ़ौजी पहरा बैठा दिया। रानियां पालकियों में सवार होकर गईं और स्नान एवं पूजा के बाद वापस आ गईं, परन्तु एक रानी (कच्छ की महारानी) वापस नहीं आई, तो उनकी बडी तलाश हुई, लेकिन पता नहीं चल सका। जब औरंगजै़ब को मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने फ़ौज के बड़े-बड़े अफ़सरों को तलाश के लिए भेजा। आखिर में उन अफ़सरों ने देखा कि गणेश की मूर्ति जो दीवार में जड़ी हुई है, हिलती है। उन्होंने मूर्ति हटवा कर देख तो तहखाने की सीढी मिली और गुमशुदा रानी उसी में पड़ी रो रही थी। उसकी इज़्ज़त भी लूटी गई थी और उसके आभूषण भी छीन लिए गए थे। यह तहखाना विश्वनाथ जी की मूर्ति के ठीक नीचे था। राजाओं ने इस हरकत पर अपनी नाराज़गी जताई और विरोघ प्रकट किया। चूंकि यह बहुत घिनौना अपराध था, इसलिए उन्होंने कड़ी से कड़ी कार्रवाई कने की मांग की। उनकी मांग पर औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र-स्थल को अपवित्र किया जा चुका है। अतः विश्नाथ जी की मूर्ति को कहीं और लेजा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाय और महंत को मिरफतर कर लिया जाए। डाक्टर पट्ठाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है। पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा. पी. एल. गुप्ता ने भी इस घटना की पुस्टि की है।(masjid todne ki ghatna oranzeb)
गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद की घटना यह है कि वहां के राजा जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालुगज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजते थे। कुछ ही वर्षाें में यह रक़म करोड़ों की हो गई। तानाशाह न यह ख़ज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी। जब औरंज़ेब को इसका पता चला तो उसने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद गिरा दी जाए। अतः गड़ा हुआ खज़ाना निकाल कर उसे जन-कल्याण के कामों मकें ख़र्च किया गया।
ये दोनों मिसालें यह साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि औरंगज़ेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्जिद में कोई फ़र्क़ नहीं समझता था। ‘‘दर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उन लोगों को दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और पनगढंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोडने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए हैं।
साभार पुस्तक ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय,मधुर संदेश संगम, अबुल फज़्ल इन्कलेव, दिल्ली-25 औरंगज़ेब जेब

हिन्दू धर्म के अनुसार इस्लाम सच्चा धर्म अन्तिम अवतार ------- हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल.)

संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने अपने एक शोधपत्र में मुहम्मद (सल्ल.) को कल्कि अवतार बताया है। हिन्दू धर्म के अनुसार इस्लाम सच्चा धर्म है और अंतिम अवतार मुहम्मद (सल्ल.) है |

कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) की विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन करके डा. उपाध्याय ने यह सिद्ध कर दिया है कि कल्कि का अवतार हो चुका है और वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। इस शोधपत्र की भूमिका में वे लिखते हैं-



‘‘वैज्ञानिक अणु विस्पफोटों से जो सत्यानाश संभव है, उसका निराकरण धार्मिक एकता सम्बंधी विचारों से हो जाता है।



जल में रहकर मगर से बैर उचित नहीं, इस कारण मैंने वह शोध किया जो धार्मिक एकता का आधार है। राष्ट्रीय एकता के समर्थकों द्वारा इस शोधपत्र पर कोई आपत्ति नहीं होगी। आपत्ति होगी तो कूपमण्डूक लोगों को, यदि वे कूप के बाहर निकलकर संसार को देखें तो कूप को ही संसार मानने की उनकी भावना हीन हो जाएगी।’’ ....

‘‘मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस शोध पुस्तक के अवलोकन से भारतीय समाज में ही नहीं बल्कि अखिल भूमण्डल में एकता की लहर दौड़ पड़ेगी और धर्म के नाम पर होनेवाले कलह शांत होंगे।’’


अवतार का तात्पर्य



अवतार शब्द ‘अव’ उपसर्गपूर्वक ‘तृ’ धातु में ‘घज्‍ज्' प्रत्यय लगाकर बना है। इसका अर्थ पृथ्वी पर आना है।

‘ईश्वर का अवतार’ शब्द का अर्थ है-

सबको संदेश देनेवाले महात्मा का पृथ्वी पर जन्म लेना।

कल्कि अवतार को ईश्वर का अन्तिम अवतार बताया गया है।

‘ईश्वर का अवतार’ शब्द में ‘का’ शब्द सम्बंध कारक चिन्ह है, अतः ज़ाहिर है कि ईश्वर से संबद्ध व्यक्ति का अवतीर्ण होना। ईश्वर से संबद्ध कौन है? उसका भक्त ही सबसे संबद्ध हो सकता है। ऋग्वेद में ऐसे व्यक्ति को ‘कीरि’ कहा गया है। हिन्दी में ‘कीरि’ शब्द का अर्थ ‘ईश्वर का प्रशंसक’ और अरबी में ‘अहमद’ होता है।लेकिन क्या ईश्वर का प्रशंसक ‘कीरि’ या ‘अहमद’ एक नहीं हो सकता।

हर देश और समय के लिए अलग-अलग अवतार हुए हैं क्योंकि एक अवतार से पूरे विश्व का कल्याण नहीं हो सकता था। कुरआन में है कि हर भाग में रसूल (संदेशवाहक) भेजे गए। अंतिम अवतार कल्कि की अलग विशेषता है। वे किसी एक हिस्से के लिए नहीं वरन् समय विश्व के लिए भेजे गए।

जब लोग वास्तविक धर्म से विमुख होकर अधर्म की राह पकड़ लेते हैं या धर्म को अपने स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ देते हैं, तो उन्हें फिर सही मार्ग दिखाने के लिए ईश्वर अपने अवतार या पैग़म्बर भेजता है।



अंतिम अवतार के आने का लक्षण



कल्कि के अवतरित होने का समय उस माहौल में बताया गया है, जबकि बर्बरता का साम्राज्य होगा। लोगों में हिंसा व अराजकता का बोलबाला होगा। पेड़ों का न फलना, न फूलना। अगर फल-फूल आएं भी तो बहुत कम। दूसरों को मारकर उनका धन लूट लेना और लड़कियों को पैदा होते ही पृथ्वी में गाड़ देना।

एक ईश्वर को छोड़कर कई देवी-देवताओं की पूजा, पेड़-पौधों एवं पत्थरों को भगवान मानने की प्रवृत्ति, भलाई की आड़ में बुराई करने की प्रवृत्ति, असमानता आदि है।

 ऐसे ही नाजुक दौर में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) भेजे गए थे।



सातवीं शताब्दी के शुरू में रोमन और पर्सियन साम्राज्यों की जितनी बुरी अवस्था थी, उतनी शायद कभी नहीं हुई। बाइजेन्टाइन साम्राज्य के क्षीण हो जाने से सम्पूर्ण शासन नष्ट हो चुका था। पादरियों के दुष्कर्मों और दुष्टताओं के फलस्वरूप ईसाई धर्म बहुत गिर गया था। पारस्परिक संघर्षों और शत्रुता के कारण अफ़रा-तफ़री का आलम था। इस समय हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) भेजे गए। इस्लाम धर्म रोमन साम्राज्य के संघार्षों से दूर था। इस धर्म के भाग्य में यही लिखा था कि यह तूफ़ान की तरह से सम्पूर्ण पृथ्वी पर छा जाएगा और अपने समक्ष बहुत-से साम्राज्यों, शासकों और प्रथाओं को इस तरह उड़ा देगा जैसे कि आंधी मिट्टी को उड़ा देती है। ('Apology for Mohammed' b Gofrey Higgins,2)

 इसी प्रकार सेल ने कुरआन के अनुवाद की प्रस्तावना में लिखा है-

‘‘गिरजाघर के पादरियों ने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे और शांति प्रेम एवं अच्छाइयां लुप्त हो गई थीं। वे मूल धर्म को भूल गए थे। धर्म के विषय में अपने तरह-तरह के विचार बनाए हुए परस्पर कलह करते रहते थे। इसी पृथ्वी में रोमन गिरजाघरों में बहुत-सी भ्रम की बातें धर्म के रूप में मानी जाने लगीं और मूर्ती-पूजा बहुत ही निर्लज्जता से की जाने लगी। (Translation of the Qur'an, by Gorage Sale, First Tranlation/Preface on pages 25/26)’’

इसके परिणाम स्वरूप एक ईश्वर के स्थान पर तीन ईश्वर हो गए और मरयम को ईश्वर की मां समझा जाने लगा।
अज्ञानता के इस दौर में अल्लाह ने अपना अंतिम रसूल भेजा।




दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि अंतिम अवतार उस समय होगा जबकि युद्धों में तलवार का इस्तेमाल होता होगा और घोड़ों की सवारी की जाती हो।



भागवत पुराण में उल्लेख है कि ‘देवताओं द्वारा दिए गए वेगगामी घोड़े पर चढ़कर आठों ऐश्वर्यों और गुणों से युक्त जगत्पति तलवार से दुष्टों का दमन करेंगे।

(अश्वमाशुगमारुह्य देवदत्तं जगत्पतिः।

असिनासाधुदमनमष्टैश्वर्य गुणान्वितः।।)

(भागवत् पुराण, 12 स्कंध, 2 अध्याय, 19वां श्लोक)

तलवारों और घोड़ों का युग तो अब समाप्त हो चुका है। आज से लगभग चैदह सौ वर्ष पूर्व तलवारों और घोड़ों का प्रयोग होता था। उसके लगभग सौ वर्ष बाद से बारूद का निर्माण सोडा और कोयला मिलाकर होने लगा था। वर्तमान समय में तो घोड़ों और तलवारों का स्थान टैंकों और मिसाइलों आदि ने ले लिया है।’


कल्कि का अवतार-



स्थान कल्कि के अवतार का स्थान शम्भल ग्राम में होने का उल्लेख कल्कि एवं भागवत् पुराण में किया गया है। यहां पहले यह निश्चय करना आवश्यक है कि शम्भल ग्राम का नाम है या किसी ग्राम का विशलेषण। डा. वेद प्रकाश उपाध्याय के मतानुसार ‘शम्भल’ किसी ग्राम का नाम नहीं हो सकता, क्योंकि यदि केवल किसी ग्राम विशेष को ‘शम्भल’ नाम दिया गया होता तो उसकी स्थिति भी बताई गई होती। भारत में खोजने पर यदि कोई ‘शम्भल’ नामक ग्राम लिखता है तो वहां आज से लगभग चौदह सौ वर्ष पहले कोई पुरुष ऐसा नहीं पैदा हुआ जो लोगों का उद्धारक हो। फिर अंतिम अवतार कोई खेल तो नहीं है कि अवतार हो जाए और समाज में ज़रा-सा परिवर्तन भी न हो, अतः ‘शम्भल’ शब्द को विशेषण मानकर उसकी व्युत्पत्ति पर विचार करना आवश्यक है।



(1) ‘शम्भल’ शब्द ‘शम्’ (शांत करना) धातु से बना है अर्थात, जिस स्थान में शान्ति मिले।



(2) सम् उप सर्गपूर्वक ‘वृ’ धातु में अप् प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न शब्द ‘संवर’ हुआ। वबयोरभेदः और रलयोरभेदः के सिद्धांत से शम्भल शब्द की निष्पत्ति हुई, जिसका अर्थ हुआ ‘जो अपनी ओर लोगों को खींचता है या जिसके द्वारा किसी को चुना जाता है’।



(3) ‘शम्वर’ शब्द का निघण्टु (1/12/88) में उदकनामों के पाठ हैं। ‘र’ और ‘ल’ में अभेद होने के कारण शम्भल का अर्थ होगा जल का समीपवर्ती स्थान’। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ. 30)



इस प्रकार वह स्थान जिसके आसपास जल हो और वह स्थान अत्यंत आकर्षण एवं शांतिदायक हो, वही शम्भल होगा। अवतार की भूमि पवित्र होती है। ‘शम्भल’ का शाब्दिक अर्थ है- शांति का स्थान। मक्का को अरबी में ‘दारूल अमन’ कहा जाता है, जिसका अर्थ शांति का घर होता है। मक्का मुहम्मद (सल्ल.) का कार्यस्थल रहा है।



जन्म तिथि



कल्कि पुराण में अंतिम अवतार के जन्म का भी उल्लेख किया गया है। इस पुराण के द्वितीय अध्याय के श्लोक 15 में वर्णित है-

‘‘द्वादश्यां शुक्ल पक्षस्य, माधवे मासि माधवम्।

जातो ददृशतुः पुत्रं पितरौ ह्रष्टमानसौ।।

अर्थात ‘‘जिसके जन्म लेने से दुखी मानवता का कल्याण होगा, उसका जन्म मधुमास के शुक्ल पक्ष और रबी फसल में चंद्रमा की 12वीं तिथि को होगा।’’



एक अन्य श्लोक में है कि कल्कि शम्भल में विष्णुयश नामक पुरोहित के यहां जन्म लेंगे।

(शम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।

भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।)

(भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, 2 अध्याय, 18वाँ श्लोक)

मुहम्मद साहब (सल्ल.) का जन्म 12 रबीउल अव्वल को हुआ। रबीउल अव्वल का अर्थ होता हैः मधुमास का हर्षोल्लास का महीना। आप मक्का में पैदा हुए। विष्णुयशसः कल्कि के पिता का नाम है, जबकि मुहम्मद साहब के पिता का नाम अब्दुल्लाह था। जो अर्थ विष्णुयश का होता है वही अब्दुल्लाह का। विष्णु यानी अल्लाह और यश यानी बन्दा = अर्थात अल्लाह का बन्दा = अब्दुल्लाह।

इसी तरह कल्कि की माता का नाम सुमति (सोमवती) आया है जिसका अर्थ है - शांति एवं मननशील स्वभाववाली। आप (सल्ल.) की माता का नाम भी आमिना था जिसका अर्थ है शांतिवाली।



अन्तिम अवतार की विशेषताएं

कल्कि की विशेषताएं हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल.) के जीवन (सीरत) से मिलती-जुलती हैं। इन विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन यहां पेश किया जा रहा है।



1. अश्वारोही और खड्गधारी -

पहले लिखा जा चुका है कि भागवत पुराण में अंतिम अवतार के अश्वारोही और खड्गधारी होने का उल्लेख है। उसकी सवारी ऐसे घोड़े की होगी जो तेज़ गति से चलने वाला होगा और देवताओं द्वारा प्रदत्त होगा। तलवार से वह दुष्टों का संहार करेगा। घोड़े पर चढ़कर तलवार से दुष्टों का दमन करेगा। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को भी फ़रिश्तों द्वारा घोड़ा प्राप्त हुआ था, जिसका नाम बुर्राक़ था। उसपर बैठकर अंतिम रसूल ने रात्रि को तीर्थयात्रा की थी। इसे ‘मेराज’ भी कहते हैं। इस रात आपकी अल्लाह से बातचीत हुई थी और आपको बैतुलमक्‍किदस (यरूशलम) भी ले जाया गया था।मुहम्मद साहब को घोड़े अधिक प्रिय थे। आपके पास सात घोड़े थे। हज़रत अनस (रजि.) से रिवायत है कि मैंने मुहम्मद (सल्ल.) को देखा कि घोड़े पर सवार थे और गले में तलवार लटकाए हुए थे। (बुख़ारी शरीफ़ की हदीस) आपके पास नौ तलवारें थीं। कुल परम्परा से प्राप्त तलवारें जुल्फ़िक़ार नामक तलवार, क़लईया नामवाली तलवार।


2. दुष्टों का दमन -

कल्कि के प्रमुख विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है कि यह दुष्टों का ही दमन करेगा।(भागवत पुराण 12-2-19)

धर्म के प्रसार और दुष्टों के दमन में मदद के लिए देवता भी आकाश से उतर आएंगे;

(यात यूयं भुवं देवाः स्वांशावतरणे रताः।)

(कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 7)

हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने दुष्टो का दमन किया। उन्होंने डकैतों, लुटेरों और अन्य असामाजिक तत्वों को सुधारकर मानवता का पाठ पढ़ाया और उन्हें सत्य मार्ग दिखाया। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने ऐसे कुसंस्कृत लोगों का सुसंस्कृत से रहना सिखाया। औरतों को उनका हक़ दिलाया। एकेश्वर के साथ तमाम देवताओं के घालमेल का आपने ज़ोरदार खंडन किया तथा कहा कि इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है, बल्कि सनातन धर्म है। दुष्टों के दमन में आपको फ़रिश्तों की मदद मिली। कुरआन मजीद में अल्लाह कहता है कि अल्लाह ने तुमको बद्र की लड़ाई में मदद दी और तुम बहुत कम संख्या में थे, तो तुमको चाहिए कि तुम अल्लाह ही से डरो और उसी के शुक्रगुज़ार होओ। जब तुम मोमिनों से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा रब तुमको तीन हज़ार फरिश्ते भेजकर करे, बल्कि अगर उसपर सब्र करो और अल्लाह से डरते रहो, तो अल्लाह तुम्हारी मदद पांच हज़ार फ़रिश्तों से करेगा। (कुरआन, सूरा आले इमरान, आयत संख्या 123, 124 और 125)।सूरा अहज़ाब में भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को ईश्वर की मदद मिलने का उल्लेख है। इस सूरह की आयत संख्या 9 में वर्णित है कि ‘‘ऐ ईमानवालों! अल्लाह की उस कृपा का स्मरण करो, जब तुम्हारे विरूद्ध सेनाएं आईं तो हमने भी उनके विरुद्ध पवन और ऐसी सेनाएं भेजीं, जिनको तुम नहीं देखते थे, और जो कुछ तुम कर रहे थे, वह अल्लाह देख रहा था।’’

इस प्रकार दुष्टों का नाश करने में ईश्वर ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की मदद के लिए अपने फ़रिश्ते और अपनी सेनाएं भेजी।



3. जगत्पति -

पति शब्द ‘पा’ (रक्षा करना) धातु में उति ‘प्रत्यय’ के संयोग से बना है। जगह का अर्थ है संसार। अतः जगत्पति का अर्थ हुआ संसार की रक्षा करने वाला। भागवत पुराण में अंतिम अवतार कल्कि को जगत्पति भी कहा गया है। (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 19 वां श्लोक)



हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जगत्पति (संस्कृत के व्याकरणाचार्य वामन शिवराम आप्टे ने ‘‘पति’’ शब्द का अर्थ ‘‘प्रधानता करनेवाला’’ भी बताया है (देखिए, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 568, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स संस्करण 1989)। इस प्रकार जगत्पति का अर्थ हुआ: संसार में प्रधानता करनेवाला। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जिस इस्लाम धर्म को लेकर आए, वह यद्यपि मानव जीवन के आरंभ से विद्यमान था, परन्तु आप (सल्ल.) के ज़रिए इसे पूर्णता और प्रधानता प्राप्त हुई। कुरआन में अल्लाह का कथन है: ‘‘आज मैंने तुम्हारे लिए पूर्ण कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी, और तुम्हारे लिए इस्लाम को ‘‘दीन’’ (धर्म) की हैसियत से पसंद किया।’’) (5ः3)(अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने संसार में सत्य को प्रधानता दी, उसे फैलाया और लोगों को इसके लिए उभारा कि स्वयं भी सत्य का अनुसरण करें और दूसरों तक सत्य-संदेश पहुंचाएं। आप (सल्ल.) के द्वारा नेकियों और अच्छाइयों को प्रधानता मिली। अच्छे शील स्वभाव और नैतिकता की पूर्ति हुई। एक हदीस में आप (सल्ल.) ने कहा: ‘‘अल्लाह ने मुझे नैतिक गुणों और अच्छे कामों की पूर्ति के लिए भेजा है।’’) (शरहुस्सुन्नह) हैं, क्योंकि उन्होंने पतनशील समाज को बचाया। उसकी रक्षा की और संमार्ग दिखाया। आप सारे संसार के लोगों के लिए ईश्वर का संदेश लेकर आए। कुरआन में है-‘‘ऐ मुहम्मद एलान कर दो कि सारी दुनिया के लिए नबी होकर तुम आए हो।’’ (कुरआन, सूरा आराफ़, आयत संख्या 158) एक अन्य स्थान पर है-‘‘अत्यंत बरकतवाला है वह जिसने अपने बंदे पर पवित्रा ग्रन्थ कुरआन उतारा ताकि सम्पूर्ण संसार के लिए वह पापों का डर दिखानेवाला हो।’’ (कुरआन, सूरा फुरक़ान, आयत संख्या 1)



4. चार भाइयों के सहयोग से युक्त -

कल्कि पुराण के अनुसार चार भाइयों के साथ कल्कि कलि (शैतान) का निवारण करेंगे।

(चतुर्भिभ्र्रातृभिर्देव करिष्यामि कलिक्षयम्।)

(कल्कि पुराण अध्याय 2, श्लोक 5)

मुहम्मद (सल्ल.) ने भी चार साथियों के साथ शैतान का नाश किया था। ये चार साथी थे-अबू बक्र (रजि.), उमर (रजि.), उसमान (रजि.) और अली (रजि.)।



5. अंतिम अवतार -

कल्कि को अंतिम युग का अंतिम अवतार बताया है।

(भागवत पुराण के 24 अवतारों के प्रकरण में कल्कि सबसे अंतिम अवतार हैं।)

 (भा.पु. प्रथम स्कंध, तृतीय अध्याय, 25वां श्लोक)

मुहम्मद (सल्ल.) ने भी एलान किया था कि मैं अंतिम रसूल हूं।‘कल्कि’ शब्द का अर्थ ‘वाचस्पत्यम्’ तथा ‘शब्दकल्पतरु’ में अनार का फल खानेवाले तथा कलंक को धोनेवाले किया गया है। पैग़म्बर (सल्ल.) भी अनार और खजूर का फल खाते थे तथा प्राचीन काल में आगत मिश्रण (शिर्क) और नास्तिकता (कुफ्र) को धो दिया। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब पृ. 41)


6. उपदेश और उत्तर दिशा की ओर जाना -

कल्कि पैदा होने के पश्चात पहाड़ी की तरफ़ चले जाएंगे और वहां परशुराम जी से ज्ञान प्राप्त करेंगे। बाद मंे उत्तर की तरफ़ जाकर फिर लौटेंगे। मुहम्मद (सल्ल.) भी जन्म के कुछ समय बाद पहाड़ियों की तरफ़ चले गए और वहां जिबरील (अलैहि.) के ज़रिए अल्लाह का ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद वे उत्तर मदीने जाकर वहां से फिर दक्षिण लौटे और अपने को जीत लिया। पुराणों में कल्कि के बारे में ऐसा भी लिखा है।


7. आठ सिद्धियों और गुणों से युक्त -

कल्कि अवतार को भागवत पुराण 12 स्कन्ध, द्वितीय अध्याय में ‘अष्टैश्वर्यगुणान्वितः’ (आठ ईश्वरीय गुणों से युक्त) बताया गया है। ये आठ ईश्वरीय गुण महाभारत में भी उल्लेख किए गए हैं। ये गुण निम्मन हैं-

1. वह महान ज्ञानी होगा।

2. वह उच्च वंश का होगा।

3. वह आत्मनियंत्रक होगा।

4. वह श्रुतिज्ञानी होगा।

5. वह पराक्रमी होगा।

6. वह अल्पभाषी होगा।

7. वह दानी होगा और

8. वह कृतज्ञ होगा।

(अष्टौगुणा: पुरुषं दीपयन्ति, प्रज्ञा च कौल्यं च दम श्रुतंच। पराक्रमश्चा बहुभाषिता च, दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च। - महाभारत)

अब हम इन गुणों को पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल.) के गुणों से क्रमवार साम्यता करेंगे।



1- मुहम्मद (सल्ल.) महान ज्ञानी थे। उनमें प्रज्ञा दृष्टि थी।

आप (सल्ल.) ने भूत और भविष्य की अनेक बातें बताईं, जो एकदम सत्य सिद्ध हुईं।

पहले उल्लेख किया गया है कि रूमियों की हार और बाद में उनकी जीत की भविष्यवाणी मुहम्मद (सल्ल.) ने की थी।

आपकी दूरदर्शिता से संबंधित अनेक उदाहरण हैं, जो आपके उच्च ज्ञान को सिद्ध करते हैं।



2- मुहम्मद (सल्ल.) उच्च वंश में पैदा हुए। आपका जन्म 571 ई. में कुरैश की पंक्ति में हाशिम परिवार में हुआ था, जो अरब के निवासियों द्वार माननीय और काबा का परम्परागत संरक्षक था।



3- हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को इन्द्रियदमन या आत्मनियंत्राण का ईश्वरीय गुण भी प्राप्त था। आप आम्प्रशंसा से हीन, दयालु, शांत, इन्द्रियजीत और उदार थे। (Modesty and kinliness, patience, self deanial and riveted the affections off all around him, p.525, Life of Mohamed' by Sir Willaim Muir.)



4- आप श्रुतिज्ञानी भी थे। श्रुत का अर्थ है, ‘जो ईश्वर के द्वारा सुनाया गया और ऋषियों द्वारा सुना गया हो।’ मुहम्मद (सल्ल.) पर जिबरील (अलैहि.) नामक फ़रिश्ते के ज़रिए ईश्वरीय ज्ञान भेजा जाता था। लेनपूल अपनी पुस्तक ''Introduction, Speeches of Muhammad" में लिखते हैं कि मुहम्मद (सल्ल.) को देवदूत की सहायता से ईश्वरीय वाणी का भेजा जाना निस्संदेह सत्य है। सर विलियम म्योर ने भी लिखा है कि वे सन्देष्टा और ईश्वर के प्रतिनिधि थे। (He was now the Servant, the Prophet, the vice gerent of God.)



5- रसूलुल्लाह (सल्ल.) काफ़ी पराक्रमी भी थे।

आपके पराक्रम को दर्शाते हुए डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने एक घटना का ज़िक्र किया है जो इस प्रकार है-



‘किसी गुफा में अकेले उपस्थित पहलवान, जो कुरैश से सम्बंधित था, से मुहम्मद (सल्ल.) ने ईश्वर से न डरने और ईश्वर पर विश्वास ने करने का कारण पूछा, जिसपर पहलवान ने सत्य की स्पष्टता के लिए कहा। तब मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि तू बड़ा वीर है, यदि कुश्ती में मैं तुझे नीच दिखाऊँ तो क्या विश्वास करेगा? उसेन स्वीकारात्मक उत्तर दिया। तब हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने उसे हरा दिया। (अल्लामा क़ाज़ी सलमान मंसूरपुरी ने अपनी सीरत की किताब ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ में ‘‘शिफ़ा’’ नामक पुस्तक के पृष्ठ 64 के हवाले से लिखा है कि आप (सल्ल.) ने उसे तीन बार हराया, फिर भी उस पहलवान ने मुहम्मद (सल्ल.) को पैग़म्बर न माना तथा ईश्वर की सत्यता पर विश्वास ने किया।



6- अल्लाह के रसूल (सल्ल.) कम बोलते थे। अधिकतर मौन रहते परन्तु जो कुछ बोलते थे, वह इतना प्रभावोत्पादक होता था कि लोग आपकी बातें नहीं भूलते थे। (Introduction The speeches of Mohammad by Lane-Pool page-24)



7- दान देना महापुरुषों का एक प्रमुख गुण रहा है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) दान देने से पीछे नहीं हटते। यही कारण था कि आपके घर पर ग़रीबों की भीड़ लगी रहती थी। आपके घर से कभी कोई निराश होकर नहीं लौटा।



8- मुहम्मद (सल्ल.) के गुणों में कृतज्ञता भी थी। वे किसी के उपकार को नहीं भूलते। अनसार के प्रति कहे गए वाक्य आपकी कृतज्ञता का प्रमाण पेश करते हैं। (असह उस सियर, पृ. 343) इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि मुहम्मद (सल्ल.) में आठों ईश्वरीय गुणों का समावेश था।





8. शरीर से सुगन्ध का निकलना -

भागवत पुराण में भविष्यवाणी की गई है कल्कि के शरीर से ऐसी सुगंध निकलेगी, जिससे लोगों के मन निर्मल हो जाएंगे। उनके शरीर की सुगंध हवा में मिलकर लोगों के मन को निर्मल करेगी।

(अथ तेषां भविष्यन्ति मनांसि विशदानि वै।

 वासु देवांगरागति पुण्यगन्धानिल स्पृशाम्।)

 (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 21वां श्लोक)

शिमायल तिरमिज़ी में लिखा है कि मुहम्मद (सल्ल.) के शरीर की खुशबू तो प्रसिद्ध ही है। मुहम्मद (सल्ल.) जिससे हाथ मिलाते थे, उसके हाथ से दिनभर सुगन्ध आती रहती थी। (पृष्ठ 208, शिमाएल तिरमिज़ी, अनुवाद: मौलाना मुहम्मद ज़करिया)

एक बार उम्मे सुलैत ने मुहम्मद (सल्ल.) के शरीर का पसीना एकत्रा किया। आप (सल्ल.) के पूछने पर उन्होंने बताया कि इसे हम खुशबूओं में मिलाते हैं क्योंकि यह सभी सुगन्ध से बढ़कर है।



9. अनुपम कान्ति से युक्त -

कल्कि अनुपम कान्ति से युक्त होंगे।

 (विचरन्नाशुना क्षोण्यां हयेनाप्रतिमद्युतिः।

नृपलिंगच्छदो दस्यून्कोटिशोनिहनिष्यति।।)

(भा.पु., द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 20वां श्लोक)

बुख़ारी शरीफ़ की हदीस के मुताबिक़ मुहम्मद (सल्ल.) सभी व्यक्तियों में अधिक सुंदर थे और सभी मनुष्यों में अधिक आदर्शवान एवं योद्धा थे। (हज़रत अनस (रजि.) की रिवायत, जमउल फ़वायद, पेज 178) सर विलियम म्योर ने भी मुहम्मद (सल्ल.) को बहुत सुंदर स्वरूपवाला, पराक्रमी और दीनी बताया है। ('e was' says and admiring follwen, the handsomest and bravest, the bright faced and most generous of men, P. 523, The Life of Mohammad')



10. ईश्वरीय वाणी का उपदेष्टा -

डा. वेद प्रकाश उपध्याय ‘कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब’ के पृष्ठ 50, 51 पृष्ठ पर लिखते हैं कि ‘कल्कि के विषय में यह बात भारत में प्रसिद्ध ही है कि वह जो धर्म स्थापित करेंगे वह वैदिक धर्म होगा और उनके द्वारा उपदिष्ट शिक्षाएं ईश्वरीय शिक्षाएं होगी। मुहम्मद (सल्ल.) के द्वारा अभिव्यक्त कुरआन ईश्वरीय वाणी है, यह तो स्पष्ट ही है, भले ही हठी लोग इस बात को न मानें। क़ुरआन में जो नीति, सदाचार, प्रेम, उपकार आदि करने के लिए प्रेरणा के स्रोत विद्यमान हैं, वही वेद में भी है। कुरआन में मूर्ति पूजा भी खण्डन, एकेश्वरवाद (तौहीद) की शिक्षा, परस्पर प्रेम के व्यवहार का उपदेश है। वेद में ‘एकम् सत्’ तथा विश्वबन्धुत्व की उत्कृष्ट घोषणा है। वेदों में ईश्वर की भक्ति का आदेश है और कुरआन की शिक्षा के द्वारा मुसलमान दिन में पाँच बार नमाज़ अवश्य पढ़ते हैं, जबकि ब्राह्मण वर्ग में बिरले लोग ही त्रिकाल संध्या करनेवाले मिलेंगे।यहाँ यह तथ्य उजागर करना उचित होगा कि वेदों और कुरआन की शिक्षाओं में भी बहुत कुछ समानता है। मिसाल के तौर पर वेद, गीता और स्मृतियों में एक ईश्वर की भक्ति करने का आदेश है और अपनी की हुई बुराइयों की क्षमा माँगने के लिए भी उसी ईश्वर से प्रार्थना करने का आदेश है।

क़ुरआन में है:

‘‘ऐ नबी! कह दो, मैं तो केवल तुम्हारे जैसा एक मनुष्य हूं। मेरी ओर वह्य (प्रकाशना) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य अकेला पूज्य है, तो तुम सीधे उसी की ओर मुख करो और क्षमा भी उसी से माँगो। (हा. मीम. अस सजदा आयत संख्या 6।) डा. उपाध्याय कहते हैं कि कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) के विषय में जो अभूतपूर्व साम्य मुझे मिला उसे देखकर आश्चर्य होता है कि जिन कल्कि की प्रतीक्षा में भारतीय बैठे हैं, वे आ गए और वही मुहम्मद साहब हैं। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ. 59)





उपनिषद् में भी मुहम्मद (सल्ल.) की चर्चा

-उपनिषदों में भी मुहम्मद साहब और इस्लाम के बारे में जहाँ-तहाँ उल्लेख मिलता है। नागेंद्र नाथ बसु द्वारा संपादित विश्वकोष के द्वितीय खण्ड में उपनिषदों के वे श्लोक दिए गए हैं, जो इस्लाम और पैग़म्बर (सल्ल.) से ताल्लुक़ रखते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख श्लोक और उनके अर्थ प्रस्तुत किए जा रहे हैं ताकि पाठकों वास्तविकता का पता चल सके-



अस्माल्लां इल्ले मित्रावरुणा दिव्यानि धत्त

इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्दुदः।

हयामित्रो इल्लां इल्लां वरुणो मित्रास्तेजस्कामः ।। 1 ।।

होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्राः

।अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्ण बह्माणं अल्लाम् ।। 2 ।।

अल्लो रसूल महामद रकबरस्य अल्लो अल्लाम् ।। 3 ।।(अल्लोपनिषद 1, 2, 3)

अर्थात, ‘‘इस देवता का नाम अल्लाह है। वह एक है। मित्रा वरुण आदि उसकी विशेषताएँ हैं। वास्तव में अल्लाह वरुण है जो तमाम सृष्टि का बादशाह है। मित्रो! उस अल्लाह को अपना पूज्य समझो। यह वरुण है और एक दोस्त की तरह वह तमाम लोगों के काम संवारता है। वह इंद्र है, श्रेष्ठ इंद्र। अल्लाह सबसे बड़ा, सबसे बेहतर, सबसे ज़्यादा पूर्ण और सबसे ज़्यादा पवित्रा है। मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के श्रेष्ठतर रसूल हैं। अल्लाह आदि, अंत और सारे संसार का पालनहार है। तमाम अच्छे काम अल्लाह के लिए ही हैं। वास्तव में अल्लाह ही ने सूरज, चांद और सितारे पैदा किए हैं।’’

उपयुक्त उद्धरणों से यह निर्विवाद रूप से स्पष्ट हुआ कि सर्वशक्तिमान अल्लाह एक है और मुहम्मद (सल्ल.) उसके सन्देशवाहक (पैग़म्बर) हैं। इस उपनिषद के अन्य श्लोकों में भी इस्लाम और मुहम्मद (सल्ल.) की साम्यगत बातें आई हैं। इस उपनिषद में आगे कहा गया है-



आदल्ला बूक मेककम्। अल्लबूक निखादकम् ।। 4 ।।

अलो यज्ञेन हुत हुत्वा अल्ला सूय्र्य चन्द्र सर्वनक्षत्राः ।। 5 ।।

अल्लो ऋषीणां सर्व दिव्यां इन्द्राय पूर्व माया परमन्तरिक्षा ।। 6 ।।

अल्लः पृथिव्या अन्तरिक्ष्ज्ञं विश्वरूपम् ।। 7 ।।

इल्लांकबर इल्लांकबर इल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लाः ।। 8 ।।

ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादि स्वरूपाय अथर्वण श्यामा हुद्दी जनान पशून सिद्धांतजलवरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट ।। 9 ।।

असुरसंहारिणी हृं द्दीं अल्लो रसूल महमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्इल्लल्लेति इल्लल्ला ।। 10 ।।

इति अल्लोपनिषद

अर्थात् ‘‘अल्लाह ने सब ऋषि भेजे और चंद्रमा, सूर्य एवं तारों को पैदा किया। उसी ने सारे ऋषि भेजे और आकाश को पैदा किया। अल्लाह ने ब्रह्माण्ड (ज़मीन और आकाश) को बनाया। अल्लाह श्रेष्ठ है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह सारे विश्व का पालनहार है। वह तमाम बुराइयों और मुसीबतों को दूर करने वाला है। मुहम्मद अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) हैं, जो इस संसार का पालनहार है। अतः घोषणा करो कि अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।’’ (बहुत थोड़े से विद्वान, जिनका संबंध विशेष रूप से आर्यसमाज से बताया जाता है, अल्लोपनिषद् की गणना उपनिषदों में नहीं करते और इस प्रकार इसका इनकार करते हैं, हालांकि उनके तर्कों में दम नहीं है। इस कारण से भी हिन्दू धर्म के अधिकतर विद्वान और मनीषी अपवादियों के आग्रह पर ध्यान नहीं देते। गीता प्रेस (गोरखपुर) का नाम हिन्दू धर्म के प्रमाणिक प्रकाशन केंद्र के रूप में अग्रगण्य है। यहां से प्रकाशित ‘‘कल्याण’’ (हिन्दी पत्रिका) के अंक अत्यंत प्रामाणिक माने जाते हैं। इसकी विशेष प्रस्तुति ‘‘उपनिषद अंक’’ में 220 उपनिषदों की सूची दी गई है, जिसमें अल्लोपनिषद् का उल्लेख 15वें नंबर पर किया गया है। 14वें नंबर पर अमत बिन्दूपनिषद् और 16वें नंबर पर अवधूतोपनिषद् (पद्य) उल्लिखित है।



डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने भी अल्लोपनिषद को प्रामाणिक उपनिषद् माना है। ‘देखिए: वैदिक साहित्य: एक विवेचन, प्रदीप प्रकाशन, पृ. 101, संस्करण 1989।)


प्राणनाथी (प्रणामी) सम्प्रदाय की शिक्षा

हिन्दुओं के वैष्णव समुदाय में प्राणनाथी सम्प्रदाय उल्लेखनीय है। इसके संस्थापक एंव प्रवर्तक महामति प्राणनाथ थे। आपका जन्म का नाम मेहराज ठाकुर था। प्राणनाथ जी का जन्म 1618 ई. में गुजरात के जामनगर शहर में हुआ था। आपने इन्सानों को एकेश्वरवाद की शिक्षा दी और एक ही निराकार ईश्वर की पूजा-उपासना पर बल दिया। आपने नुबूव्वत अर्थात ईशदूतत्व की धारणा का समर्थन किया और इसे सही ठहराया। प्राणनाथ जी कहते हैं-

कै बड़े कहे पैगमंर, पर एक महमंद पर खतम।

अर्थात, धर्मग्रंथों में अनेकों पैग़म्बर बड़े कहे गए, किन्तु मुहम्मद साहब पर ईशदूतों की श्रृंखला समाप्त हुई। रसूल मुहम्मद (सल्ल.) आख़िरी पैग़म्बर हुए। (मारफ़त सागर, पृ. 39, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।)

प्राणनाथ जी ने एक स्थान पर लिखा-

रसूल आवेगा तुम पर, ले मेरा फुरमान।आए मेर अरस की, देखी सब पेहेचान।।अर्थात, (ईश्वर ने कहाः) मेरा रसूल मुहम्मद तुम्हारे पास मेरा संदेश लेकर आएगा। वह संसार में आकर तुम्हें मेरे अर्श या परमधाम की सब तरह से पहचान कराने के लिए कुछ संकेत देगा। (मारफ़त सागर, पृ. 19, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।)

अधिक जानकारी के लिये पढें पुस्‍तकः

"नराशंस और अंतिम ऋष‍ि" (ए‍ेतिहासकि शोध) --- डॉ. वेदप्रकाश उपाध्‍याय

कल्कि अवतार और मुहम्‍मद सल्ल. --- डॉ. वेदप्रकाश उपाध्‍याय


With Regards and special Thanks to my near and DearAftab Fazil

कल्कि का अवतार - हज़रत मुहम्मद (सल्ल.)

संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने अपने एक शोधपत्र में मुहम्मद (सल्ल.) को कल्कि अवतार बताया है।
कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) की विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन करके डा. उपाध्याय ने यह सिद्ध कर दिया है कि कल्कि का अवतार हो चुका है और वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। इस शोधपत्र की भूमिका में वे लिखते हैं-
‘‘वैज्ञानिक अणु विस्पफोटों से जो सत्यानाश संभव है, उसका निराकरण धार्मिक एकता सम्बंधी विचारों से हो जाता है।
जल में रहकर मगर से बैर उचित नहीं, इस कारण मैंने वह शोध किया जो धार्मिक एकता का आधार है। राष्ट्रीय एकता के समर्थकों द्वारा इस शोधपत्र पर कोई आपत्ति नहीं होगी। आपत्ति होगी तो कूपमण्डूक लोगों को, यदि वे कूप के बाहर निकलकर संसार को देखें तो कूप को ही संसार मानने की उनकी भावना हीन हो जाएगी।’’ ....
‘‘मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस शोध पुस्तक के अवलोकन से भारतीय समाज में ही नहीं बल्कि अखिल भूमण्डल में एकता की लहर दौड़ पड़ेगी और धर्म के नाम पर होनेवाले कलह शांत होंगे।’’
अवतार का तात्पर्य
अवतार शब्द ‘अव’ उपसर्गपूर्वक ‘तृ’ धातु में ‘घज्‍ज्' प्रत्यय लगाकर बना है। इसका अर्थ पृथ्वी पर आना है।
‘ईश्वर का अवतार’ शब्द का अर्थ है-
सबको संदेश देनेवाले महात्मा का पृथ्वी पर जन्म लेना।
कल्कि   अवतार को ईश्वर का अन्तिम अवतार बताया गया है।
‘ईश्वर का अवतार’ शब्द में ‘का’ शब्द सम्बंध कारक चिन्ह है, अतः ज़ाहिर है कि  ईश्वर से संबद्ध व्यक्ति  का अवतीर्ण होना। ईश्वर से संबद्ध कौन है? उसका भक्त ही सबसे संबद्ध हो सकता है। ऋग्वेद में ऐसे व्यक्ति को ‘कीरि’ कहा गया है। हिन्दी में ‘कीरि’ शब्द का अर्थ ‘ईश्वर का प्रशंसक’ और अरबी में ‘अहमद’ होता है।लेकिन क्या ईश्वर का प्रशंसक ‘कीरि’ या ‘अहमद’ एक नहीं हो सकता।
हर देश और समय के लिए अलग-अलग अवतार हुए हैं क्योंकि एक अवतार से पूरे विश्व का कल्याण नहीं हो सकता था। कुरआन में है कि हर भाग में रसूल (संदेशवाहक) भेजे गए। अंतिम अवतार कल्कि की अलग विशेषता है। वे किसी एक हिस्से के लिए नहीं वरन् समय विश्व के लिए भेजे गए।
जब लोग वास्तविक धर्म से विमुख होकर अधर्म की राह पकड़ लेते हैं या धर्म को अपने स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ देते हैं, तो उन्हें फिर सही मार्ग दिखाने के लिए ईश्वर अपने अवतार या पैग़म्बर भेजता है।
अंतिम अवतार के आने का लक्षण
कल्कि  के अवतरित होने का समय उस माहौल में बताया गया है, जबकि बर्बरता का साम्राज्य होगा। लोगों में हिंसा व अराजकता का बोलबाला होगा। पेड़ों का न फलना, न फूलना। अगर फल-फूल आएं भी तो बहुत कम। दूसरों को मारकर उनका धन लूट लेना और लड़कियों को पैदा होते ही पृथ्वी में गाड़ देना।
एक ईश्वर को छोड़कर कई देवी-देवताओं की पूजा, पेड़-पौधों एवं पत्थरों को भगवान मानने की प्रवृत्ति, भलाई की आड़ में बुराई करने की प्रवृत्ति, असमानता आदि है।
 ऐसे ही नाजुक दौर में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) भेजे गए थे।
सातवीं शताब्दी के शुरू में रोमन और पर्सियन  साम्राज्यों  की जितनी बुरी अवस्था थी, उतनी शायद कभी नहीं हुई। बाइजेन्टाइन साम्राज्य के क्षीण हो जाने से सम्पूर्ण शासन नष्ट हो चुका था। पादरियों के दुष्कर्मों और दुष्टताओं के फलस्वरूप ईसाई धर्म बहुत गिर गया था। पारस्परिक संघर्षों और शत्रुता के कारण अफ़रा-तफ़री का आलम था। इस समय हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) भेजे गए। इस्लाम धर्म रोमन साम्राज्य के संघार्षों से दूर था। इस धर्म के भाग्य में यही लिखा था कि यह तूफ़ान की तरह से सम्पूर्ण पृथ्वी पर छा जाएगा और अपने समक्ष बहुत-से साम्राज्यों, शासकों और प्रथाओं को इस तरह उड़ा देगा जैसे कि आंधी मिट्टी को उड़ा देती है। ('Apology for Mohammed' b Gofrey Higgins,2)
 इसी प्रकार सेल ने कुरआन के अनुवाद की प्रस्तावना में लिखा है-
‘‘गिरजाघर के पादरियों ने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे और शांति प्रेम एवं अच्छाइयां लुप्त हो गई थीं। वे मूल धर्म को भूल गए थे। धर्म के विषय में अपने तरह-तरह के विचार बनाए हुए परस्पर कलह करते रहते थे। इसी पृथ्वी में रोमन गिरजाघरों में बहुत-सी भ्रम की बातें धर्म के रूप में मानी जाने लगीं और मूर्ती-पूजा बहुत ही निर्लज्जता से की जाने लगी। (Translation of the Qur'an, by Gorage Sale, First Tranlation/Preface on pages 25/26)’’
इसके परिणाम स्वरूप एक ईश्वर के स्थान पर तीन ईश्वर हो गए और मरयम को ईश्वर की मां समझा जाने लगा। अज्ञानता के इस दौर में अल्लाह ने अपना अंतिम रसूल भेजा।
दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि अंतिम अवतार उस समय होगा जबकि युद्धों में तलवार का इस्तेमाल होता होगा और घोड़ों की सवारी की जाती हो।
भागवत पुराण में उल्लेख है कि ‘देवताओं द्वारा दिए गए वेगगामी घोड़े पर चढ़कर आठों ऐश्वर्यों और गुणों से युक्त जगत्पति तलवार से दुष्टों का दमन करेंगे।
(अश्वमाशुगमारुह्य देवदत्तं जगत्पतिः।
असिनासाधुदमनमष्टैश्वर्य गुणान्वितः।।)
(भागवत् पुराण, 12 स्कंध, 2 अध्याय, 19वां श्लोक)

तलवारों और घोड़ों का युग तो अब समाप्त हो चुका है। आज से लगभग चैदह सौ वर्ष पूर्व तलवारों और घोड़ों का प्रयोग होता था। उसके लगभग सौ वर्ष बाद से बारूद का निर्माण सोडा और कोयला मिलाकर होने लगा था। वर्तमान समय में तो घोड़ों और तलवारों का स्थान टैंकों और मिसाइलों आदि ने ले लिया है।’
कल्कि का अवतार-
स्थान कल्कि के अवतार का स्थान शम्भल ग्राम में होने का उल्लेख कल्कि एवं भागवत् पुराण में किया गया है। यहां पहले यह निश्चय करना आवश्यक है कि शम्भल ग्राम का नाम है या किसी ग्राम का विशलेषण। डा. वेद प्रकाश उपाध्याय के मतानुसार ‘शम्भल’ किसी ग्राम का नाम नहीं हो सकता, क्योंकि यदि केवल किसी ग्राम विशेष को ‘शम्भल’ नाम दिया गया होता तो उसकी स्थिति भी बताई गई होती। भारत में खोजने पर यदि कोई ‘शम्भल’ नामक ग्राम लिखता है तो वहां आज से लगभग चौदह सौ वर्ष पहले कोई पुरुष ऐसा नहीं पैदा हुआ जो लोगों का उद्धारक हो। फिर अंतिम अवतार कोई खेल तो नहीं है कि अवतार हो जाए और समाज में ज़रा-सा परिवर्तन भी न हो, अतः ‘शम्भल’ शब्द को विशेषण मानकर उसकी व्युत्पत्ति पर विचार करना आवश्यक है।
(1) ‘शम्भल’ शब्द ‘शम्’ (शांत करना) धातु से बना है अर्थात, जिस स्थान में शान्ति मिले।
(2) सम् उप सर्गपूर्वक ‘वृ’ धातु में अप् प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न शब्द ‘संवर’ हुआ। वबयोरभेदः और रलयोरभेदः के सिद्धांत से शम्भल शब्द की निष्पत्ति हुई, जिसका अर्थ हुआ ‘जो अपनी ओर लोगों को खींचता है या जिसके द्वारा किसी को चुना जाता है’।
(3) ‘शम्वर’ शब्द का निघण्टु (1/12/88) में उदकनामों के पाठ हैं। ‘र’ और ‘ल’ में अभेद होने के कारण शम्भल का अर्थ होगा जल का समीपवर्ती स्थान’। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ. 30)
इस प्रकार वह स्थान जिसके आसपास जल हो और वह स्थान अत्यंत आकर्षण एवं शांतिदायक हो, वही शम्भल होगा। अवतार की भूमि पवित्र होती है। ‘शम्भल’ का शाब्दिक अर्थ है- शांति का स्थान। मक्का को अरबी में ‘दारूल अमन’ कहा जाता है, जिसका अर्थ शांति का घर होता है। मक्का मुहम्मद (सल्ल.) का कार्यस्थल रहा है।
जन्म तिथि
कल्कि पुराण में अंतिम अवतार के जन्म का भी उल्लेख किया गया है। इस पुराण के द्वितीय अध्याय के श्लोक 15 में वर्णित है-‘द्वादश्यां शुक्ल पक्षस्य, माधवे मासि माधवम्।
जातो ददृशतुः पुत्रं पितरौ ह्रष्टमानसौ।।

अर्थात ‘‘जिसके जन्म लेने से दुखी मानवता का कल्याण होगा, उसका जन्म मधुमास के शुक्ल पक्ष और रबी फसल में चंद्रमा की 12वीं तिथि को होगा।’’
एक अन्य श्लोक में है कि कल्कि शम्भल में विष्णुयश नामक पुरोहित के यहां जन्म लेंगे।
(शम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।
भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।)

(भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, 2 अध्याय, 18वाँ श्लोक)

मुहम्मद साहब (सल्ल.) का जन्म 12 रबीउल अव्वल को हुआ। रबीउल अव्वल का अर्थ होता हैः मधुमास का हर्षोल्लास का महीना। आप मक्का में पैदा हुए। विष्णुयशसः कल्कि के पिता का नाम है, जबकि मुहम्मद साहब के पिता का नाम अब्दुल्लाह था। जो अर्थ विष्णुयश का होता है वही अब्दुल्लाह का। विष्णु यानी अल्लाह और यश यानी बन्दा = अर्थात अल्लाह का बन्दा = अब्दुल्लाह।
इसी तरह कल्कि की माता का नाम सुमति (सोमवती) आया है जिसका अर्थ है - शांति एवं मननशील स्वभाववाली। आप (सल्ल.) की माता का नाम भी आमिना था जिसका अर्थ है शांतिवाली।
अन्तिम अवतार की विशेषताएंकल्कि की विशेषताएं हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल.) के जीवन (सीरत) से मिलती-जुलती हैं। इन विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन यहां पेश किया जा रहा है।
1. अश्वारोही और खड्गधारी -
पहले लिखा जा चुका है कि भागवत पुराण में अंतिम अवतार के अश्वारोही और खड्गधारी होने का उल्लेख है। उसकी सवारी ऐसे घोड़े की होगी जो तेज़ गति से चलने वाला होगा और देवताओं द्वारा प्रदत्त होगा। तलवार से वह दुष्टों का संहार करेगा। घोड़े पर चढ़कर तलवार से दुष्टों का दमन करेगा। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को भी फ़रिश्तों द्वारा घोड़ा प्राप्त हुआ था, जिसका नाम बुर्राक़ था। उसपर बैठकर अंतिम रसूल ने रात्रि को तीर्थयात्रा की थी। इसे ‘मेराज’ भी कहते हैं। इस रात आपकी अल्लाह से बातचीत हुई थी और आपको बैतुलमक्‍किदस (यरूशलम) भी ले जाया गया था।मुहम्मद साहब को घोड़े अधिक प्रिय थे। आपके पास सात घोड़े थे। हज़रत अनस (रजि.) से रिवायत है कि मैंने मुहम्मद (सल्ल.) को देखा कि घोड़े पर सवार थे और गले में तलवार लटकाए हुए थे। (बुख़ारी शरीफ़ की हदीस) आपके पास नौ तलवारें थीं। कुल परम्परा से प्राप्त तलवारें जुल्फ़िक़ार नामक तलवार, क़लईया नामवाली तलवार।
2. दुष्टों का दमन -
कल्कि के प्रमुख विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है कि यह दुष्टों का ही दमन करेगा।(भागवत पुराण 12-2-19)धर्म के प्रसार और दुष्टों के दमन में मदद के लिए देवता भी आकाश से उतर आएंगे; (यात यूयं भुवं देवाः स्वांशावतरणे रताः।)
(कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 7) 
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने दुष्टो का दमन किया। उन्होंने डकैतों, लुटेरों और अन्य असामाजिक तत्वों को सुधारकर मानवता का पाठ पढ़ाया और उन्हें सत्य मार्ग दिखाया। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने ऐसे कुसंस्कृत लोगों का सुसंस्कृत से रहना सिखाया। औरतों को उनका हक़ दिलाया। एकेश्वर के साथ तमाम देवताओं के घालमेल का आपने ज़ोरदार खंडन किया तथा कहा कि इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है, बल्कि सनातन धर्म है। दुष्टों के दमन में आपको फ़रिश्तों की मदद मिली। कुरआन मजीद में अल्लाह कहता है कि अल्लाह ने तुमको बद्र की लड़ाई में मदद दी और तुम बहुत कम संख्या में थे, तो तुमको चाहिए कि तुम अल्लाह ही से डरो और उसी के शुक्रगुज़ार होओ। जब तुम मोमिनों से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा रब तुमको तीन हज़ार फरिश्ते भेजकर करे, बल्कि अगर उसपर सब्र करो और अल्लाह से डरते रहो, तो अल्लाह तुम्हारी मदद पांच हज़ार फ़रिश्तों से करेगा। (कुरआन, सूरा आले इमरान, आयत संख्या 123, 124 और 125)।सूरा अहज़ाब में भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को ईश्वर की मदद मिलने का उल्लेख है। इस सूरह की आयत संख्या 9 में वर्णित है कि ‘‘ऐ ईमानवालों! अल्लाह की उस कृपा का स्मरण करो, जब तुम्हारे विरूद्ध सेनाएं आईं तो हमने भी उनके विरुद्ध पवन और ऐसी सेनाएं भेजीं, जिनको तुम नहीं देखते थे, और जो कुछ तुम कर रहे थे, वह अल्लाह देख रहा था।’’
इस प्रकार दुष्टों का नाश करने में ईश्वर ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की मदद के लिए अपने फ़रिश्ते और अपनी सेनाएं भेजी।
3. जगत्पति - पति शब्द ‘पा’ (रक्षा करना) धातु में उति ‘प्रत्यय’ के संयोग से बना है। जगह का अर्थ है संसार। अतः जगत्पति का अर्थ हुआ संसार की रक्षा करने वाला। भागवत पुराण में अंतिम अवतार कल्कि को जगत्पति भी कहा गया है। (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 19 वां श्लोक)
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जगत्पति (संस्कृत के व्याकरणाचार्य वामन शिवराम आप्टे ने ‘‘पति’’ शब्द का अर्थ ‘‘प्रधानता करनेवाला’’ भी बताया है (देखिए, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 568, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स संस्करण 1989)। इस प्रकार जगत्पति का अर्थ हुआ: संसार में प्रधानता करनेवाला। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जिस इस्लाम धर्म को लेकर आए, वह यद्यपि मानव जीवन के आरंभ से विद्यमान था, परन्तु आप (सल्ल.) के ज़रिए इसे पूर्णता और प्रधानता प्राप्त हुई। कुरआन में अल्लाह का कथन है: ‘‘आज मैंने तुम्हारे लिए पूर्ण कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी, और तुम्हारे लिए इस्लाम को ‘‘दीन’’ (धर्म) की हैसियत से पसंद किया।’’) (5ः3)(अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने संसार में सत्य को प्रधानता दी, उसे फैलाया और लोगों को इसके लिए उभारा कि स्वयं भी सत्य का अनुसरण करें और दूसरों तक सत्य-संदेश पहुंचाएं। आप (सल्ल.) के द्वारा नेकियों और अच्छाइयों को प्रधानता मिली। अच्छे शील स्वभाव और नैतिकता की पूर्ति हुई। एक हदीस में आप (सल्ल.) ने कहा: ‘‘अल्लाह ने मुझे नैतिक गुणों और अच्छे कामों की पूर्ति के लिए भेजा है।’’)  
(शरहुस्सुन्नह) हैं, क्योंकि उन्होंने पतनशील समाज को बचाया। उसकी रक्षा की और संमार्ग दिखाया। आप सारे संसार के लोगों के लिए ईश्वर का संदेश लेकर आए। कुरआन में है-‘‘ऐ मुहम्मद एलान कर दो कि सारी दुनिया के लिए नबी होकर तुम आए हो।’’ (कुरआन, सूरा आराफ़, आयत संख्या 158) एक अन्य स्थान पर है-‘‘अत्यंत बरकतवाला है वह जिसने अपने बंदे पर पवित्रा ग्रन्थ कुरआन उतारा ताकि सम्पूर्ण संसार के लिए वह पापों का डर दिखानेवाला हो।’’ (कुरआन, सूरा फुरक़ान, आयत संख्या 1)
4. चार भाइयों के सहयोग से युक्त - कल्कि पुराण के अनुसार चार भाइयों के साथ कल्कि कलि (शैतान) का निवारण करेंगे। (चतुर्भिभ्र्रातृभिर्देव करिष्यामि कलिक्षयम्।)
(कल्कि पुराण अध्याय 2, श्लोक 5)
मुहम्मद (सल्ल.) ने भी चार साथियों के साथ शैतान का नाश किया था। ये चार साथी थे-अबू बक्र (रजि.), उमर (रजि.), उसमान (रजि.) और अली (रजि.)।
5. अंतिम अवतार -कल्कि को अंतिम युग का अंतिम अवतार बताया है।
(भागवत पुराण के 24 अवतारों के प्रकरण में कल्कि सबसे अंतिम अवतार हैं।)
 (भा.पु. प्रथम स्कंध, तृतीय अध्याय, 25वां श्लोक)
मुहम्मद (सल्ल.) ने भी एलान किया था कि मैं अंतिम रसूल हूं।‘कल्कि’ शब्द का अर्थ ‘वाचस्पत्यम्’ तथा ‘शब्दकल्पतरु’ में अनार का फल खानेवाले तथा कलंक को धोनेवाले किया गया है। पैग़म्बर (सल्ल.) भी अनार और खजूर का फल खाते थे तथा प्राचीन काल में आगत मिश्रण (शिर्क) और नास्तिकता (कुफ्र) को धो दिया। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब पृ. 41)
6. उपदेश और उत्तर दिशा की ओर जाना -
कल्कि पैदा होने के पश्चात पहाड़ी की तरफ़ चले जाएंगे और वहां परशुराम जी से ज्ञान प्राप्त करेंगे। बाद मंे उत्तर की तरफ़ जाकर फिर लौटेंगे। मुहम्मद (सल्ल.) भी जन्म के कुछ समय बाद पहाड़ियों की तरफ़ चले गए और वहां जिबरील (अलैहि.) के ज़रिए अल्लाह का ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद वे उत्तर मदीने जाकर वहां से फिर दक्षिण लौटे और अपने को जीत लिया। पुराणों में कल्कि के बारे में ऐसा भी लिखा है।
7. आठ सिद्धियों और गुणों से युक्त -
कल्कि अवतार को भागवत पुराण 12 स्कन्ध, द्वितीय अध्याय में ‘अष्टैश्वर्यगुणान्वितः’ (आठ ईश्वरीय गुणों से युक्त) बताया गया है। ये आठ ईश्वरीय गुण महाभारत में भी उल्लेख किए गए हैं। ये गुण निम्मन हैं-
1. वह महान ज्ञानी होगा।
2. वह उच्च वंश का होगा।
3. वह आत्मनियंत्रक होगा।
4. वह श्रुतिज्ञानी होगा।
5. वह पराक्रमी होगा।
6. वह अल्पभाषी होगा।
7. वह दानी होगा और
8. वह कृतज्ञ होगा।
(अष्टौगुणा: पुरुषं दीपयन्ति, प्रज्ञा च कौल्यं च दम श्रुतंच। पराक्रमश्चा बहुभाषिता च, दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च। - महाभारत)अब हम इन गुणों को पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल.) के गुणों से क्रमवार साम्यता करेंगे।
1- मुहम्मद (सल्ल.) महान ज्ञानी थे। उनमें प्रज्ञा दृष्टि थी।
आप (सल्ल.) ने भूत और भविष्य की अनेक बातें बताईं, जो एकदम सत्य सिद्ध हुईं।
पहले उल्लेख किया गया है कि रूमियों की हार और बाद में उनकी जीत की भविष्यवाणी मुहम्मद (सल्ल.) ने की थी।
आपकी दूरदर्शिता से संबंधित अनेक उदाहरण हैं, जो आपके उच्च ज्ञान को सिद्ध करते हैं।
2- मुहम्मद (सल्ल.) उच्च वंश में पैदा हुए। आपका जन्म 571 ई. में कुरैश की पंक्ति में हाशिम परिवार में हुआ था, जो अरब के निवासियों द्वार माननीय और काबा का परम्परागत संरक्षक था।
3- हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को इन्द्रियदमन या आत्मनियंत्राण का ईश्वरीय गुण भी प्राप्त था। आप आम्प्रशंसा से हीन, दयालु, शांत, इन्द्रियजीत और उदार थे। (Modesty and kinliness, patience, self deanial and riveted the affections off all around him, p.525, Life of Mohamed' by Sir Willaim Muir.)
4- आप श्रुतिज्ञानी भी थे। श्रुत का अर्थ है, ‘जो ईश्वर के द्वारा सुनाया गया और ऋषियों द्वारा सुना गया हो।’ मुहम्मद (सल्ल.) पर जिबरील (अलैहि.) नामक फ़रिश्ते के ज़रिए ईश्वरीय ज्ञान भेजा जाता था। लेनपूल अपनी पुस्तक ''Introduction, Speeches of Muhammad" में लिखते हैं कि मुहम्मद (सल्ल.) को देवदूत की सहायता से ईश्वरीय वाणी का भेजा जाना निस्संदेह सत्य है। सर विलियम म्योर ने भी लिखा है कि वे सन्देष्टा और ईश्वर के प्रतिनिधि थे। (He was now the Servant, the Prophet, the vice gerent of God.)
5- रसूलुल्लाह (सल्ल.) काफ़ी पराक्रमी भी थे।
आपके पराक्रम को दर्शाते हुए डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने एक घटना का ज़िक्र किया है जो इस प्रकार है-
‘किसी गुफा में अकेले उपस्थित पहलवान, जो कुरैश से सम्बंधित था, से मुहम्मद (सल्ल.) ने ईश्वर से न डरने और ईश्वर पर विश्वास ने करने का कारण पूछा, जिसपर पहलवान ने सत्य की स्पष्टता के लिए कहा। तब मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि तू बड़ा वीर है, यदि कुश्ती में मैं तुझे नीच दिखाऊँ तो क्या विश्वास करेगा? उसेन स्वीकारात्मक उत्तर दिया। तब हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने उसे हरा दिया। (अल्लामा क़ाज़ी सलमान मंसूरपुरी ने अपनी सीरत की किताब ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ में ‘‘शिफ़ा’’ नामक पुस्तक के पृष्ठ 64 के हवाले से लिखा है कि आप (सल्ल.) ने उसे तीन बार हराया, फिर भी उस पहलवान ने मुहम्मद (सल्ल.) को पैग़म्बर न माना तथा ईश्वर की सत्यता पर विश्वास ने किया।
6- अल्लाह के रसूल (सल्ल.) कम बोलते थे। अधिकतर मौन रहते परन्तु जो कुछ बोलते थे, वह इतना प्रभावोत्पादक होता था कि लोग आपकी बातें नहीं भूलते थे। (Introduction The speeches of Mohammad by Lane-Pool page-24)
7- दान देना महापुरुषों का एक प्रमुख गुण रहा है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) दान देने से पीछे नहीं हटते। यही कारण था कि आपके घर पर ग़रीबों की भीड़ लगी रहती थी। आपके घर से कभी कोई निराश होकर नहीं लौटा।
8- मुहम्मद (सल्ल.) के गुणों में कृतज्ञता भी थी। वे किसी के उपकार को नहीं भूलते। अनसार के प्रति कहे गए वाक्य आपकी कृतज्ञता का प्रमाण पेश करते हैं। (असह उस सियर, पृ. 343) इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि मुहम्मद (सल्ल.) में आठों ईश्वरीय गुणों का समावेश था।

8. शरीर से सुगन्ध का निकलना -
भागवत पुराण में भविष्यवाणी की गई है कल्कि के शरीर से ऐसी सुगंध निकलेगी, जिससे लोगों के मन निर्मल हो जाएंगे। उनके शरीर की सुगंध हवा में मिलकर लोगों के मन को निर्मल करेगी।
(अथ तेषां भविष्यन्ति मनांसि विशदानि वै।
 वासु देवांगरागति पुण्यगन्धानिल स्पृशाम्।)

 
(भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 21वां श्लोक) शिमायल तिरमिज़ी में लिखा है कि मुहम्मद (सल्ल.) के शरीर की खुशबू तो प्रसिद्ध ही है। मुहम्मद (सल्ल.) जिससे हाथ मिलाते थे, उसके हाथ से दिनभर सुगन्ध आती रहती थी। (पृष्ठ 208, शिमाएल तिरमिज़ी, अनुवाद: मौलाना मुहम्मद ज़करिया)
एक बार उम्मे सुलैत ने मुहम्मद (सल्ल.) के शरीर का पसीना एकत्रा किया। आप (सल्ल.) के पूछने पर उन्होंने बताया कि इसे हम खुशबूओं में मिलाते हैं क्योंकि यह सभी सुगन्ध से बढ़कर है।
9. अनुपम कान्ति से युक्त - कल्कि अनुपम कान्ति से युक्त होंगे।
 
(विचरन्नाशुना क्षोण्यां हयेनाप्रतिमद्युतिः।
नृपलिंगच्छदो दस्यून्कोटिशोनिहनिष्यति।।)
(भा.पु., द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 20वां श्लोक)

बुख़ारी शरीफ़ की हदीस के मुताबिक़ मुहम्मद (सल्ल.) सभी व्यक्तियों में अधिक सुंदर थे और सभी मनुष्यों में अधिक आदर्शवान एवं योद्धा थे। (हज़रत अनस (रजि.) की रिवायत, जमउल फ़वायद, पेज 178) सर विलियम म्योर ने भी मुहम्मद (सल्ल.) को बहुत सुंदर स्वरूपवाला, पराक्रमी और दीनी बताया है। ('e was' says and admiring follwen, the handsomest and bravest, the bright faced and most generous of men, P. 523, The Life of Mohammad')
10. ईश्वरीय वाणी का उपदेष्टा -
डा. वेद प्रकाश उपध्याय ‘कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब’ के पृष्ठ 50, 51 पृष्ठ पर लिखते हैं कि ‘कल्कि के विषय में यह बात भारत में प्रसिद्ध ही है कि वह जो धर्म स्थापित करेंगे वह वैदिक धर्म होगा और उनके द्वारा उपदिष्ट शिक्षाएं ईश्वरीय शिक्षाएं होगी। मुहम्मद (सल्ल.) के द्वारा अभिव्यक्त कुरआन ईश्वरीय वाणी है, यह तो स्पष्ट ही है, भले ही हठी लोग इस बात को न मानें। क़ुरआन में जो नीति, सदाचार, प्रेम, उपकार आदि करने के लिए प्रेरणा के स्रोत विद्यमान हैं, वही वेद में भी है। कुरआन में मूर्ति पूजा भी खण्डन, एकेश्वरवाद (तौहीद) की शिक्षा, परस्पर प्रेम के व्यवहार का उपदेश है। वेद में ‘एकम् सत्’ तथा विश्वबन्धुत्व की उत्कृष्ट घोषणा है। वेदों में ईश्वर की भक्ति का आदेश है और कुरआन की शिक्षा के द्वारा मुसलमान दिन में पाँच बार नमाज़ अवश्य पढ़ते हैं, जबकि ब्राह्मण वर्ग में बिरले लोग ही त्रिकाल संध्या करनेवाले मिलेंगे।यहाँ यह तथ्य उजागर करना उचित होगा कि वेदों और कुरआन की शिक्षाओं में भी बहुत कुछ समानता है। मिसाल के तौर पर वेद, गीता और स्मृतियों में एक ईश्वर की भक्ति करने का आदेश है और अपनी की हुई बुराइयों की क्षमा माँगने के लिए भी उसी ईश्वर से प्रार्थना करने का आदेश है।क़ुरआन में है:
‘‘ऐ नबी! कह दो, मैं तो केवल तुम्हारे जैसा एक मनुष्य हूं। मेरी ओर वह्य (प्रकाशना) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य अकेला पूज्य है, तो तुम सीधे उसी की ओर मुख करो और क्षमा भी उसी से माँगो। (हा. मीम. अस सजदा आयत संख्या 6।) डा. उपाध्याय कहते हैं कि कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) के विषय में जो अभूतपूर्व साम्य मुझे मिला उसे देखकर आश्चर्य होता है कि जिन कल्कि की प्रतीक्षा में भारतीय बैठे हैं, वे आ गए और वही मुहम्मद साहब हैं। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ. 59)

उपनिषद् में भी मुहम्मद (सल्ल.) की चर्चा
-उपनिषदों में भी मुहम्मद साहब और इस्लाम के बारे में जहाँ-तहाँ उल्लेख मिलता है। नागेंद्र नाथ बसु द्वारा संपादित विश्वकोष के द्वितीय खण्ड में उपनिषदों के वे श्लोक दिए गए हैं, जो इस्लाम और पैग़म्बर (सल्ल.) से ताल्लुक़ रखते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख श्लोक और उनके अर्थ प्रस्तुत किए जा रहे हैं ताकि पाठकों वास्तविकता का पता चल सके-
अस्माल्लां इल्ले मित्रावरुणा दिव्यानि धत्त
इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्दुदः।
हयामित्रो इल्लां इल्लां वरुणो मित्रास्तेजस्कामः ।। 1 ।।
होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्राः
।अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्ण बह्माणं अल्लाम् ।। 2 ।।
अल्लो रसूल महामद रकबरस्य अल्लो अल्लाम् ।। 3 ।।(अल्लोपनिषद 1, 2, 3)
अर्थात, ‘‘इस देवता का नाम अल्लाह है। वह एक है। मित्रा वरुण आदि उसकी विशेषताएँ हैं। वास्तव में अल्लाह वरुण है जो तमाम सृष्टि का बादशाह है। मित्रो! उस अल्लाह को अपना पूज्य समझो। यह वरुण है और एक दोस्त की तरह वह तमाम लोगों के काम संवारता है। वह इंद्र है, श्रेष्ठ इंद्र। अल्लाह सबसे बड़ा, सबसे बेहतर, सबसे ज़्यादा पूर्ण और सबसे ज़्यादा पवित्रा है। मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के श्रेष्ठतर रसूल हैं। अल्लाह आदि, अंत और सारे संसार का पालनहार है। तमाम अच्छे काम अल्लाह के लिए ही हैं। वास्तव में अल्लाह ही ने सूरज, चांद और सितारे पैदा किए हैं।’’उपयुक्त उद्धरणों से यह निर्विवाद रूप से स्पष्ट हुआ कि सर्वशक्तिमान अल्लाह एक है और मुहम्मद (सल्ल.) उसके सन्देशवाहक (पैग़म्बर) हैं। इस उपनिषद के अन्य श्लोकों में भी इस्लाम और मुहम्मद (सल्ल.) की साम्यगत बातें आई हैं। इस उपनिषद में आगे कहा गया है-
आदल्ला बूक मेककम्। अल्लबूक निखादकम् ।। 4 ।।
अलो यज्ञेन हुत हुत्वा अल्ला सूय्र्य चन्द्र सर्वनक्षत्राः ।। 5 ।।
अल्लो ऋषीणां सर्व दिव्यां इन्द्राय पूर्व माया परमन्तरिक्षा ।। 6 ।।
अल्लः पृथिव्या अन्तरिक्ष्ज्ञं विश्वरूपम् ।। 7 ।।
इल्लांकबर इल्लांकबर इल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लाः ।। 8 ।।
ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादि स्वरूपाय अथर्वण श्यामा हुद्दी जनान पशून सिद्धांतजलवरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट ।। 9 ।।

असुरसंहारिणी हृं द्दीं अल्लो रसूल महमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्इल्लल्लेति इल्लल्ला ।। 10 ।।
इति अल्लोपनिषद
अर्थात् ‘‘अल्लाह ने सब ऋषि भेजे और चंद्रमा, सूर्य एवं तारों को पैदा किया। उसी ने सारे ऋषि भेजे और आकाश को पैदा किया। अल्लाह ने ब्रह्माण्ड (ज़मीन और आकाश) को बनाया। अल्लाह श्रेष्ठ है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह सारे विश्व का पालनहार है। वह तमाम बुराइयों और मुसीबतों को दूर करने वाला है। मुहम्मद अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) हैं, जो इस संसार का पालनहार है। अतः घोषणा करो कि अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।’
(बहुत थोड़े से विद्वान, जिनका संबंध विशेष रूप से आर्यसमाज से बताया जाता है, अल्लोपनिषद् की गणना उपनिषदों में नहीं करते और इस प्रकार इसका इनकार करते हैं, हालांकि उनके तर्कों में दम नहीं है। इस कारण से भी हिन्दू धर्म के अधिकतर विद्वान और मनीषी अपवादियों के आग्रह पर ध्यान नहीं देते। गीता प्रेस (गोरखपुर) का नाम हिन्दू धर्म के प्रमाणिक प्रकाशन केंद्र के रूप में अग्रगण्य है। यहां से प्रकाशित ‘‘कल्याण’’ (हिन्दी पत्रिका) के अंक अत्यंत प्रामाणिक माने जाते हैं। इसकी विशेष प्रस्तुति ‘‘उपनिषद अंक’’ में 220 उपनिषदों की सूची दी गई है, जिसमें अल्लोपनिषद् का उल्लेख 15वें नंबर पर किया गया है। 14वें नंबर पर अमत बिन्दूपनिषद् और 16वें नंबर पर अवधूतोपनिषद् (पद्य) उल्लिखित है।
डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने भी अल्लोपनिषद को प्रामाणिक उपनिषद् माना है। ‘देखिए: वैदिक साहित्य: एक विवेचन, प्रदीप प्रकाशन, पृ. 101, संस्करण 1989।)
प्राणनाथी (प्रणामी) सम्प्रदाय की शिक्षा
हिन्दुओं के वैष्णव समुदाय में प्राणनाथी सम्प्रदाय उल्लेखनीय है। इसके संस्थापक एंव प्रवर्तक महामति प्राणनाथ थे। आपका जन्म का नाम मेहराज ठाकुर था। प्राणनाथ जी का जन्म 1618 ई. में गुजरात के जामनगर शहर में हुआ था। आपने इन्सानों को एकेश्वरवाद की शिक्षा दी और एक ही निराकार ईश्वर की पूजा-उपासना पर बल दिया। आपने नुबूव्वत अर्थात ईशदूतत्व की धारणा का समर्थन किया और इसे सही ठहराया। प्राणनाथ जी कहते हैं-
कै बड़े कहे पैगमंर, पर एक महमंद पर खतम।
अर्थात, धर्मग्रंथों में अनेकों पैग़म्बर बड़े कहे गए, किन्तु मुहम्मद साहब पर ईशदूतों की श्रृंखला समाप्त हुई। रसूल मुहम्मद (सल्ल.) आख़िरी पैग़म्बर हुए। (मारफ़त सागर, पृ. 39, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।)
प्राणनाथ जी ने एक स्थान पर लिखा-
रसूल आवेगा तुम पर, ले मेरा फुरमान।आए मेर अरस की, देखी सब पेहेचान।।अर्थात, (ईश्वर ने कहाः) मेरा रसूल मुहम्मद तुम्हारे पास मेरा संदेश लेकर आएगा। वह संसार में आकर तुम्हें मेरे अर्श या परमधाम की सब तरह से पहचान कराने के लिए कुछ संकेत देगा। (मारफ़त सागर, पृ. 19, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।)
अधिक जानकारी के लिये पढें पुस्‍तकः
"नराशंस और अंतिम ऋष‍ि" (ए‍ेतिहासकि शोध) --- डॉ. वेदप्रकाश उपाध्‍याय
कल्कि अवतार और मुहम्‍मद सल्ल. --- डॉ. वेदप्रकाश उपाध्‍याय
साभार जनाब आफ़ताब फाजिल