Sunday 24 June 2012

आखिर कहा है फसीह मुहम्मद ................?

फसीह मुहम्मद के बारे में पहले मै आपको उनकी निजी ज़िन्दगी से रूबरू करवाता हु 
(Nasreen Wife of Fasih Muhammed)

ग्राम बढ़ा समेला दरभंगा (बिहार) का एक तरक्कीशुदा गाव है इस गाव के नामचीन डाक्टर फ़िरोज़ अहमद साहेब के बेटे फसीह मुहम्मद अपने वालदैन के आँखों का नूर पूरा गाव इनपर और डाक्टर साहेब पर नाज़ करता है डाक्टर साहेब हर एक के सुख दुःख में हमेशा खडे रहते है सिविल इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद फसीह साहेब अपने वालदैन का सपना पूरा करना चाहते थे तभी उनको सउदी अरब के इरम इंजीनियरिंग कार्पोरेतन में नौकरी मिल गई और फसीह साहेब २००७ में चले गए सउदी अरब और वालदैन का सपना पूरा करने लगे 
हर वालदैन की खवाहिश के मुताबिक फसीह साहेब का पूरे धूम धाम से निकाह नसरीन साहिबा के साथ ७ सितम्बर २०११ को हुवा और ये जोड़ा सउदी में ख़ुशी ख़ुशी अपनी ज़िन्दगी बिता रहा था आने वाले तूफ़ान से एकदम अंजन फसीह और नसरीन अपनी ज़िन्दगी बसर कर रहे थे सब ठेक चल रहा था वालदैन इंडिया में खुश थे अपने बच्चे की ख़ुशी को देख कर और कोई भी एक अनजाने तूफ़ान से बाखबर नहीं था जो आकार उनकी ज़िन्दगी तहस नहस करने वाला था 
और आखिर आगया १३ मई २०१२ का इस कुनबे का मनहूस इतवार जिसको ये कुनबा कभी न भूल पायेगा बकौल नसरीन पूरा नज़ारा कुछ इसतरह गुज़ारा की इनके सउदी के अल्जुबली जहा इनका आशियाना था एक फ़ोन आया और फ़ोन करने वाले ने अपने आपको याहू से बोलने वाला बताया घर आने के सबब में बात की थोड़ी देर में वह २ इंडियन पुलिस वालो को साथ लेकर सउदी की पुलिस पहुची और इनके शौहर जनाब फसीह मुहम्मद को कुछ जानकारी लेने को कहकर घर से ले गई नसरीन इस नज़रे से एकदम सन्न थी ये सउदी के दोपहर लहभग एक बजे का वाक्य था आसपास अजनबी मुल्क और शहर के लोगो सिर्फ तस्सल्ली दे सकते थे जो वो दे रहे थे सारा दिन गुज़र गया फिर रात आए इंडिया में वालदैन भी परेशां थे रात को १२ बजे के बाद एक अनजाने नंबर से फ़ोन आया उधर से आवाज़ फसीह साहेब की थी ये वो आखरी आवाज़ थी फसीह साहेब की जो नसरीन ने सुनी फसीह साहेब रोकर कह रहे थे मैने कुछ किया नहीं है फिर भी ये लोग मुझे इंडिया ले जारहे है अभी नसरीन कुछ और पूछती इससे पहले ही फ़ोन कट गया नसरीन पागलो की तरह उस नंबर पर फ़ोन करती रही मगर फ़ोन बंद था लगातार
सुबह हुई नसरीन मुहल्ले के कुछ लोगो के साथ पुलिस के पास गयी वह से पता चला की फसीह साहेब को इंडियन पुलिस लेकर रात को ही इंडिया चली गए है नसरीन ने ये खबर अपने ससुराल और मैके में बताई और यहाँ लोग इदर उधर हाथ पर मरने लगे मगर सब बेमतलब था 
आखिर १५ मई को नसरीन सउदी से इंडिया आगई और अपने ससुराल वालो के साथ दिल्ली के हर दफ्तर का चक्कर कटने लगी मगर कोई ये बताने वाला नहीं मिला की आखिर फसीह है कहा और किस जुर्म में उसकी गिरफ़्तारी हुई है अब थक हार कर उन्होने न्यायलय की शरण ली है और माननीय न्यायालय ने इसका संज्ञान लिया है
ये बढ़ समेला (दरभंगा) जो मुसलमानों की आबादी वाला पढ़ा लिखा और आबाद खुश हाल गाव है का पहला वाक्य नहीं है इससे पहले २०११ में कर्नाटक पुलिस उस गाव से एक ऐसे लडके को पकड़ कर आतंकवादी बता कर ले गयी थी जो कभी गाव से बहार गया ही नहीं था कर्नाटक जाना बहुत दूर की बात है कई दिनों बाद नितीश कुमार ने इस मसले पर अपना विरोध कर्नाटक सरकार को दिखाया था जिससे कर्नाटका सरकार ने उसको कोर्ट में हाज़िर किया था 
ऐसा कानून है की गिरफ़्तारी के २४ घंटे के अन्दर अन्दर पुलिस को मुजरिम को अदालत में पेश करना होता है फिर किस कानून के तहत फसीह मुहम्मद को आज तक कही पेश नहीं किया गया आखिर कौन थे पुलिस वाले जिन्होने गिरफ़्तारी की थी आखिर कहा गए फसीह मुहम्मद उनको ज़मीन खा गयी या आस्मां निगल गया आखिर क्यों चुप है देश के आला नेता आखिर कहा है फसीह मुहम्मद 

इस्लाम का वरण स्वेच्छा से - रामधारी सिंह दिनकर




रामधारी सिंह दिनकर (प्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार)

जब इस्लाम आया, उसे देश में फैलने से देर नहीं लगी। तलवार के भय अथवा पद के लोभ से तो बहुत थोड़े ही लोग मुसलमान हुए, ज़्यादा तो ऐसे ही थे जिन्होंने इस्लाम का वरण स्वेच्छा से किया। बंगाल, कश्मीर और पंजाब में गाँव-के-गाँव एक साथ मुसलमान बनाने के लिए किसी ख़ास आयोजन की आवश्यकता नहीं हुई। ...मुहम्मद (सल्लल्लाहो ताअला अलैहि व आलिही वसल्लम) साहब ने जिस धर्म का उपदेश दिया वह अत्यंत सरल और सबके लिए सुलभ धर्म था। अतएव जनता उसकी ओर उत्साह से बढ़ी। ख़ास करके, आरंभ से ही उन्होंने इस बात पर काफ़ी ज़ोर दिया कि इस्लाम में दीक्षित हो जाने के बाद, आदमी आदमी के बीच कोई भेद नहीं रह जाता है। इस बराबरी वाले सिद्धांत के कारण इस्लाम की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई और जिस समाज में निम्न स्तर के लोग उच्च स्तर वालों के धार्मिक या सामाजिक अत्याचार से पीड़ित थे उस समाज के निम्न स्तर के लोगों के बीच यह धर्म आसानी से फैल गया...।
‘‘...सबसे पहले इस्लाम का प्रचार नगरों में आरंभ हुआ क्योंकि विजेयता, मुख्यतः नगरों में ही रहते थे...अन्त्यज और निचली जाति के लोगों पर नगरों में सबसे अधिक अत्याचार था। ये लोग प्रायः नगर के भीतर बसने नहीं दिए जाते थे...इस्लाम ने जब उदार आलिंगन के लिए अपनी बाँहें इन अन्त्यजों और ब्राह्मण-पीड़ित जातियों की ओर पढ़ाईं, ये जातियाँ प्रसन्नता से मुसलमान हो गईं।
कश्मीर और बंगाल में तो लोग झुंड-के-झुंड मुसलमान हुए। इन्हें किसी ने लाठी से हाँक कर इस्लाम के घेरे में नहीं पहुँचाया, प्रत्युत, ये पहले से ही ब्राह्मण धर्म से चिढ़े हुए थे...जब इस्लाम आया...इन्हें लगा जैसे यह इस्लाम ही उनका अपना धर्म हो। अरब और ईरान के मुसलमान तो यहाँ बहुत कम आए थे। सैकड़े-पच्चानवे तो वे ही लोग हैं जिनके बाप-दादा हिन्दू थे...।
‘‘जिस इस्लाम का प्रवर्त्तन हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहो ताअला अलैहि व आलिही वसल्लम) साहब ने किया था...वह धर्म, सचमुच, स्वच्छ धर्म था और उसके अनुयायी सच्चरित्र, दयालु, उदार, ईमानदार थे। उन्होंने मानवता को एक नया संदेश दिया, गिरते हुए लोगों को ऊँचा उठाया और पहले-पहल दुनिया में यह दृष्टांत उपस्थित किया कि धर्म के अन्दर रहने वाले सभी आपस में समान हैं। उन दिनों इस्लाम ने जो लड़ाइयाँ लड़ीं उनकी विवरण भी मनुष्य के चरित्रा को ऊँचा उठाने वाला है।’’

—‘संस्कृति के चार अध्याय’
लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1994
पृष्ठ-262, 278, 284, 326, 317